कोर्ट के आदेश से संकट: दोहरी मतदाता सूची वाले प्रत्याशियों की सांसें अटकी
हाइलाइट्स
- हाईकोर्ट ने दो जगह वोटर लिस्ट में नाम वाले प्रत्याशियों को लेकर निर्वाचन आयोग के सर्कुलर पर लगाई रोक
- भाजपा समेत सभी दलों के कई प्रत्याशी संकट में, कई सीटों पर पार्टी समर्थित उम्मीदवार हो सकते हैं बाहर
- पंचायती राज अधिनियम की धारा-9 का उल्लंघन कर कई शहरी मतदाता पंचायतों की सूची में शामिल
- हाईकोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन कानूनी अस्पष्टता से प्रत्याशियों की बढ़ी चिंता
- राज्य निर्वाचन आयोग के अगले कदम पर टिकी सभी की निगाहें
उत्तराखंड में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के बीच एक अहम कानूनी मोड़ ने राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़े सभी पक्षों को असमंजस में डाल दिया है। उच्च न्यायालय के एक आदेश ने उन सभी प्रत्याशियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं जिनके नाम शहरी निकाय और ग्राम पंचायत दोनों की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं।
इस आदेश से न सिर्फ निर्वाचन आयोग की ओर से जारी सर्कुलर पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अंदर चल रही बगावत और रणनीति को भी झटका लगा है।
क्या है कोर्ट का आदेश?
उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 की धारा 9 (6) और 9 (7) के अनुसार,
- कोई भी व्यक्ति एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची में नाम नहीं रख सकता।
- यदि वह पहले से किसी नगर निकाय (नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत) की वोटर लिस्ट में दर्ज है, तो पंचायत में नाम जोड़ने के लिए उसे पूर्व सूची से नाम हटाने का प्रमाण देना होगा।
लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी एक सर्कुलर ने स्पष्ट कर दिया था कि अगर किसी व्यक्ति का नाम पंचायत की मतदाता सूची में आ गया है, तो वह मतदान करने और चुनाव लड़ने के योग्य है।
इस सर्कुलर को हाईकोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई के बाद स्थगित (stay) कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया को रोका नहीं है।
भाजपा पर दोहरी मार: बागी और कानूनी पेंच
भाजपा ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी ने 358 में से 320 सीटों पर समर्थित प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। लेकिन पार्टी को पहले ही बागियों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा था। अब कोर्ट के ताजा आदेश से कई सीटों पर उसके अधिकृत उम्मीदवार भी अयोग्य हो सकते हैं।
भाजपा के प्रदेश प्रभारी ज्योति प्रसाद गैरोला ने दावा किया है कि पार्टी को मात्र 20-25 सीटों पर ही कार्यकर्ताओं की बगावत का सामना है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि हर सीट पर अंदरूनी खींचतान चल रही है, और अब कानूनी फंदा एक नई चुनौती बनकर उभरा है।
कैसे आए शहरी मतदाता पंचायतों की सूची में?
इसका उत्तर फिलहाल साफ नहीं है। चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची संशोधन का अधिकार है, लेकिन कैसे निकाय क्षेत्रों के मतदाता ग्राम पंचायतों की सूची में शामिल हो गए, यह जांच का विषय बन गया है।
उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा-9 स्पष्ट करती है कि दो जगह नाम नहीं हो सकता। फिर भी एकलपीठ में सुनवाई के दौरान सामने आया कि कई प्रत्याशियों के नाम दोनों जगह मौजूद हैं, और उन्होंने नामांकन भी दाखिल कर रखा है।
निर्वाचन आयोग की स्थिति और कोर्ट की व्याख्या
राज्य निर्वाचन आयोग का यह कहना रहा है कि जो व्यक्ति पंचायत की वोटर लिस्ट में शामिल है, वह चुनाव लड़ सकता है। लेकिन आयोग ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यदि उसका नाम शहरी निकाय में भी है, तो क्या होगा। इसी अस्पष्टता के कारण हाईकोर्ट ने सर्कुलर पर रोक लगाई।
आयोग सचिव राहुल गोयल का कहना है:
“हाईकोर्ट का आदेश मिलते ही हम इस पर विस्तृत दिशा-निर्देश देंगे। फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है।”
प्रभावित प्रत्याशी और संभावित संकट
अभी तक जो नामांकन स्वीकार किए जा चुके हैं, उनके खिलाफ कानूनी वैधता को लेकर प्रश्नचिह्न लग गया है। सूत्रों के अनुसार:
- गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में ऐसे कई प्रत्याशी हैं जिनका नाम निकाय और पंचायत दोनों की मतदाता सूचियों में दर्ज है।
- टिहरी में एक प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित भी घोषित हो चुकी हैं, जिनका नाम नगर निकाय की सूची में है।
- अगर कोर्ट के निर्देश के अनुसार कार्रवाई हुई, तो भाजपा समर्थित कई प्रत्याशी चुनाव से बाहर हो सकते हैं।
नामांकन प्रक्रिया पर हाईकोर्ट की टिप्पणी
नैनीताल हाईकोर्ट की एकलपीठ न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी ने सितारगंज ब्लॉक के हरेंद्र सिंह सहित 1000 से अधिक मतदाताओं के नाम सूची से हटाने के मामले में चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
हालांकि कोर्ट ने नामांकन प्रक्रिया पर कोई रोक नहीं लगाई, लेकिन मतदाता सूची की वैधता को लेकर आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे हैं।
याचिकाएं खारिज, राहत नहीं
रामनगर, डीडीहाट, हल्द्वानी, ओखलकांडा सहित कई क्षेत्रों के प्रत्याशियों ने याचिकाएं दाखिल की थीं कि उनके नामांकन गलत तरीके से रद्द किए गए हैं या मतदाता सूची में विसंगति है। लेकिन कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया और किसी को भी तत्काल राहत नहीं दी।
अब आगे क्या? प्रत्याशियों की निगाहें आयोग पर
अभी सभी की निगाहें राज्य निर्वाचन आयोग के अगले कदम पर टिकी हैं। यदि आयोग अपने सर्कुलर को संशोधित करता है और प्रत्याशियों की दोहरी मतदाता सूची की स्थिति को अवैध घोषित करता है, तो चुनाव में बड़ी फेरबदल संभव है।
राजनीतिक विश्लेषण: बढ़ेगी अस्थिरता और भ्रम
यह स्थिति न सिर्फ प्रत्याशियों बल्कि मतदाताओं को भी भ्रमित कर सकती है।
- चुनाव से ठीक पहले कानूनी स्थिति का अनिश्चित होना
- निर्वाचित प्रत्याशी की वैधता पर प्रश्न
- राजनीतिक दलों में उठने वाली आंतरिक कलह
यह सब मिलकर चुनाव की प्रक्रिया को गंभीर प्रशासनिक संकट में डाल सकते हैं।
पारदर्शिता और सटीकता आवश्यक
उत्तराखंड पंचायत चुनाव की यह स्थिति बताती है कि मतदाता सूची जैसे मूलभूत दस्तावेज़ में भी पारदर्शिता नहीं है। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
राज्य निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वह जल्द से जल्द स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर स्थिति को सामान्य बनाए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि शहरी और ग्रामीण मतदाता सूची का दुरुपयोग न हो और केवल योग्य प्रत्याशी ही चुनाव लड़ सकें।