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हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: विभागीय गलती पर कर्मचारी नहीं, अधिकारी जिम्मेदार

हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: विभागीय गलती पर कर्मचारी नहीं, अधिकारी जिम्मेदार

हाइलाइट्स

  • नियुक्ति प्रक्रिया में विभागीय गलती का जिम्मा कर्मचारी पर नहीं डाला जा सकता, ऐसा करना अन्यायपूर्ण: उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला।

  • उत्तराखंड पेयजल निगम की महिला ईई सरिता गुप्ता की बर्खास्तगी को अदालत ने अवैध बताया, तुरंत पुनर्बहाली और सभी लाभ देने का आदेश।

  • नियुक्ति के समय से लेकर पदोन्नति तक विभाग जानता था कि वह उत्तराखंड की मूल निवासी नहीं हैं, फिर भी नियुक्ति-पत्र और प्रमोशन जारी किया।

  • 2 दशक बाद सेवा से हटाना विभागीय गलती का फायदा उठाने जैसा, जिसे अदालत ने गलत ठहराया।

  • विज्ञापन में उत्तराखंड मूल के लिए आरक्षण की कोई स्पष्ट शर्त नहीं थी।

  • यह फैसला कर्मचारियों के लिए मिसाल बनेगा: “गलती की सज़ा कर्मचारी को नहीं मिलनी चाहिए, दोष अधिकारियों का है।”


उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नियुक्ति या भर्ती प्रक्रिया में विभागीय गलतियों के लिए कर्मचारी को जिम्मेदार ठहराने की परंपरा पर विराम लगाते हुए, एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। अदालत ने साफ कहा है कि जब विभाग ने खुद नियुक्ति की शर्तों की अनदेखी या उल्लंघन किया और वर्षों बाद कर्मचारी पर कार्रवाई की, तो यह न केवल अन्याय, बल्कि सरकार का अपने ही दोष का फायदा उठाना है ।


महिला अभियंता की बर्खास्तगी को अवैध घोषित

उत्तराखंड पेयजल निगम की महिला अधिशासी अभियंता (ईई-सिविल) सरिता गुप्ता की बर्खास्तगी के मामले में हाईकोर्ट ने विशेष टिप्पणी की:

  • जनवरी 2007 की विज्ञप्ति में सामान्य वर्ग (महिला) के 39 पद निकाले गए थे; महिला अभ्यर्थियों को 30% क्षैतिज आरक्षण दिया गया था।

  • चयन, नियुक्तिपत्र और 2018 में पदोन्नति तक विभाग को उनके मूल निवास की जानकारी थी।

  • 2021 में राज्य के मूल निवास के आधार पर नोटिस, 2024 में बर्खास्तगी कर दी गई।

  • कोर्ट ने माना कि विज्ञापन में उत्तराखंड मूल की शर्त स्पष्ट नहीं थी ।


विभागीय गलती का बोझ कर्मचारी पर नहीं

हाईकोर्ट ने फैसले में कहा:

  • यदि भर्ती प्रक्रिया में किसी भी किस्म की त्रुटि होती है, तो उसका जिम्मेदार कर्मचारी नहीं, विभाग और नियुक्ति करने वाले अधिकारी होते हैं

  • कर्मी ने नियमानुसार फॉर्म भरा, विभाग ने सभी प्रमाण पत्र जांचे, वर्षों तक सेवा ली, यहां तक कि पदोन्नति भी दी ।

  • इतने वर्षों बाद सिर्फ विभाग की लापरवाही के चलते बर्खास्त कर देना न केवल गैरकानूनी, बल्कि अन्यायपूर्ण भी है।


पुनर्बहाली और सभी लाभ देने का आदेश

न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की अदालत ने आदेश दिया कि:

  • बर्खास्तगी अवैध मानी जाए।

  • कर्मचारी को तत्काल पुनर्बहाल किया जाए और सभी देय लाभ (सैलरी, प्रमोशन, पेंशन/अन्य लाभ) दिए जाएं ।

  • दो दशक बाद सेवा से हटाना, विभाग के दोष को छुपाने जैसा है, जो संविधान व सेवा कानूनों के विरुद्ध है।


कानूनी और प्रशासनिक निष्कर्ष

यह निर्णय देशभर के सरकारी विभागों में भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और गंभीर बनाने की दिशा में मिसाल बनेगा। नियुक्ति के नियम स्पष्ट रूप से घोषित करना, प्रमाण पत्रों की पूर्ण और पारदर्शी जांच करना अब विभाग की जिम्मेदारी है।

  • साथ ही, इस फैसले के बाद विभागीय लापरवाही का शिकार कर्मचारी कानूनी राहत के लिए उम्मीद से अदालत जा सकते हैं।

  • इससे भविष्य में किसी कर्मचारी को विभागीय गलतियों की वजह से अन्याय का शिकार होने से बचाव होगा।


उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह निर्णय कर्मचारियों के अधिकारों और न्याय के सिद्धांतों की रक्षा करने वाला है। यह आदेश न केवल सरिता गुप्ता बल्कि देश के हर कर्मचारी के लिए नजीर है कि सरकारी नियुक्ति में विभागीय गलती की सज़ा कर्मचारी को नहीं मिलनी चाहिए। विभागों को चाहिए कि वे हर नियुक्ति में पारदर्शिता व स्पष्टता रखें और भर्ती की हर शर्त को पूरी ईमानदारी से लागू करें।

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