उत्तराखंड के क्लस्टर स्कूलो पर मचा शोर: शिक्षा मंत्री ने दी स्थिति स्पष्ट करने वाली बड़ी बातें
शिक्षा गुणवत्ता सुधार की दिशा में उठाया गया कदम, न बंद होंगे स्कूल, न घटेंगे शिक्षक
देहरादून। उत्तराखंड सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा लागू की जा रही क्लस्टर स्कूल योजना को लेकर पिछले कुछ समय से राज्यभर में चर्चाएं और आशंकाएं तेज़ हो गई हैं। कई स्थानों पर यह भ्रम फैल गया कि इस योजना के चलते छोटे स्कूलों को बंद कर दिया जाएगा और शिक्षकों की संख्या में कटौती की जाएगी। ऐसे माहौल में शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने स्पष्ट किया है कि क्लस्टर योजना का उद्देश्य विद्यालयों को बंद करना नहीं बल्कि उन्हें मजबूत बनाना है।
क्या है क्लस्टर स्कूल योजना?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत, सरकार ऐसे विद्यालय समूह (clusters) तैयार कर रही है जो एक-दूसरे के नजदीक स्थित हों और संसाधनों को साझा कर सकें। इससे बच्चों को बेहतर शैक्षणिक वातावरण, स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, वर्चुअल कक्षाएं और खेल सुविधाएं जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल सकेंगी।
क्लस्टर से नहीं बंद होंगे स्कूल: शिक्षा मंत्री का बड़ा बयान
शनिवार को पत्रकारों से बात करते हुए शिक्षा मंत्री डॉ. रावत ने कहा:
“प्रदेश में कोई भी स्कूल क्लस्टर योजना के चलते बंद नहीं किया जा रहा है। कुछ लोग जानकारी के अभाव में इस योजना को लेकर भ्रम फैला रहे हैं। हमारा मकसद सिर्फ और सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना है।”
उन्होंने बताया कि माध्यमिक स्तर के 559 विद्यालयों को क्लस्टर के रूप में विकसित किया जा रहा है, जबकि बेसिक शिक्षा स्तर पर भी इसी प्रकार की योजना पर काम चल रहा है।
हर क्लस्टर स्कूल में होंगे न्यूनतम 5 शिक्षक
शिक्षा मंत्री ने यह भी साफ किया कि:
- हर क्लस्टर स्कूल में कम से कम पांच शिक्षक तैनात किए जाएंगे।
- सरकार नए शिक्षक पद भी सृजित कर रही है ताकि किसी प्रकार की कमी न हो।
- छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए स्मार्ट क्लास, वर्चुअल क्लास, पुस्तकालय, कंप्यूटर लैब, खेल के मैदान जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
विरोध के पीछे की सच्चाई क्या है?
हाल ही में कुछ क्षेत्रों में यह अफवाह फैल गई कि क्लस्टर योजना के चलते छोटे गांवों के स्कूल बंद हो जाएंगे और बच्चों को दूरस्थ स्थानों पर पढ़ाई के लिए जाना पड़ेगा। इस संदर्भ में डॉ. रावत ने कहा कि:
“कोई भी स्कूल बंद नहीं होगा। हां, संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए उन्हें क्लस्टर किया जा रहा है।”
क्या बढ़ेगा बच्चों का बोझ?
यह सवाल उठाया गया कि अगर बच्चों को क्लस्टर स्कूल भेजा जाएगा तो क्या उन्हें लंबी दूरी तय करनी होगी? इस पर अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि:
- क्लस्टर योजना के तहत स्थान निर्धारण इस तरह किया जाएगा कि बच्चों को अधिक दूरी तय न करनी पड़े।
- ट्रांसपोर्ट सुविधा की भी योजना बनाई जा रही है।
उत्तराखंड के भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग ने योजना तैयार की है ताकि दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को किसी प्रकार की कठिनाई न हो। खासतौर पर गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र के ऐसे गांव जहां विद्यालयों के बीच दूरी अधिक है, वहां वैकल्पिक व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं।
यह योजना केवल विद्यालयों को तकनीकी रूप से समृद्ध करने की ही नहीं, बल्कि समान अवसर प्रदान करने की दिशा में भी एक कदम है। अब हर छात्र को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा, चाहे वह किसी छोटे गांव से हो या कस्बे से, समान रूप से उपलब्ध होगी।
योजना की आवश्यकता क्यों?
- शिक्षक उपलब्धता: छोटे विद्यालयों में शिक्षक कम होते हैं, जिससे पढ़ाई प्रभावित होती है। क्लस्टर प्रणाली में शिक्षकों को साझा किया जा सकेगा।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार: सीमित संसाधनों का केंद्रीकृत उपयोग होगा।
- डिजिटल शिक्षा: स्मार्ट क्लास और वर्चुअल लर्निंग को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा।
कई शिक्षक संगठनों ने पहले आशंका जताई थी कि इससे पदों में कटौती हो सकती है। इस पर मंत्री का स्पष्ट बयान आया कि:
“शिक्षकों की संख्या घटेगी नहीं, बल्कि क्लस्टर के तहत नए पदों का सृजन किया जाएगा।”
सरकार की योजना है कि 2025 तक सभी क्लस्टर स्कूलों को स्मार्ट सुविधाओं से लैस कर दिया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार ने बजट प्रावधान भी किया है और CSR मॉडल के तहत निजी क्षेत्र से भी सहयोग लिया जा रहा है।
🔗 बाहरी स्रोत (do-follow):
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का पूरा विवरण देखें – education.gov.in