- चार साल में 71,681 छात्रों ने छोड़े सरकारी स्कूल
- ड्रॉपआउट रोकने को विभाग ने बनाई कार्ययोजना
- बालिकाओं के लिए सुविधाएं बढ़ेंगी, प्रवेशोत्सव गांव-गांव
- ड्रॉपआउट दर 7% से घटाकर 4% लाने का लक्ष्य
गिरती छात्र संख्या की चुनौती से निपटने की तैयारी
देहरादून: उत्तराखंड के सरकारी विद्यालयों में लगातार गिरती छात्र संख्या की गंभीर समस्या से निपटने के लिए अब शिक्षा विभाग ने ठोस रणनीति तैयार की है। विशेषकर माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं के ड्रॉपआउट को 7% से घटाकर 4% तक लाने का लक्ष्य रखा गया है।
माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019-20 में छात्रों की कुल संख्या 5,77,534 थी, जो 2023-24 में घटकर 5,05,853 रह गई। यानी 4 वर्षों में 71,681 छात्र-छात्राएं स्कूल छोड़ चुके हैं।
बढ़ता बजट, घटती संख्या
विडंबना यह है कि इस अवधि में समग्र शिक्षा का बजट भी दोगुना हो गया। 2019-20 में जहां 361 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे थे, वहीं 2023-24 में यह राशि 730 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। इसके बावजूद परिणाम निराशाजनक रहे।
कारणों की पड़ताल और समाधान
रिपोर्ट के आधार पर विभाग ने ड्रॉपआउट के कारणों का अध्ययन किया, तो प्रमुख कारण सामने आए:
- विद्यालयों में सुविधाओं की कमी
- बालिकाओं के लिए शौचालय और सैनिटरी पैड की अनुपलब्धता
- यूनिफॉर्म, किताबें और स्मार्ट क्लासेज की कमी
- शिक्षकों के रिक्त पद
इन समस्याओं के समाधान के लिए अब प्रवेशोत्सव गांव-गांव जाकर मनाया जाएगा। बालिकाओं के लिए नुक्कड़ सभाएं, बैठकें, और घर-घर संपर्क का अभियान चलाया जाएगा।
ड्रॉपआउट रोकने को विशेष योजना
शिक्षा निदेशालय ने स्पष्ट किया कि ड्रॉपआउट को रोकने के लिए नियमित रूप से डाटा आधारित निगरानी और समीक्षा की जाएगी। शिक्षक, प्रधानाचार्य और एसएमसी सदस्य अभिभावकों से संवाद बनाए रखेंगे।
अभिभावकों के लिए पहल
ग्रामीण क्षेत्रों में छात्राओं के ड्रॉपआउट का एक बड़ा कारण दूरी और संसाधनों की कमी है। निजी वाहन न होने के कारण विद्यालय तक पहुंचना कठिन हो जाता है। सरकार अब इन बिंदुओं पर काम कर रही है ताकि शिक्षा सभी के लिए सुलभ हो सके।
डा मुकुल कुमार सती, निदेशक माध्यमिक शिक्षा ने बताया कि विभाग छात्राओं की सुविधा के लिए बालिका प्रोत्साहन योजना, छात्रवृत्ति योजना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जैसे बिंदुओं पर फोकस कर रहा है।