कानूनी राय पर टिका केदारनाथ प्रतिकृति विवाद: समिति की सख्त चेतावनी
हाइलाइट्स
बीकेटीसी (बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति) ने इटावा, यूपी में बन रहे केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति का कड़ा विरोध किया।
समिति कानूनी सलाह ले रही है, उचित कार्रवाई के आसार।
तीर्थ पुरोहित और धार्मिक संगठनों में रोष, सामाजिक व धार्मिक पहचान को नुकसान की आशंका।
उत्तराखंड सरकार पहले भी चारधाम नाम व पहचान के दुरुपयोग पर कानून बना चुकी है।
विवाद के केंद्र में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव द्वारा समर्थित मंदिर।
ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व को बचाने के सवाल पर स्थानीय उदाहरण और तथ्य उभरकर सामने आए।
हाईवे पर भूस्खलन हटाने का कार्य भी जारी, यात्रा मार्ग सुगम बन रहा है।
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में भगवान केदारनाथ धाम की प्रतिकृति मंदिर बनने से नया विवाद छिड़ गया है। श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) ने इस पहल को खुली चुनौती देते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया है। समिति ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले में कानूनी सलाह ले रही है और उचित समय पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। यह मुद्दा धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक विरासत तथा कानून की सरहदों से जुड़ा है, जिसने उत्तराखंड के तीर्थ पुरोहितों और आम लोगों में भी असंतोष की लहर पैदा कर दी है।
केदारनाथ मंदिर: राष्ट्रीय महत्व और अनूठी पहचान
केदारनाथ धाम न केवल उत्तराखंड राज्य, बल्कि संपूर्ण भारत और दुनिया में महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख स्थान रखता है और इसकी पवित्रता वेद-पुराणों से लेकर आज तक धार्मिक अनुष्ठानों में जानी जाती है। इस स्थल की महत्ता सदियों से स्थापित है, और इसी कारण किसी अन्य स्थान पर ‘हूबहू’ उसकी प्रतिकृति का निर्माण काफी संवेदनशील मसला है।
केदारेश्वर प्रतिकृति मंदिर: विवाद के केंद्र में
इटावा के सैफई में बन रहे मंदिर का नाम ‘केदारेश्वर’ रखा गया है, जिसके शिलान्यास से लेकर अब तक यह चर्चा का विषय बना है। समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्वयं इस निर्माण को समर्थन दिया है तथा एक वीडियो साझा किया, जिससे यह मामला मीडिया और धार्मिक गलियारों में तेजी से फैला।
यह मंदिर छठे चरण में निर्माणाधीन है, और संरचना को मूल केदारनाथ मंदिर जैसा ही प्रतिरूप देने की कोशिश की जा रही है।
जानकारी के अनुसार, यह मंदिर असली केदारनाथ मंदिर से कुछ इंच छोटा है, ताकि तकनीकी रूप से सीधा प्रतिरूप न कहलाए।
निर्माण की लागत 40-50 करोड़ रुपये आंकी गई है, जिससे यह किसी व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं रहा।
समिति व तीर्थ पुरोहितों की प्रतिक्रिया
तीर्थ पुरोहितों और बीकेटीसी ने प्रतिकृति मंदिर निर्माण को धार्मिक मान्यताओं और परंपरा के विरुद्ध करार दिया है। बीकेटीसी अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी का कहना है –
“श्रीकेदारनाथ मंदिर का स्वरूप दुर्लभ है, जिसकी प्रतिकृति बनाना धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं का खुला उल्लंघन है।”
समिति मानती है कि यह केवल धर्म-अनुशासन ही नहीं, राज्य और समाज की पहचान के लिए भी घातक है। कई वरिष्ठ तीर्थ पुरोहितों ने चेतावनी दी कि अगर निर्माण न रुका, तो वे प्रदेश में जाकर धरना देंगे।
प्रशासनिक और कानूनी पक्ष
श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस मामले में कानूनी मार्ग अपनाएगी। उनके अनुसार—
“हम विधिक (कानूनी) सलाह ले रहे हैं। सलाह के आधार पर जरूरी कार्रवाई की जाएगी।”
बीकेटीसी बोर्ड की पिछली बैठक में भी यह तय किया गया कि बदरीनाथ और केदारनाथ के नाम, फोटो, प्रतीक या वीडियो का किसी भी प्रकार से व्यावसायिक प्रयोग या दुरुपयोग हो, तो उस पर सख्त कानूनी रोक लगनी चाहिए।
सरकार ने भी इस बारे में सतर्कता दिखाई। पिछले वर्ष दिल्ली में जब इसी प्रकार के मंदिर की नींव पड़ी थी, तब भी उत्तराखंड सरकार ने चारधाम के नाम से किसी भी प्रकार की ट्रस्ट या संस्था बनाने पर रोक लगा दी थी और राजकीय स्तर पर प्रस्ताव पारित कर कानून लाने की बात कही थी।
धार्मिक व सामाजिक दृष्टि से चिंता
स्थानीय संगठनों और लोगों में यह चिंता है कि इस तरह के मंदिर निर्माण से न केवल आस्था बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान एवं पर्यटन पर भी असर पड़ सकता है।
पुरोहितों ने इसे ‘आस्था के साथ खिलवाड़’ और मंदिर की परंपरा का उल्लंघन बताया है।
स्थानीय अनुभवों में यह भी पाया गया कि पहले जब दिल्ली में ‘श्रीकेदारनाथ धाम ट्रस्ट’ के नाम से निर्माण हुआ, वहां भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई और श्रद्धालुओं को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।
राजनीतिक आयाम और बयान
इस पूरे प्रकरण में राजनीतिक रंग भी साफ दिखा। समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के समर्थन के चलते विवाद और गहरा गया।
दूसरी ओर, बीकेटीसी समेत उत्तराखंड सरकार का रुख शुरू से ही सख्त रहा है। उनके मुताबिक, यह विवाद केवल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, अपितु राज्य की पहचान और आस्था के संरक्षण के लिए है।
मूल मंदिर बनाम प्रतिकृति: क्या है फर्क?
भारत में पहले भी ऐतिहासिक मंदिरों की प्रतिकृतियां कई राज्यों में बनी हैं, लेकिन बद्री-केदार जैसे धामों की, जिन्हें चारधाम में स्थान मिला है, उनकी प्रतिकृति को खास तौर पर आपत्तिजनक माना जाता रहा है। मुख्य आपत्ति इस बात पर है कि ऐसी निर्माण से –
श्रद्धालुओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है,
ऑरिजिनल स्थल की विशेषता और उसका महत्व कम हो सकता है,
आस्था और स्थानीय व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
कानून का प्रवर्तन और समिति की फर्ज
बीकेटीसी बार-बार श्रद्धालुओं से अपील कर रही है कि वे मूल मंदिरों के नाम पर चलने वाली भ्रामक संस्थाओं या ट्रस्ट के झांसे में न आएं और हमेशा अधिकृत badrinath-kedarnath.gov.in वेबसाइट से ही जानकारी या सेवा लें। समिति के नियंत्रण में ही चारधाम की सभी व्यवस्थाएं हैं। इस विषय में सरकारी स्तर पर भी सतर्कता बरती जा रही है, और आवश्यकता पड़ने पर स्पेशल एक्ट व सजा का प्रावधान भी लाया जा सकता है।
भूस्खलन और यात्रा की चुनौती
वर्तमान समय में उत्तराखंड में मौसम भी तीर्थयात्रियों के लिए चुनौती बना है। पिछले सप्ताह बदरीनाथ हाईवे पर भारी बारिश के बाद से लगातार भूस्खलन हो रहा है। पीपलकोटी के नजदीक भनेरपाणी क्षेत्र में मलबा हटाने का युद्धस्तर पर काम चल रहा है ताकि श्रद्धालु बिना बाधा के अपने गंतव्य तक पहुंच सकें।
एनएचआईडीसीएल (राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम) के मजदूर सुबह-शाम हाईवे से मलबा साफ कर रहे हैं। अधिकारी यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि पहाड़ी क्षेत्र से मलबा हटाने के साथ नालियों का निर्माण कर भविष्य में होने वाले भूस्खलन का खतरा कम किया जा सके। पिछले दिनों बारिश में लगभग 40 मीटर लंबी सड़क क्षतिग्रस्त हुई थी, जिससे यात्रा रुक गई थी, लेकिन अब यात्रा सुचारु करने के लिए पुरजोर प्रयास जारी हैं।
इटावा में बन रही केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति पर जारी विवाद महज धार्मिक भावनाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक पहचान, कानूनी स्थिति, आर्थिक पहलू और पर्यटकीय हित भी जुड़ गए हैं। बीकेटीसी और उत्तराखंड सरकार का सख्त रुख यह संकेत देता है कि ऐसे विवाद भविष्य में और गंभीर रूप ले सकते हैं।
समिति द्वारा की जा रही कानूनी तैयारी और आम जनता की जागरूकता ही इस मुद्दे का संतुलित समाधान निकाल सकती है। साथ ही श्रद्धालु भी सतर्क रहें और केवल अधिकृत संस्थाओं या वेबसाइटों से जुड़ी सूचनाओं पर ही भरोसा करें।