पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में हर बार मिलेगा आरक्षण: हाईकोर्ट का निर्णय
हाइलाइट्स
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 22 मई 2020 के शासनादेश को किया निरस्त।
अब पूर्व सैनिकों को हर भर्ती में आरक्षण का लाभ मिलेगा, एक बार की सीमा हटी।
वर्ष 1993 के अधिनियम के तहत हुआ क्षैतिज आरक्षण का पुनः स्पष्टीकरण।
पूर्व में एक बार आरक्षण पा चुके पूर्व सैनिक भी अब कई बार नौकरी के लिए पात्र।
इस फैसले से हजारों पूर्व सैन्यकर्मी होंगे लाभान्वित।
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उत्तराखंड हाईकोर्ट का 29 जुलाई 2025 का फैसला राज्य के पूर्व सैनिकों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। अब उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरियों में बार-बार आरक्षण मिलेगा। कोर्ट ने राज्य सरकार के वर्ष 2020 के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया और यह स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी नौकरी की अलग-अलग भर्तियों में पूर्व सैनिक हर बार आरक्षण के हकदार होंगे।
क्या था मामला?
राज्य सरकार ने 22 मई 2020 को आदेश जारी किया था कि यदि कोई पूर्व सैनिक एक बार आरक्षण के तहत सरकारी नौकरी हासिल कर लेता है, तो वह दोबारा इस आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता। इस प्रावधान के चलते हजारों पूर्व सैनिक, जो अपने अनुभव और योग्यताओं के आधार पर आगे बढ़ना चाहते थे, सरकारी नौकरियों के अन्य अवसरों से वंचित हो रहे थे।
पूर्व सैनिक दिनेश कांडपाल ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि वर्ष 1993 के ‘उत्तर प्रदेश सार्वजनिक सेवाओं में क्षैतिज आरक्षण अधिनियम’ के तहत पूर्व सैनिकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों और दिव्यांगजनों को क्षैतिज आरक्षण का अधिकार दिया गया है, लेकिन अधिनियम में कहीं यह नहीं लिखा कि आरक्षण केवल एक बार ही मिलेगा।
हाईकोर्ट का फैसला
मुख्य न्यायमूर्ति मनोज तिवारी एवं न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने कहा:
“वर्ष 1993 के अधिनियम में ‘बार-बार’ की कोई रोक नहीं है, और संविधान के अनुसार किसी को अवसर से वंचित करना गैरसंवैधानिक है।”
इस फैसले के बाद अब पूर्व सैनिक चाहे जितनी बार सरकार की अलग-अलग नौकरियों के लिए आवेदन करें, हर बार क्षैतिज आरक्षण का लाभ ले सकते हैं।
क्षैतिज आरक्षण – आसान भाषा में समझें
क्षैतिज आरक्षण का अर्थ है—आरक्षण किसी विशेष वर्ग (जैसे महिला, दिव्यांग, पूर्व सैनिक) के लिए हर भर्ती में हर श्रेणी (सामान्य, ओबीसी, एससी/एसटी आदि) में लागू होता है, यानी यह सभी वर्गों में समानुपातिक मिलता है, इससे हर भर्ती में पूर्व सैनिकों को अवसर मिलना सुनिश्चित होता है।
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पूर्व सैनिक क्यों थे परेशान?
2020 के शासनादेश के प्रावधान के अनुसार जो पूर्व सैनिक एक बार आरक्षण के तहत सरकारी नौकरी पा चुके थे, वे दूसरी बार यदि पदोन्नति, ट्रांसफर या अन्य भर्ती में शामिल होते तो उन्हें आरक्षण का अधिकार नहीं मिलता। इससे उनके लिए आगे रोजगार के अवसर सीमित हो गए थे और कई लोग अपने अनुभव के अनुसार उच्च पदों के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे थे।
अब क्या होगा बदलाव?
अब उत्तराखंड की किसी भी नई भर्ती में—चाहे वह पुलिस, शिक्षा, प्रशासन या किसी अन्य विभाग में हो—सभी पात्र पूर्व सैनिकों को आरक्षण का लाभ मिलेगा, भले ही उन्होंने पहले भी इस अधिकार का प्रयोग किया हो। कोर्ट के फैसले के बाद सरकार अब नए सिरे से विज्ञप्ति (notification) जारी करेगी ताकि पूर्व सैनिक सभी नौकरियों में हिस्सा ले सकें।
समाज और पूर्व सैनिकों पर प्रभाव
आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा: पूर्व सैनिकों की जीवन-स्थिरता बढ़ेगी, उनकी रोजगार-क्षमता में इजाफा होगा।
मेहनत और अनुभव का मान: अनुभवी सैनिकों को उच्च पदों पर पहुँचने के मौके मिलेंगे।
युवा सैन्यकर्मियों में उत्साह: रोजगार आश्वासन मिलने से सैन्य सेवा के बाद भी भविष्य सुरक्षित रहेगा।
राज्य सरकार की छवि: राज्य में पूर्व सैनिकों के हित में ऐतिहासिक फैसला हुआ है।
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कानूनी और संवैधानिक पहलू
वर्ष 1993 के क्षैतिज आरक्षण अधिनियम का उल्लंघन नहीं हो।
संविधान के अनुच्छेद 16(1) के अनुसार सभी को समान अवसर की गारंटी।
कोर्ट का निर्णय सभी सरकारी विभागों और भर्ती बोर्ड को बाध्यकारी है।
प्रमुख आंकड़े और जानकारी
उत्तराखंड में करीब 2 लाख पूर्व सैनिक और हजारों सैनिक परिवार रहते हैं।
सरकार द्वारा पहले 5% क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान था।
इस फैसले से राज्य की सभी सरकारी भर्ती प्रक्रियाएं प्रभावित होंगी।
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उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह फैसला राज्य के पूर्व सैनिकों के लिए उम्मीद की नई किरण है। अब वे हर भर्ती में आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं, जिससे उनका भविष्य अधिक सुरक्षित और आश्वस्त रहेगा। यह निर्णय न सिर्फ संवैधानिक मर्यादाओं की रक्षा करता है, बल्कि समाज में पूर्व सैनिकों के योगदान का सम्मान और अवसर की समानता भी स्थापित करता है।



