उत्तराखंड में पंचायत चुनाव अब 52 दिन में कराने होंगे: परिसीमन के बाद बदली पंचायतों की तस्वीर
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। पंचायतीराज अधिनियम के अनुसार, पंचायतों का कार्यकाल 31 जुलाई 2024 को समाप्त हो रहा है। ऐसे में राज्य सरकार को अब 52 दिन के भीतर चुनाव प्रक्रिया पूरी करनी होगी। परिसीमन के बाद पंचायतों की स्थिति में भी बड़ा बदलाव आया है, जिससे कई नई पंचायतें अस्तित्व में आई हैं।
कानूनी प्रावधान
उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम के तहत पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। वर्तमान पंचायतों का कार्यकाल 31 जुलाई 2024 को पूरा हो रहा है। इस कारण राज्य सरकार को पंचायत चुनाव 31 जुलाई से पहले यानी आगामी 52 दिनों के भीतर कराने होंगे।
राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कार्यक्रम घोषित करने से पहले राज्य सरकार की तरफ से सभी आवश्यक प्रशासनिक प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी। इन प्रक्रियाओं में आरक्षण निर्धारण, मतदाता सूची अद्यतन और प्रशासनिक सीमांकन शामिल हैं।
परिसीमन के बाद पंचायतों की नई तस्वीर
हाल ही में राज्य सरकार द्वारा की गई पंचायतों के परिसीमन प्रक्रिया के बाद ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों की संख्या में बदलाव हुआ है। कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
* ग्राम पंचायतें : 7,796 से बढ़कर 7,823
* क्षेत्र पंचायतें : 219 से बढ़कर 357
* जिला पंचायत सीटें : 389
* नए ग्राम : 3,162 ग्रामों को नई पंचायतों में जोड़ा गया है।
यह बदलाव स्थानीय विकास योजनाओं, योजनाओं के क्रियान्वयन और बजट आवंटन में बेहतर संतुलन लाने के उद्देश्य से किया गया है।
प्रशासन और निर्वाचन आयोग की तैयारी
राज्य निर्वाचन आयोग और पंचायतीराज विभाग ने सभी जिलों को निर्देश जारी कर दिए हैं कि वे परिसीमन के बाद नए आंकड़ों के अनुसार सभी प्रक्रियाएं जल्द से जल्द पूर्ण करें। चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद नामांकन, मतदान और मतगणना की प्रक्रिया तय की जाएगी।
पंचायतीराज निदेशक सुरेश कुमार ने जानकारी दी कि परिसीमन की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है और अब चुनाव के लिए बाकी तैयारियां चल रही हैं।
नई संरचना से उम्मीद
पंचायत चुनाव केवल जनप्रतिनिधि चुनने का माध्यम नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन की रीढ़ होते हैं। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में पंचायतें ही स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं का संचालन करती हैं।
ग्राम पंचायतों की नई संरचना से यह उम्मीद की जा रही है कि अब स्थानीय जरूरतों के अनुसार योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू किया जा सकेगा।
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव अब समय के खिलाफ एक दौड़ बन गए हैं। राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है कि वे संवैधानिक समयसीमा के भीतर निष्पक्ष और सुचारु रूप से चुनाव संपन्न कराएं। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि नई पंचायत व्यवस्था ग्रामीण विकास की रफ्तार को तेज करे।