हाइलाइट्स
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अब टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करना सभी शिक्षकों के लिए अनिवार्य हो गया है।
उत्तराखंड में 10,000 से ज्यादा शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें अब दो साल के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करनी होगी; वरना नौकरी संकट में पड़ सकती है।
पांच साल से कम सेवा शेष होने पर टीईटी की अनिवार्यता नहीं, लेकिन प्रमोशन के लिए यह जरूरी है।
शिक्षक संगठन इसका विरोध कर रहा है, आंदोलन की चेतावनी दी गई है।
सरकार और विभाग ने समाधान निकालने के आदेश दिए हैं; उच्च स्तरीय बैठकें जारी हैं।
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को फ़िलहाल राहत।
निर्णायक फैसला बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने हेतु लिया गया।
उत्तराखंड सहित पूरे देश में शिक्षकों के लिए टीईटी (Teacher Eligibility Test) की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा निर्णय शिक्षा जगत में चर्चा का विषय बन गया है। शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 10,000 से ज्यादा शिक्षक ऐसे हैं जिनकी नियुक्ति वर्ष 2011 से पहले बीटीसी या बीएड की डिग्री के आधार पर हुई थी। अब इन सभी शिक्षकों के सामने नौकरी खतरे का संकट गहरा गया है, क्योंकि उन्हें निश्चित समय-सीमा में टीईटी पास करनी होगी ।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश: किसे देना होगा टीईटी?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि सभी स्कूलों (अल्पसंख्यक स्कूलों को छोड़कर) में काम कर रहे शिक्षकों को, यदि उनकी सेवा में पांच साल से अधिक का समय शेष है, दो साल के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा।
जिनकी सेवा में पांच साल से कम शेष है, वे बिना टीईटी के रिटायर हो सकते हैं, लेकिन अगर प्रमोशन चाहेंगे तो टीईटी की शर्त लागू होगी ।
नए उम्मीदवारों के लिए भी अनिवार्य रूप से टीईटी पास करनी होगी।
एनसीटीई के 2011 के आदेश के मुताबिक, नियुक्ति और प्रमोशन के लिए टीईटी पात्रता आवश्यक है।
अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए फिलहाल छूट, लेकिन अंतिम निर्णय आने तक ही।
उत्तराखंड में कितना बड़ा असर?
राज्य के शिक्षा विभाग का आंकलन है कि 2011 के पहले नियुक्त 15,000 के करीब शिक्षक और साथ ही 300 शिक्षा मित्र ऐसे हैं जिन्होंने टीईटी नहीं दी है। इन शिक्षकों की विभिन्न स्तरों की नियुक्तियां वीटीसी/बीएड जैसे पूर्व योग्यता के आधार पर हुई हैं।
जिला शिक्षा संस्थानों के तहत इन शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षण भी मिला, बावजूद इसके टीईटी की शर्त अब अनिवार्य हो गई है।
शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने मंगलवार को उच्च स्तरीय बैठक के बाद समाधान निकालने के निर्देश दिए हैं ।
शिक्षक संघों का विरोध और आंदोलन
अखिल भारतीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ एवं अन्य शिक्षक संगठन इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं।
राष्ट्रीय महामंत्री सुभाष चौहान ने चेतावनी दी है कि “अगर विभाग ने जबरन शिक्षकों पर टीईटी थोपने की कोशिश की तो हम देशव्यापी आंदोलन करेंगे, जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।”
संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेश त्यागी ने कहा कि सभी नियुक्तियां नियमानुसार हुई हैं, अब ऐसे शिक्षकों को सेवा से वंचित करना अन्यायपूर्ण है।
विभाग व सरकार की कोशिशें
शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत की अध्यक्षता में 2025 सितंबर में आयोजित बैठक में अधिकारियों ने जानकारी दी कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक कार्यवाही की जाएगी, पर साथ ही शिक्षकों के लिए व्यावहारिक समाधान भी तलाशे जाएंगे।
विभाग ने इन्हें दो वर्षों का समय देकर तैयारी करने का विकल्प सुझाने का विचार किया है।
बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि बिना टीईटी के नियमितीकरण या प्रमोशन संभव नहीं होगा ।
प्रभाव
शिक्षकों पर नौकरी खोने का भय हावी है, जिससे उनमें असंतोष और तनाव तेजी से बढ़ रहा है।
कई शिक्षक जिनकी उम्र अधिक है, उनके लिए दो साल के भीतर परीक्षा पास कर पाना चुनौतीपूर्ण होगा।
सामाजिक तौर पर देखा जाए तो यह फैसला देशभर के शिक्षा तंत्र में बदलाव का संकेत है, जिससे बच्चों को योग्य शिक्षक मिल सकेंगे।
बच्चों की गुणवत्ता और शिक्षा व्यवस्था पर असर
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने के लिए शिक्षकों की योग्यता पर ज़ोर दिया है।
शिक्षकों को प्रशिक्षित और योग्य बनाना अब प्राथमिकता है, ताकि RTE के प्रावधानों के अनुरूप सभी विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो सके।
कोर्ट के आदेशों में अनुच्छेद 142 के तहत विशेष निर्देश दिए गए हैं ताकि किसी भी शिक्षक या विभाग को नुकसान न पहुंचे, लेकिन बच्चों की गुणवत्ता से समझौता न हो ।
टीईटी की अनिवार्यता अब देश भर के शिक्षकों के लिए एक नया मोर्चा खोल रही है। उत्तराखंड के हजारों शिक्षकों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है—यदि वे दो साल में टीईटी पास नहीं कर पाते तो उनकी नौकरी पर संकट गहराया रहेगा। शिक्षक संगठनों के धैर्य और शांतिपूर्ण विरोध के बीच सरकार और विभाग समाधान निकालने के प्रयास में जुटे हैं।
यह परिवर्तन शिक्षा व्यवस्था को मजबूत और गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए किया गया है, मगर इसका प्रभाव शिक्षकों और शिक्षा तंत्र दोनों पर गहरा पड़ेगा।



