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ग्राम प्रधान का निर्विरोध चयन मतदान से ठीक पहले तक संभव

🟩 मुख्य बिंदु (हाइलाइट्स)

  • ग्राम प्रधान पद पर मतदान से पहले तक निर्विरोध चयन संभव
  • नाम वापसी की समय सीमा बीतने के बाद भी विशेष नियम के तहत सहमति से नाम वापसी की अनुमति
  • राज्य निर्वाचन आयोग ने  नियमावली के प्रावधानों को स्पष्ट किया
  • मतदान से पूर्व मतदान केंद्र पर पीठासीन अधिकारी को संयुक्त प्रार्थनापत्र देकर नाम वापस लिया जा सकता है
  • निर्वाचन अधिकारी तुरंत परिणाम घोषित कर सकते हैं

ग्राम प्रधान का निर्विरोध चयन मतदान से ठीक पहले तक संभव

देहरादून | 13 जुलाई 2025: उत्तराखंड में चल रही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव प्रक्रिया के बीच एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है – ग्राम प्रधान का चुनाव मतदान शुरू होने से ठीक पहले तक भी आपसी सहमति से निर्विरोध किया जा सकता है। हालांकि, नाम वापसी की आधिकारिक तिथि 11 जुलाई को समाप्त हो चुकी है, फिर भी राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायती राज अधिनियम की  नियमावली का हवाला देते हुए स्पष्ट किया है कि ग्राम पंचायतों में सहमति से नाम वापसी अब भी संभव है।

राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल कुमार गोयल के अनुसार,

नियमावली के तहत ग्राम पंचायतों में मतदान शुरू होने से ऐन पहले तक भी प्रधान पद पर आपसी सहमति से नाम वापस लिए जाने का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जा सकता है।

इसका मतलब यह है कि यदि किसी गांव में सभी प्रत्याशी आपसी सहमति से एक ही व्यक्ति को प्रधान बनाना चाहते हैं, तो वे संयुक्त प्रार्थनापत्र देकर नाम वापस ले सकते हैं और निर्वाचन अधिकारी उस उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर सकते हैं।

📝 प्रक्रिया: कैसे हो सकता है निर्विरोध चयन?

  1. सभी प्रत्याशियों को मतदान से पूर्व आपसी सहमति से एक संयुक्त प्रार्थनापत्र तैयार करना होगा।
  2. यह प्रार्थनापत्र कम से कम तीन दिन पहले आरओ (निर्वाचन अधिकारी) को या मतदान केंद्र पर मतदान शुरू होने से पहले पीठासीन अधिकारी को सौंपा जा सकता है।
  3. पीठासीन अधिकारी इसे तुरंत संबंधित आरओ को भेज देंगे।
  4. आरओ नियम 72 के अंतर्गत आवश्यक प्रक्रिया पूरी कर संबंधित उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर सकते हैं।

इस प्रक्रिया में यह ध्यान रखा जाता है कि किसी भी प्रत्याशी पर दबाव न हो और यह सहमति स्वैच्छिक हो।

📌 नियम 72 क्या कहता है?

पंचायती राज अधिनियम की नियमावली में वर्णित नियम 72 निर्वाचन अधिकारी को यह अधिकार देता है कि यदि सभी अन्य वैध प्रत्याशी अपनी उम्मीदवारी वापस ले लें, तो शेष प्रत्याशी को निर्विरोध विजेता घोषित किया जा सकता है।

⚖ हाईकोर्ट में आदेश पालन न होने पर चेतावनी

इस बीच देहरादून से एक संबंधित खबर सामने आई है, जहां दो मतदाता सूचियों में नाम होने के प्रकरण में हाईकोर्ट के स्थगन आदेश के बावजूद कार्रवाई न होने पर याचिकाकर्ता शक्ति बर्त्वाल ने राज्य निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा है। उन्होंने चेतावनी दी है कि आदेश का पालन न होने की स्थिति में वे अवमानना याचिका दायर करेंगे।

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में जहां गांवों में सामाजिक समरसता और आपसी समझ का माहौल होता है, वहां अक्सर देखा गया है कि ग्रामीण मिल बैठकर एक सर्वमान्य व्यक्ति को चुन लेते हैं। इससे न केवल चुनाव खर्च में कमी आती है, बल्कि तनाव और विवादों से भी बचाव होता है।

🤔 लेकिन सवाल भी उठते हैं…

  • क्या निर्विरोध चुनावों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हनन तो नहीं होता?
  • क्या ग्रामीणों पर दबाव बनाकर नाम वापसी करवाई जाती है?
  • क्या असहमत उम्मीदवारों को चुप करवा दिया जाता है?

इसलिए निर्वाचन आयोग द्वारा सहमति की प्रमाणिकता की जांच करना जरूरी है।

नियमावली के तहत मतदान शुरू होने से पहले तक प्रधान का निर्विरोध चयन एक कानूनी और व्यावहारिक विकल्प है, लेकिन इसका उपयोग जनहित में और पारदर्शिता के साथ होना चाहिए।

जहां एक ओर यह प्रणाली समरसता और सामूहिक निर्णय की भावना को बढ़ावा देती है, वहीं यह भी जरूरी है कि चुनाव प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष बनी रहे।

 

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