अतुल की जीत की लगाम: पहले केदारनाथ में खच्चर चलाए, अब आईआईटी मद्रास में करेगा एमएससी
🟧 हाइलाइट्स
- घोड़े-खच्चर चलाने वाले परिवार से हैं अतुल कुमार
- आईआईटी JAM 2025 में ऑल इंडिया रैंक 649 हासिल
- आर्थिक संकट के बावजूद जारी रखी पढ़ाई
- अब IIT मद्रास से MSC Mathematics की पढ़ाई करेंगे
- दसवीं और बारहवीं में भी रहा टॉप रैंक
- केदारनाथ यात्रा से जुटाया पढ़ाई का खर्च
संकटों की काठी पर सवार होकर सफलता की मंज़िल तक पहुंचे अतुल
रुद्रप्रयाग जनपद के एक छोटे से गांव से निकलकर जब कोई छात्र देश की शीर्ष शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश करता है, तो वह केवल अपनी नहीं, पूरे समाज की उम्मीदों को नयी ऊँचाई देता है। बसुकेदार तहसील के बीरों देवल गांव के अतुल कुमार ने ऐसा ही एक प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है। जिन्होंने घोड़े-खच्चर चलाकर केदारनाथ यात्रियों की सेवा की, और अब वे आईआईटी मद्रास से एमएससी गणित की पढ़ाई करने जा रहे हैं।
आईआईटी JAM में शानदार प्रदर्शन
अतुल ने इस वर्ष आयोजित हुई IIT JAM 2025 परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 649 प्राप्त की। यह परीक्षा देशभर के लाखों विद्यार्थियों के लिए प्रतिस्पर्धा का सबसे कठिन स्तर मानी जाती है। लेकिन सीमित संसाधनों के बावजूद, उन्होंने इस परीक्षा में न केवल सफलता प्राप्त की, बल्कि यह भी दिखाया कि लगन और मेहनत के आगे कोई भी मुश्किल टिक नहीं सकती।
परिवार का संघर्ष और समर्थन बना ताकत
अतुल के पिता श्री ओमप्रकाश केदारनाथ यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चर चलाते हैं, जबकि उनकी माता श्रीमती संगीता देवी एक गृहिणी हैं। सीमित आय, अस्थिर मौसम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में यह परिवार वर्षों से श्रमिक जीवन जी रहा है। लेकिन शिक्षा को लेकर परिवार की निष्ठा कभी कम नहीं हुई।
अतुल बताते हैं,
“हमारे पास कई बार खाना तक नहीं होता था, लेकिन मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई कभी नहीं रुकने दी। जब मुझे पढ़ाई करनी होती थी, तब मेरा छोटा भाई पिता के साथ यात्रियों की सेवा करता था।”
बचपन से ही दिखी असाधारण प्रतिभा
केवल JAM ही नहीं, अतुल की सफलता की कहानी उनके स्कूली जीवन से शुरू होती है। उन्होंने उत्तराखंड बोर्ड की 10वीं कक्षा में राज्य स्तर पर 17वीं रैंक और 12वीं में 21वीं रैंक हासिल की थी। यह संकेत था कि अतुल सामान्य छात्र नहीं हैं। उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय से B.Sc. की पढ़ाई की और साथ ही साथ JAM की तैयारी भी करते रहे।
पढ़ाई और काम का अद्भुत संतुलन
2018 से लेकर 2023 तक अतुल केदारनाथ में यात्रियों को ले जाने के लिए घोड़े-खच्चर चलाने का कार्य करते रहे। यही उनके परिवार की आजीविका का मुख्य स्रोत भी था। इस दौरान, उन्होंने समय निकालकर खुद से JAM की तैयारी की। ना कोई कोचिंग, ना किसी महंगे गाइडेंस का सहारा – केवल आत्मविश्वास, अभ्यास और नियोजित पढ़ाई।
मित्रों और शिक्षकों ने निभाई बड़ी भूमिका
सफलता की राह अकेले तय नहीं होती। अतुल भी इसे स्वीकारते हैं। उन्होंने बताया कि चमोली निवासी मित्र महावीर नेगी, पीजी कॉलेज अगस्त्यमुनि के शिक्षक डॉ. बीरेंद्र प्रसाद, और देवप्रयाग में पुलिस विभाग में तैनात अनिरुद्ध ने उन्हें हर कदम पर सहारा दिया। इन संबंधों ने उन्हें मानसिक और शैक्षणिक सहारा दिया, जो किसी भी प्रतियोगी छात्र के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।
आईआईटी मद्रास में दस्तक की तैयारी
अतुल अब आईआईटी मद्रास में प्रवेश के लिए तैयार हैं। उनका चयन एमएससी गणित कार्यक्रम के लिए हुआ है। वे 22 जुलाई 2025 को संस्थान में फिजिकल वेरिफिकेशन और डॉक्यूमेंट प्रक्रिया के लिए जाएंगे। यह दिन उनके जीवन की दिशा बदलने वाला होगा।
गांव से लेकर आईआईटी तक का सफर
बीरो देवल गांव की गलियों से निकलकर चेन्नई के तकनीकी संस्थान तक का यह सफर किसी फिल्म की कहानी जैसा लगता है। लेकिन यह कहानी सच्ची है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य के लिए यह उदाहरण है कि शिक्षा में निवेश और संघर्ष का कोई विकल्प नहीं।
आर्थिक असमानता के बीच शिक्षा का उजाला
अतुल की कहानी आज के समय में शैक्षिक समानता और अवसरों की कमी पर भी सवाल खड़ा करती है। क्या हर गाँव के मेधावी छात्र को ऐसा ही अवसर मिलता है? क्या शिक्षा के क्षेत्र में नीति-निर्माताओं को ऐसे छात्रों के लिए अलग सहयोगी ढांचा नहीं बनाना चाहिए?
इस प्रश्न के उत्तर में अतुल जैसे युवाओं की सफलता सबसे सटीक जवाब है – सपनों को यदि संकल्प का साथ मिले, तो कोई भी बाधा रुकावट नहीं बन सकती।
स्थानीय युवाओं को प्रेरणा मिल रही
रुद्रप्रयाग, केदारनाथ, चमोली और आसपास के क्षेत्र के छात्र आज अतुल को एक स्थानीय रोल मॉडल के रूप में देख रहे हैं। खासतौर से ऐसे छात्र जो सीमित संसाधनों में जी रहे हैं, उनके लिए अतुल का उदाहरण यह सिखाता है कि संघर्ष के बिना सफलता अधूरी होती है, लेकिन यदि रास्ता सही हो, तो मंजिल दूर नहीं।
अतुल की कहानी केवल एक छात्र की सफलता नहीं, बल्कि हर उस परिवार की उम्मीद है जो शिक्षा को लेकर जूझ रहा है। यह उन अनदेखे सपनों की जीत है जो गांव-गांव में पलते हैं। यह उत्तराखंड की मिट्टी से निकले उस ‘हीरे’ की चमक है जो अब देश की श्रेष्ठतम शिक्षण संस्था में रोशनी बिखेरने जा रहा है।