जन विश्वास बिल 2.0 : 288 अपराधों पर अब सजा नहीं
हाइलाइट्स बॉक्स
केंद्र सरकार ने लोक सभा में ‘जन विश्वास विधेयक 2.0’ पेश किया
पूर्व में दंडनीय 288 प्रावधानों को दंडनीय श्रेणी से हटाकर जुर्माना या चेतावनी में बदले जाने का प्रस्ताव
35 केंद्रीय कानूनों में संशोधन, छोटे-छोटे तकनीकी उल्लंघनों को अपराधमुक्त करने का मुख्य लक्ष्य
व्यवसायों और आम जनता की ‘सरकार के साथ विश्वास’ बढ़ाने पर बल
विधेयक लोक सभा में पारित के बाद राज्य विधानसभाओं की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा
केंद्र सरकार ने ‘जन विश्वास बिल 2.0’ संसद में पेश कर 288 जुर्मों को अपराधमुक्त करने का महत्वाकांक्षी प्रस्ताव रखा है। इस विधेयक का उद्देश्य छोटी-छोटी त्रुटियों एवं तकनीकी उल्लंघनों के लिए आमजन और व्यवसायी वर्ग को जेल की सजा से बचाकर केवल दंड (जुर्माना) या चेतावनी तक सीमित करना है। सरकार के मुताबिक इससे निवेश में वृद्धि, व्यवसाय करना सरल होगा तथा प्रशासन-लोगों के बीच विश्वास मजबूत होगा।
बिल के प्रमुख प्रावधान
288 प्रावधानों का दंडमुक्तिकरण
विभिन्न केंद्रीय कानूनों के तहत लगाए गए 288 छोटे-छोटे अपराधों को जेल की सजा से निज़ात दिलाकर केवल जुर्माने या चेतावनी योग्य बनाया जाएगा।
इनमें सूचनाप्रौद्योगिकी अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण कानून, व्यावसायिक पंजीकरण नियम आदि शामिल हैं।
35 कानूनों में संशोधन
विधेयक में कुल 35 केंद्रीय कानूनों में संशोधन का खाका तैयार किया गया है।
इनमें चेतावनी–त्रुटि सुधार, दंडात्मक प्रावधानों का फेरबदल, और सरल उल्लंघनों के लिए अपील व्यवस्था शामिल है।
जुर्माना या चेतावनी
अब तक जिन अपराधों पर न्यूनतम तीन महीने तक की जेल होती थी, उन पर केवल दंड या चेतावनी दी जाएगी।
पहली बार उल्लंघन पर चेतावनी, दूसरी बार जुर्माना, तीसरी बार उच्चतम जुर्माना का प्रावधान है।
निवेश व व्यापार में आसानी
छोटे व्यवसाय, स्टार्टअप, और आम जनता को न्यूनतम कानूनी जोखिम के साथ काम करने का अवसर मिलेगा।
विश्वास बनाने के लिए ‘एग्जीक्यूशन पारदर्शिता’ से जुड़ी व्यवस्थाएं और ऑनलाइन अपील पोर्टल की व्यवस्था।
राज्य विधानसभाओं की मंजूरी
पैतृक विधेयक होने के कारण Lok Sabha से पारिति के पश्चात् इसे राज्य विधानसभाओं की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा।
प्रमुख कानून और अपराध जिनमें दंडमुक्तिकरण हुआ
1. मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (Motor Vehicles Act)
वाहन से जुड़े दस्तावेज सही समय पर नहीं रखने, ट्रांसपोर्ट नियमों की मामूली अनदेखी, लाइसेंस संबंधी देरी आदि।
पहले इन पर जेल का प्रावधान था, अब सिर्फ जुर्माना/चेतावनी.
2. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934
NBFC कंपनियों द्वारा दस्तावेज प्रस्तुत न करने पर अब कोई जेल नहीं, केवल जुर्माना.
3. कृषि उत्पाद अधिनियम
ग्रेडिंग/मार्किंग नियमों की छोटी लापरवाही – अब वित्तीय दंड.
4. बिजली अधिनियम, 2003 (Electricity Act)
लाइसेंस, रिपोर्टिंग या ऑपरेशनल कार्य में छोटी भूल।
जेल का प्रावधान हटाकर जुर्माना या चेतावनी.
5. सिनेमैटोग्राफी अधिनियम, 1952 (Cinematography Act)
फिल्म प्रमाणन या लाइसेंस संबंधी मामूली भूल – अब वित्तीय दंड.
6. लीगल मेट्रोलॉजी अधिनियम, 2009 (Legal Metrology Act)
गलत वज़न/माप, पैकेजिंग में पंजीकरण की कमी आदि – अब सिविल पेनल्टी, न कि क्रिमिनल केस.
7. इंडियन फॉरेस्ट एक्ट, 1927 (Indian Forest Act)
केवल मामूली पर्यावरणीय भूलों पर जेल हटा दी गई, बड़ी अपेक्षाएं अभी भी अपराध.
8. वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट, 1933
बगैर कागज़ात के वायरलेस उपकरण रखने पर सिर्फ जुर्माना/चेतावनी.
9. इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1898
पोस्ट ऑफिस कर्मचारियों/एजेंट्स की प्रक्रियात्मक गड़बड़ियों पर अब सिर्फ जुर्माना.
10. कोर उद्योग और टेक्सटाइल एक्ट
लाइसेंसिंग, रिपोर्टिंग की प्रक्रियागत भूलों पर जेल हटाकर जुर्माना व्यवस्था.
11. ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940
आयुर्वेदिक/सिद्ध/यूनानी दवाई निर्माण या बिक्री में छोटी गलती, पहले 6 महीने तक जेल, अब सिर्फ अधिक जुर्माना.
सरकारी तर्क
सरकार का तर्क: छोटे उल्लंघनों पर कारावास से जनता का समय न्यायालय में बर्बाद होता है, जबकि जुर्माना और चेतावनी से सुधारात्मक प्रभाव अधिक होता है।
सामाजिक प्रभाव:
आम आदमी प्रदेश–केंद्र सरकार पर भरोसा बनाए रखेगा।
न्यायपालिका का बोझ घटेगा, जिससे जटिल मामलों का त्वरित निपटारा संभव होगा।
व्यापार और निवेश आकर्षण में वृद्धि कर रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
जन विश्वास बिल 2.0 से जुड़े 288 दंडमुक्तिकरण प्रावधान छोटे अपराधों को दंड या चेतावनी तक सीमित कर आमजन और कारोबारियों के बीच सरकार के प्रति विश्वास बढ़ाने की दृष्टि रखते हैं। बिल को अंतिम रूप देने के लिए जल्द ही लोक सभा में चर्चा के बाद राज्य विधानसभाओं की मंजूरी का इंतजार रहेगा।
यह पहल भारत में सामाजिक न्याय और विकास के संतुलन को नया आयाम दे सकती है।


