देहरादून, 31 मई 2025: उत्तराखंड सरकार ने पर्यावरणीय स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक पहल शुरू की है। अब घरों में पड़ी एक्सपायर्ड, खराब या अनुपयोगी दवाएं न तो नालियों में बहेंगी और न ही कूड़े में फेंकी जाएंगी। इनका निस्तारण वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से किया जाएगा। उत्तराखंड इस दिशा में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की गाइडलाइंस को व्यापक स्तर पर लागू करने वाला देश का पहला राज्य बनने की राह पर है।
“स्वस्थ नागरिक, स्वच्छ उत्तराखंड” मिशन
स्वास्थ्य सचिव और खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) आयुक्त डॉ. आर राजेश कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के निर्देश पर यह योजना शुरू की गई है। उन्होंने कहा, “यह केवल एक सरकारी पहल नहीं, बल्कि हर नागरिक को जोड़ने वाला मिशन है, जो उत्तराखंड को स्वच्छ और हरित स्वास्थ्य सेवा मॉडल की ओर ले जाएगा।” पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के लिए यह कदम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
शहरों से गांवों तक ड्रग टेक-बैक साइट्स
योजना के तहत शहरी, अर्ध-शहरी और पर्वतीय क्षेत्रों में ड्रग टेक-बैक साइट्स स्थापित की जाएंगी। इन केंद्रों पर लोग अपनी अप्रयुक्त, खराब या एक्सपायर्ड दवाएं जमा कर सकेंगे। इन दवाओं को वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत प्रोसेसिंग यूनिट्स में सुरक्षित रूप से नष्ट किया जाएगा।
सीडीएससीओ गाइडलाइंस का पालन
सीडीएससीओ की गाइडलाइंस के अनुसार, दवाओं को उनकी प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया जाएगा, जैसे एक्सपायर्ड, रीकॉल, अप्रयुक्त या कोल्ड चेन में खराब हुई दवाएं। इनका निस्तारण इनसिनरेशन (जलाकर नष्ट करना) और एन्कैप्सुलेशन (सुरक्षित कैप्सूल में बंद करना) जैसी तकनीकों से होगा। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कलर-कोडेड बायोमेडिकल वेस्ट बैग्स, ट्रैकिंग सिस्टम और लॉग बुक सिस्टम लागू किए जाएंगे।
सख्त निगरानी और जवाबदेही
एफडीए के अपर आयुक्त और ड्रग कंट्रोलर ताजबर सिंह जग्गी ने बताया कि अब तक दवाओं का निस्तारण अनियंत्रित ढंग से होने से नदियों और झीलों में रासायनिक प्रदूषण का खतरा बना रहता था। साथ ही, बच्चों और जानवरों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य जोखिम भी बढ़ता था। नई व्यवस्था में दवा निर्माता, थोक व्यापारी, रिटेलर, अस्पताल और उपभोक्ता सभी की जवाबदेही तय होगी। थर्ड पार्टी , ई-ड्रमॉनिटरिंगग लॉग और स्थानीय ड्रग इन्फोर्समेंट यूनिट्स के माध्यम से इसकी कड़ी निगरानी की जाएगी।
यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देगी, बल्कि उत्तराखंड को देश में स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में एक मॉडल राज्य के रूप में स्थापित करेगी।