सरकारी स्कूलों के पास प्राइवेट स्कूल खुलने पर सख्ती की तैयारी
हाइलाइट्स
शिक्षा विभाग की सात सदस्यीय समिति ने स्कूलों के गिरते नामांकन पर गहन अध्ययन के बाद सिफारिशें कीं
भविष्य में एक निश्चित दायरे में नए प्राइवेट स्कूल खोलने पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी
प्राइमरी, जूनियर और इंटरमीडिएट स्कूलों के लिए अलग-अलग दूरी के मानक तय करने का सुझाव
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जुड़े सरकारी स्कूलों में भी छात्र संख्या में गिरावट
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उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों में लगातार छात्र संख्या घटने का सिलसिला थम नहीं रहा है। शिक्षा विभाग द्वारा गठित विशेष समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस गिरावट का बड़ा कारण सरकारी स्कूलों के निकट बड़ी संख्या में प्राइवेट स्कूलों का खुलना पाया है। इस पर लगाम लगाने के लिए सरकार अब प्राइवेट स्कूलों की मान्यता के नियम कड़े करने जा रही है।
समिति की प्रमुख सिफारिशें
शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के निर्देश पर गठित सात सदस्यीय समिति ने ढाई माह के अध्ययन के बाद रिपोर्ट तैयार की। मुख्य अंश:
प्राइमरी स्कूल: भविष्य में किसी भी सरकारी प्राइमरी स्कूल के एक किलोमीटर के दायरे में नया प्राइवेट स्कूल न खोलने की सिफारिश
जूनियर हाईस्कूल: सरकारी जूनियर हाईस्कूल के तीन किलोमीटर के दायरे में नया प्राइवेट स्कूल प्रतिबंधित करने की सिफारिश
इंटरमीडिएट स्कूल: इस स्तर के प्राइवेट स्कूलों को सरकारी इंटर कॉलेज से पांच किलोमीटर की न्यूनतम दूरी पर ही खोलने की मंजूरी हो
समिति का मानना है कि यदि इस दूरी के मानक तय कर दिए जाएं तो सरकारी स्कूलों की उपेक्षा तथा छात्र संख्या में लगातार आ रही गिरावट पर काबू पाया जा सकेगा।
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राजधानी का उदाहरण: स्मार्ट सिटी और सरकारी स्कूल
राजकीय इंटर कॉलेज खुड़बुड़ा (देहरादून): स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत अपग्रेड किए स्कूल में छात्र संख्या सिर्फ 205 रह गई है, जबकि 500 मीटर के दायरे में तीन इंटरमीडिएट और पांच प्राइवेट जूनियर स्कूल हैं—इन सभी में सरकारी स्कूल से कहीं अधिक छात्र हैं।
राजकीय इंटर कॉलेज सौड़ा सिरौली (दून-थानो मार्ग): विगत वर्षों में पास के दो किलोमीटर के दायरे में छह नए प्राइवेट स्कूल खुलने से यहां भी बच्चों की संख्या घट गई है। देखा गया कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आगे भी सरकारी स्कूलों में दाखिला नहीं लेते।
सरकारी स्कूलों की गिरती छात्र संख्या पर चिंता
समिति ने अपनी रिपोर्ट में आंकड़ों सहित स्पष्ट किया कि:
निकट के प्राइवेट स्कूलों की सुविधा, आकर्षक इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं अन्य सुविधाओं के चलते अभिभावक सरकारी स्कूलों के बजाय प्राइवेट स्कूल को तरजीह दे रहे हैं
इससे सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, शिक्षक संसाधन और सरकारी बजट भी निष्प्रभावी हो रहा है
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सरकार का रुख और आगे की राह
समिति की रिपोर्ट को शिक्षा मंत्री एवं शीर्ष विभागीय अधिकारियों के समक्ष पेश किया गया है
सरकार प्राइवेट स्कूलों की मान्यता नीति में संशोधन पर विचार कर रही है
न सिर्फ मान्यता बल्कि संचालन, शिक्षक योग्यता व फीस विनियमन के मानकों को भी सख्त करने की संभावना
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उत्तराखंड सरकार सरकारी स्कूलों की ढहती छवि, घटती छात्र संख्या और शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे असंतुलन को लेकर अब गंभीर नजर आ रही है। यदि समिति की सिफारिशें लागू होती हैं, तो प्राइवेट स्कूल के मान्यता मानकों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा – जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था के पुनर्जीवन की दिशा में अहम कदम होगा।