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उत्तराखंड पंचायत चुनाव में दोहरी मतदाता सूची से विवाद: 500 प्रत्याशियों पर संकट के बादल

उत्तराखंड पंचायत चुनाव में दोहरी मतदाता सूची से विवाद: 500 प्रत्याशियों पर संकट के बादल

हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद भी कार्रवाई नहीं, याचिकाकर्ता शक्ति सिंह बर्तवाल ने आयोग को सौंपी सूची

🟨 मुख्य बिंदु (हाइलाइट्स):

  • 500 से अधिक पंचायत प्रत्याशी दो अलग-अलग वोटर लिस्ट में दर्ज
  • याचिकाकर्ता शक्ति सिंह बर्तवाल ने राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपी प्रत्याशियों की सूची
  • हाईकोर्ट ने आयोग की राहत देने वाली पुनर्विचार याचिका की खारिज
  • 6 जुलाई का आदेश पंचायती राज अधिनियम की धारा 9(6) और 9(7) के खिलाफ
  • मतदाता सूची में दोहरे नाम अपराध की श्रेणी में आता है
  • याचिकाकर्ता ने चेताया: कार्रवाई नहीं हुई तो अवमानना याचिका दायर होगी
  • चुनाव बाद इन प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित किए जाने की आशंका
  • निर्वाचन प्रणाली और अधिकारियों की जिम्मेदारी पर सवाल

मतदाता सूची में दोहरी प्रविष्टियों से उठा लोकतंत्र पर सवाल

उत्तराखंड के पंचायत चुनावों के बीच एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा सामने आया है। देहरादून निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता शक्ति सिंह बर्तवाल ने दावा किया है कि राज्य के विभिन्न जिलों में 500 से अधिक ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके नाम दो अलग-अलग निकायों की मतदाता सूची में दर्ज हैं। उन्होंने इस आशय की विस्तृत सूची राज्य निर्वाचन आयोग को सौंप दी है।

यह मामला तब और भी गंभीर हो गया जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 6 जुलाई 2025 को आयोग द्वारा जारी उस आदेश पर भी रोक लगा दी जिसमें ऐसे प्रत्याशियों को राहत दी गई थी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 की धारा 9(6) और 9(7) के विपरीत है और इसे लागू नहीं किया जा सकता।


याचिकाकर्ता की चेतावनी – कार्रवाई नहीं तो कोर्ट की अवमानना

शक्ति सिंह बर्तवाल ने राज्य निर्वाचन आयोग को भेजे ज्ञापन में कहा है कि यदि इन प्रत्याशियों पर उचित और शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो वह उच्च न्यायालय में आयोग के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर करेंगे। उनके अनुसार, एक व्यक्ति का नाम दो मतदाता सूचियों में होना केवल प्रशासनिक त्रुटि नहीं बल्कि गंभीर आपराधिक कृत्य है।

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि कैसे ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई, जिनकी पात्रता ही संदिग्ध है। यह प्रश्न न केवल प्रत्याशियों की ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और आयोग की कार्यप्रणाली पर भी गहरा प्रभाव डालता है।


पंचायत अधिनियम की धारा 9(6) और 9(7) क्या कहती हैं?

उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 की धारा 9(6) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति दो या अधिक स्थानीय निकायों की मतदाता सूची में दर्ज नहीं हो सकता। जबकि धारा 9(7) यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई प्रत्याशी ऐसे प्रतिबंधों के तहत पाया जाता है, तो उसका नामांकन अमान्य होगा और उसे चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

इस कानून का उल्लंघन स्पष्ट रूप से अयोग्यता और निर्वाचन प्रक्रिया की वैधता पर प्रश्नचिह्न बनाता है।


हाईकोर्ट का रुख – पारदर्शिता सर्वोपरि

हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग की पुनर्विचार याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चुनावी पारदर्शिता से कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि आयोग द्वारा 6 जुलाई को जारी आदेश कानूनी प्रावधानों के विपरीत है और इस पर आगे कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती।

याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने यह स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में दोहरी प्रविष्टियां न केवल एक व्यक्ति विशेष के अधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करती हैं।


आयोग की भूमिका पर उठे सवाल

इस प्रकरण ने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और जवाबदेही को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। शक्ति सिंह बर्तवाल द्वारा सौंपे गए दस्तावेजों में जिलेवार जानकारी दी गई है जिसमें बताया गया है कि किन प्रत्याशियों के नाम दो अलग-अलग मतदाता सूची में दर्ज हैं और उनके नामांकन रिटर्निंग अधिकारियों द्वारा स्वीकृत किए गए हैं।

अब सवाल यह है कि क्या आयोग इन सूचीबद्ध नामों की पुनः जांच करेगा और यदि दोष पाया जाता है तो क्या इन प्रत्याशियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी?


क्या चुनाव के बाद अयोग्यता की तलवार लटकेगी?

वर्तमान समय में यह प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं या कई स्थानों पर चुनकर आ चुके हैं, लेकिन यदि अदालत या आयोग द्वारा जांच के बाद यह प्रमाणित हो जाता है कि उन्होंने दोहरी मतदाता सूची का लाभ उठाया है, तो इनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है। ऐसी स्थिति में संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में पुनः चुनाव कराने की नौबत भी आ सकती है।


चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की अनिवार्यता

यह मामला केवल कुछ प्रत्याशियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे लोकतांत्रिक तंत्र के लिए चेतावनी है। दोहरी प्रविष्टियां न केवल कानून के उल्लंघन की श्रेणी में आती हैं, बल्कि इससे चुनावों की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ती है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि मतदाता सूची तैयार करने और नामांकन की जांच प्रक्रिया में कई स्तरों पर लापरवाही हुई है। चुनाव आयोग को अब इन खामियों को सुधारने और दोषियों को दंडित करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाने होंगे।


क्या बचे रहेंगे दोहरी प्रविष्टियों वाले प्रत्याशी?

शक्ति सिंह बर्तवाल जैसे जागरूक नागरिकों की सक्रियता ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन यह केवल शुरुआत है – जब तक आयोग सख्त कार्रवाई नहीं करता और दोषियों को चिह्नित कर दंडित नहीं किया जाता, तब तक यह मुद्दा और गहराता जाएगा।

यह जरूरी है कि सरकार और आयोग दोनों इस मामले को गंभीरता से लें, ताकि आगामी चुनावों में ऐसी त्रुटियों की पुनरावृत्ति न हो और जनता का लोकतंत्र पर भरोसा बना रहे।

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