🗳️ पंचायत चुनाव में बाहरी वोटर्स पर हाईकोर्ट सख्त: आयोग से मांगा रिकॉर्ड, 18 जुलाई तक जवाब तलब
🟨 मुख्य बिंदु (हाइलाइट्स):
- बुधलाकोट ग्रामसभा में बाहरी व्यक्तियों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल
- याचिकाकर्ता आकाश बोरा ने हाईकोर्ट में दायर की जनहित याचिका
- कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से मांगा नामों का कानूनी और दस्तावेजी आधार
- 18 लोगों को बाहरी घोषित करने वाली रिपोर्ट को किया नजरअंदाज
- आयोग ने BLO रिपोर्ट का हवाला दिया, कोर्ट ने मांगे दस्तावेजी प्रमाण
- अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी
- मामले में मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने दी निर्देश
जनहित याचिका में गंभीर आरोप – वोटर लिस्ट में ‘बाहरी’ कैसे?
नैनीताल हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका ने पंचायत चुनाव की मतदाता सूचियों की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। बुधलाकोट ग्रामसभा निवासी आकाश बोरा द्वारा दाखिल याचिका में दावा किया गया है कि ग्रामसभा की वोटर लिस्ट में ऐसे व्यक्तियों के नाम शामिल किए गए हैं जो उस क्षेत्र के निवासी ही नहीं हैं।
आकाश बोरा के अनुसार, इनमें से अधिकांश लोग ओडिशा और अन्य बाहरी राज्यों के निवासी हैं और स्थानीय क्षेत्र से उनका कोई वास्ता नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कर इन लोगों को पंचायत चुनाव में वोट देने की अनुमति दी गई, जो कि गंभीर अनियमितता है।
हाईकोर्ट की सख्ती – राज्य चुनाव आयोग से मांगा कानूनी आधार
मुख्य न्यायाधीश श्री जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए कि वह बताए कि इन बाहरी लोगों को किस आधार पर मतदाता सूची में शामिल किया गया।
कोर्ट ने विशेष रूप से पूछा कि इन मतदाताओं के नाम दर्ज करते समय क्या आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड या स्थायी निवास प्रमाण जैसे दस्तावेज मांगे गए थे या नहीं?
आयोग को 17 जुलाई 2025 तक इन सवालों का लिखित और दस्तावेजी उत्तर प्रस्तुत करने को कहा गया है।
जांच कमेटी ने 18 नाम बाहरी माने, फिर भी सूची में क्यों?
आकाश बोरा ने बताया कि उन्होंने पहले इस मामले की शिकायत एसडीएम से की थी। इसके बाद प्रशासन ने एक जांच कमेटी गठित की। कमेटी ने सूची की समीक्षा के बाद पाया कि 18 व्यक्तियों के नाम बाहरी हैं और उन्हें हटाया जाना चाहिए।
लेकिन याचिकाकर्ता का आरोप है कि अंतिम मतदाता सूची में इन 18 नामों को हटाने की बजाय यथावत रखा गया, जो स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और आयोग की निष्क्रियता को उजागर करता है।
यही नहीं, याचिका में ऐसे 30 अन्य संदिग्ध नामों की अतिरिक्त सूची भी प्रस्तुत की गई है, जिन्हें याचिकाकर्ता ने बाहरी बताया है।
आयोग ने BLO रिपोर्ट का दिया हवाला, पर कोर्ट ने मांगे पुख्ता दस्तावेज
निर्वाचन आयोग की ओर से कहा गया कि मतदाता सूची तैयार करते समय बूथ लेवल अधिकारी (BLO) द्वारा क्षेत्र के मतदाताओं को चिह्नित किया गया और उसी आधार पर नाम दर्ज किए गए।
लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में पूछा कि सिर्फ BLO की रिपोर्ट क्या पर्याप्त है? क्या किसी मतदाता से पहचान या निवास प्रमाण के दस्तावेज लिए गए? यदि नहीं, तो यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता की कसौटी पर असफल मानी जाएगी।
पंचायत चुनाव और लोकतांत्रिक प्रणाली पर पड़ा असर
इस प्रकरण ने पंचायत चुनावों में मतदाता सूची की शुद्धता और प्रशासनिक सतर्कता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि ऐसे व्यक्तियों को मतदान का अधिकार मिलता है जिनका संबंधित ग्राम सभा से कोई वास्तविक संबंध नहीं है, तो यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे को भी हानि पहुंचाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला प्रशासनिक निष्क्रियता और राजनीतिक हस्तक्षेप की मिलीभगत का संकेत भी हो सकता है।
जनप्रतिनिधियों की वैधता पर मंडराया संकट?
यदि यह सिद्ध होता है कि बाहरी लोगों के आधार पर किसी प्रत्याशी को लाभ हुआ है, तो चुनाव की वैधता पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है। ऐसे में न केवल पुनर्मतदान की आवश्यकता पड़ सकती है बल्कि संबंधित अधिकारी और प्रत्याशी कानूनी कार्रवाई के घेरे में आ सकते हैं।
हाईकोर्ट ने जिस सख्ती से इस मामले को लिया है, उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि चुनाव आयोग और प्रशासन को अब जवाबदेह बनना ही होगा। मतदाता सूची लोकतंत्र की नींव है और उसमें किसी भी तरह की लापरवाही न केवल कानून के उल्लंघन की श्रेणी में आती है बल्कि जनता के अधिकारों पर भी आघात करती है।
17 जुलाई को जब अगली सुनवाई होगी, तब स्पष्ट होगा कि निर्वाचन आयोग इस संवेदनशील विषय पर कितनी गंभीरता से उत्तर देता है। क्या दोषियों की पहचान होगी? क्या पंचायत चुनाव की विश्वसनीयता फिर से स्थापित की जा सकेगी? यह जवाब आने वाले दिनों में मिलेंगे।
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