उत्तराखंड: डूबते दोस्त को बचाने कूदा युवक, दोनों गंगा में बहे – SDRF की रेस्क्यू टीम जुटी तलाश में
उत्तराखंड के तीर्थनगरी ऋषिकेश में एक दर्दनाक हादसा सामने आया है। लक्ष्मणझूला थाना क्षेत्र के मस्तराम घाट पर गंगा में नहाने के दौरान एक युवक बह गया। उसका साथी उसे बचाने के लिए नदी में कूदा, लेकिन वह भी लहरों के तेज बहाव में समा गया। दोनों युवकों की तलाश में पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें जुटी हुई हैं।
घटना का पूरा विवरण
शुक्रवार सुबह करीब साढ़े दस बजे की यह घटना ऋषिकेश के मस्तराम घाट की है, जो भागीरथी धाम के पास स्थित है। दो युवक घाट पर स्नान कर रहे थे, जब उनमें से एक का अचानक पत्थर पर पैर फिसल गया और वह गंगा की तेज धारा में बहने लगा। यह देखकर उसका मित्र तुरंत उसे बचाने के लिए नदी में कूद पड़ा।
लेकिन गंगा की प्रचंड लहरों और बढ़े हुए जलस्तर के कारण वह भी संभल नहीं सका और बह गया। घटनास्थल पर मौजूद स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी।
पुलिस और SDRF की तत्परता
सूचना मिलते ही लक्ष्मणझूला थाना पुलिस मौके पर पहुंची और एसडीआरएफ (राज्य आपदा प्रतिवादन बल) को सूचित किया गया। दोनों एजेंसियों ने मौके पर पहुंचकर युवकों की खोजबीन शुरू कर दी।
घटनास्थल पर युवकों के कपड़े और मोबाइल मिले, जिससे उनकी पहचान की गई और परिजनों को सूचना दी गई।
पहचान और पारिवारिक जानकारी
मोबाइल फोन से संपर्क कर जब पुलिस ने परिजनों को सूचित किया, तो एक युवक की मां कमलेश ने पुष्टि की कि उनका बेटा कृष (उम्र 19 वर्ष) गुरुग्राम (हरियाणा) के नारपुर क्षेत्र का निवासी है और गुरुवार को अपने कुछ दोस्तों के साथ ऋषिकेश घूमने आया था।
परिजन से अन्य साथियों की जानकारी मांगी गई, लेकिन वह स्पष्ट जानकारी नहीं दे सके।
सुरक्षा के अभाव पर उठते सवाल
यह घटना गंगा घाटों पर सुरक्षा के अभाव की ओर भी इशारा करती है। घटनास्थल ऐसा स्नान घाट है जहां सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। न तो कोई चेन लगी थी, न ही चेतावनी बोर्ड। बारिश के मौसम में जब गंगा का जलस्तर बढ़ा रहता है, ऐसे में इस प्रकार के घाटों पर विशेष निगरानी और प्रतिबंध आवश्यक होते हैं।
लक्ष्मणझूला थानाध्यक्ष संतोष पैथवाल के अनुसार, अब असुरक्षित घाटों पर जाने पर रोक लगा दी गई है और लोगों को केवल सुरक्षित घाटों पर ही स्नान करने के निर्देश दिए गए हैं।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
स्थानीय निवासियों ने बताया कि मानसून के दिनों में गंगा का जल स्तर बहुत तेज होता है। बावजूद इसके, कई लोग अज्ञानतावश या रोमांच के चलते इन घाटों पर उतर जाते हैं।
एक स्थानीय दुकानदार रमेश बिष्ट ने कहा,
“हर साल ऐसे हादसे होते हैं, लेकिन प्रशासन केवल हादसे के बाद ही सतर्क होता है। अगर हर घाट पर चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं और जीवन रक्षक उपकरण उपलब्ध कराए जाएं, तो जानें बच सकती हैं।”
गंगा में स्नान के दौरान बरतें यह सावधानियां
- मानसून के समय गंगा में नहाने से बचें।
- कभी भी अकेले घाट पर न उतरें।
- असुरक्षित घाटों पर जाने से परहेज करें।
- बच्चों को गहरे पानी में न जाने दें।
- स्थानीय गाइड या पुलिस की सलाह को अनदेखा न करें।
- मेला या यात्रा सीजन में घाटों पर जीवन रक्षक कर्मी नियुक्त करें।
गंगा में डूबने की घटनाएं केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल हजारों लोग नदियों, झीलों और तालाबों में डूबने से अपनी जान गंवाते हैं।
2023 में अकेले गंगा नदी में डूबने से 1,200 से अधिक लोगों की मृत्यु दर्ज की गई थी, जिसमें बड़ी संख्या उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार से थी। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि जल सुरक्षा को लेकर देश में गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है।
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और नदी बहुल राज्य में SDRF की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रतिवर्ष डूबने की घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें SDRF को प्राथमिक भूमिका निभानी पड़ती है।
हालांकि सीमित संसाधन और उपकरण SDRF के लिए चुनौती बने रहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि SDRF की क्षमता को और बढ़ाना होगा ताकि तेजी से खोज और बचाव कार्य किए जा सकें।
सरकार के लिए सुझाव
- सभी स्नान घाटों की सुरक्षा जांच होनी चाहिए।
- चेतावनी संकेतक और जीवन रक्षक रेखाएं (Rope Chain) लगाई जानी चाहिए।
- मानसून के दौरान संवेदनशील घाटों पर स्नान प्रतिबंधित किया जाए।
- SDRF की टीम को आधुनिक उपकरण और नावें प्रदान की जाएं।
- पर्यटकों को गंगा स्नान से पूर्व सुरक्षा निर्देशों से अवगत कराना अनिवार्य किया जाए।
ऋषिकेश में घटी यह त्रासदी महज एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सुरक्षा व्यवस्थाओं की एक बड़ी चूक का संकेत है। समाज, प्रशासन और परिवार – तीनों को मिलकर ऐसे हादसों से बचाव के उपाय करने होंगे। जब तक गंगा घाटों पर पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था नहीं होगी, तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे