उत्तराखण्ड में बाल शिक्षा नियमों में बड़ा बदलाव: कक्षा-1 में प्रवेश के लिए अब 6 वर्ष की न्यूनतम आयु अनिवार्य

उत्तराखण्ड सरकार ने निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली, 2011 में अहम संशोधन किया है। यह संशोधन आगामी शैक्षिक सत्र 2025-26 से प्रभावी होगा और विशेष रूप से कक्षा-1 में प्रवेश को लेकर आयु सीमा को स्पष्ट करता है। साथ ही दिव्यांग बच्चों और प्री-स्कूल से संबंधित प्रावधानों को भी नया स्वरूप दिया गया है।
संशोधन की मुख्य बातें
कक्षा-1 में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु सीमा
नवीन नियमावली के अनुसार, अब कोई भी बच्चा 1 जुलाई से पहले 6 वर्ष की आयु पूरी करता है तभी वह कक्षा-1 में प्रवेश का पात्र होगा। इसका मतलब यह है कि बच्चे ने 5 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद कम से कम 12 महीने पूरे कर लिए हों।
बच्चों की नई परिभाषा
संशोधित नियमावली में “बच्चे” की परिभाषा को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- सामान्य बालक/बालिका : 6 से 14 वर्ष की आयु
- विशेष आवश्यकताधारी (दिव्यांग) बच्चे : 6 से 18 वर्ष की आयु
प्री-स्कूल और दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष दिशा-निर्देश
प्री-स्कूल से कक्षा-1 में सुगम एडमिशन
वर्तमान में जो बच्चे नर्सरी, एल.के.जी., या यू.के.जी. में पढ़ रहे हैं, उन्हें कक्षा-1 में प्रवेश लेने में कोई समस्या नहीं होगी।
हालांकि, भविष्य में प्री-स्कूल संचालन के लिए यह जरूरी होगा कि वे बच्चों की उम्र इस तरह निर्धारित करें कि जब बच्चा कक्षा-1 में प्रवेश ले, तो उसकी उम्र कम से कम 6 वर्ष हो चुकी हो।
दिव्यांग बच्चों के लिए समावेशी प्रावधान
दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष रूप से यह सुनिश्चित किया गया है कि वे 18 वर्ष की आयु तक प्रारम्भिक शिक्षा निर्बाध रूप से पूरी कर सकें। इसके लिए विद्यालयों को विशेष प्रवेश प्रक्रियाएं अपनाने की आवश्यकता होगी।
संशोधन का उद्देश्य l
यह संशोधन निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 38 के अंतर्गत किया गया है। इसका उद्देश्य है:
- शिक्षा प्रणाली को अधिक संरचित और समावेशी बनाना
- दिव्यांग बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में बराबरी का अवसर देना
- पूर्व-प्राथमिक शिक्षा और प्रारंभिक कक्षाओं के बीच तालमेल स्थापित करना
इस बदलाव से प्रदेश के हजारों माता-पिता और विद्यालय प्रभावित होंगे।
- ग्रामीण क्षेत्रों में पहले जहां 5 वर्ष की उम्र में बच्चे को कक्षा-1 में भर्ती कर दिया जाता था, अब वहां पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा।
- दिव्यांग बच्चों को स्कूलों में लंबे समय तक पढ़ने का अवसर मिलेगा, जिससे उनकी सामाजिक समावेशिता और आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
शिक्षा नीति में यह बदलाव उत्तराखण्ड में एक नई दिशा की ओर संकेत करता है, जहां आयु, योग्यता और समावेशिता को महत्व दिया गया है। यह न केवल छात्रों के भविष्य को सुरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि राज्य की शिक्षा प्रणाली को एक सुसंगत और मानकीकृत रूप देने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।