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सेवा के तीन दशक, पद वही पुराना: शिक्षकों की पदोन्नति में क्यों अटका है सिस्टम?

सेवा के तीन दशक, पद वही पुराना: शिक्षकों की पदोन्नति में क्यों अटका है सिस्टम?

 

उत्तराखंड के सरकारी विद्यालयों में वर्षों तक सेवा देने वाले शिक्षक अपने पूरे कार्यकाल में केवल एक पद से ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल उनके आत्म-सम्मान और करियर ग्रोथ पर असर डालती है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाती है। शिक्षा विभाग के नियमानुसार तीन पदोन्नतियाँ सुनिश्चित की जानी चाहिए, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है।

 

एक पद और पूरी नौकरी: शिक्षकों की पीड़ा

टिहरी गढ़वाल के पशुपति पालीवाल ने 1993 में प्राथमिक विद्यालय में अपनी सेवा शुरू की और 2001 में जूनियर हाईस्कूल में पदोन्नति प्राप्त की। तब से लेकर आज तक वे उसी पद पर कार्यरत हैं।

 

पदोन्नति का नियम सिर्फ कागज़ों में?

 

जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विनोद थापा के अनुसार, “कार्मिक सेवा नियमावली के तहत किसी भी कर्मचारी को न्यूनतम तीन पदोन्नतियाँ मिलनी चाहिए। लेकिन शिक्षा विभाग में शिक्षक 30-35 वर्षों की सेवा के बाद भी या तो एक ही पद पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं या फिर उन्हें केवल एक पदोन्नति मिलती है।”

 

क्या कहता है विभाग?

 

उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा,

 

 “शिक्षकों की वरिष्ठता से संबंधित मामला न्यायालय में लंबित है। यही वजह है कि पदोन्नतियाँ नहीं हो पा रही हैं। जिस दिन शिक्षक कोर्ट से याचिका वापस लेंगे, एक सप्ताह के भीतर पदोन्नति आदेश जारी कर दिए जाएंगे।”

क्या कहता है शिक्षक संघ?

राजकीय शिक्षक संघ कई वर्षों से पदोन्नति की मांग करता आ रहा है। अब संघ के आह्वान पर शिक्षकों ने गैर शैक्षणिक कार्यों का बहिष्कार शुरू कर दिया है। 16 जून को राजकीय शिक्षक संघ के आह्वान पर शिक्षक निदेशालय में धरना देंगे।

हतोत्साहित होते शिक्षक, प्रभावित होती शिक्षा

जब शिक्षक वर्षों की सेवा के बाद भी अपने करियर में प्रगति नहीं देख पाते, तो यह उनकी कार्यक्षमता और मनोबल दोनों पर नकारात्मक असर डालता है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में कार्यरत कई शिक्षक ऐसे हैं, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में शिक्षा का दीप जलाए रखा, लेकिन विभागीय उपेक्षा ने उनकी मेहनत को पहचान नहीं दी।

 

 

उत्तराखंड जैसे राज्य में, जहाँ शैक्षिक संसाधनों की पहले ही कमी है, वहाँ शिक्षकों को उनका हक न मिलना चिंताजनक है। यदि शिक्षा विभाग को वास्तव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करनी है, तो उसे सबसे पहले अपने शिक्षकों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करनी होगी।

 

पदोन्नति सिर्फ नियमों में नहीं, ज़मीनी हकीकत में भी दिखनी चाहिए।

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