पंजाब के एक ही गांव में ड्रग्स ने 48 घंटे में छीनी चार युवाओं की जान
- पंजाब के ‘लाखो के बेहराम’ गांव में 48 घंटे में चार युवकों की मौत से शोक और आक्रोश का माहौल
- मृतकों में संदीप सिंह, रमणदीप सिंह उर्फ राजन, रणदीप सिंह व उमेद सिंह शामिल, सभी 21-28 वर्ष के बीच
- गांव में सात मेडिकल दुकानें संचालित, कोई अस्पताल/क्लिनिक नहीं; अवैध रूप से नशीली दवा बेचने का आरोप
- गांववाले ने शवों के साथ सड़क पर प्रदर्शन, हाईवे तीन घंटे तक जाम किया
- पीड़ित परिवारों व पंचायत का प्रशासन से सख्त कार्रवाई का आग्रह
- लत के कारण परिवार बिखर गए, कई युवा बार-बार नशा मुक्ति केंद्र भी गए
- एसपी का बयान: “समस्या गहरी, खत्म करने में लगेगा समय”
पंजाब के फिरोजपुर-फाजिल्का रोड स्थित ‘लाखो के बेहराम’ गांव में नशे की लत ने 48 घंटे में चार परिवारों को उजाड़ दिया। सिर्फ दो दिन के भीतर चार युवकों की मौत ने गांव को शोक से भर दिया है। गांव में सात मेडिकल दुकानों पर खुलेआम नशीली दवाएं बिकने के आरोप हैं। लगातार नशा करने के चलते इन युवकों की हालत बिगड़ी; कई बार नशा मुक्ति केंद्र गए, पर लत से छुटकारा नहीं पा सके।
मौत के पीछे नशे की लत और आसान उपलब्धता
48 घंटे की इस त्रासदी में अलग-अलग परिवारों के चार युवक—संदीप, रमणदीप, रणदीप और उमेद—नशे के कारण दम तोड़ गए। कुछ ने गलती से इंजेक्शन से टैबलेट लिया, तो कुछ ने आर्थिक बदहाली और परिवार टूटने से घुट-घुटकर मौत पाई। नशे की लत व मेडिकल दुकानों पर दवाओं की उपलब्धता इस स्थिति के पीछे बड़ी वजह मानी जा रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, उमेद ने अपने घर के सामान तक बेच दिए और कर्ज में डूब गया। रमणदीप नौ साल से नशे के जाल में था और 10 बार डि-एडिक्शन सेंटर गया। उनके चाचा परमजीत सिंह ने बताया कि बार-बार इलाज के बाद भी वापसी में वही रास्ता चुना।
गांववालों का आक्रोश और प्रदर्शन
जिम्मेदारों की अनदेखी से नाराज परिजनों और ग्रामीणों ने शव सड़क पर रखकर हाईवे जाम किया। तीन घंटे तक प्रदर्शन चला, जिसमें प्रशासन और पुलिस से सख्त कार्रवाई की मांग की गई।
पंचायत सदस्य सुखदीप कौर ने कहा, “कई परिवार नशे से तबाह हो गए। पुलिस की सख्ती के बावजूद मेडिकल स्टोर खुलेआम चल रहे हैं।” उन्होंने बताया कि उनका बेटा भी पिछले साल नशे से मर गया था। ग्रामीणों की मांग है कि प्रशासन अवैध मेडिकल दुकानों पर तुरंत कार्रवाई करे।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और सामूहिक जिम्मेदारी
एसपी (डी) मंजीत सिंह के अनुसार, “गांव के कई युवा लंबे समय से नशे के शिकार हैं, पुलिस लगातार समझा रही है व डि-एडिक्शन सेंटर भेज रही है। लेकिन समस्या गहरी है और इसे खत्म करने में समय लगेगा।” प्रशासन ने गांव की सात मेडिकल दुकानों पर छापेमारी के आदेश दिए हैं, कई दुकानों को बंद भी करवाया गया।
महत्वपूर्ण यह है कि 4,500 आबादी वाले इस गांव में कोई अस्पताल या क्लिनिक नहीं है, जिससे इलाज की सुविधा न होना भी एक गंभीर मुद्दा बन गया है। मृतकों के परिवारों और गांववालों का कहना है कि नशे की लत ने सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बिगाड़ दिया है।
समाजशास्त्रियों का कहना है कि ऐसी घटनाएं भविष्य में रोकनी हैं तो केवल पुलिस कार्रवाई नहीं बल्कि शिक्षा, पुनर्वास और कड़ी निगरानी से ही समाधान संभव है।
उड़ता पंजाब
इंटरनेट और मेडिकल दुकानों की आसान पहुंच ने पंजाब के ग्रामीण इलाकों में नशे की समस्या को गहरा कर दिया है। प्रशासन के लचर रवैये और मेडिकल स्टोरों की जांच में छूट से यह स्थिति बेकाबू होती जा रही है। गांववालों के आक्रोश ने स्पष्ट किया कि अब कार्रवाई के लिए और देर नहीं की जा सकती।
नशा एक सामाजिक, आर्थिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है जिसे केवल दंडात्मक कार्रवाई से नहीं, शिक्षा, पुनर्वास और सतत सरकारी हस्तक्षेप से ही रोका जा सकता है।



