हरिद्वार महिला अस्पताल में गर्भवती को फर्श पर देना पड़ा बच्चे को जन्म: डॉक्टर बर्खास्त
हाइलाइट्स:
- हरिद्वार के जिला महिला अस्पताल में गर्भवती महिला को फर्श पर बच्चे को जन्म देना पड़ा।
- डॉ. सलोनी पंथी ने प्रसव कराने से इनकार कर दिया था।
- मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने डॉक्टर की सेवाएं तत्काल समाप्त की।
- दो नर्सिंग अधिकारियों ज्ञानेंद्री और वंशिका मित्तल को प्रतिकूल प्रविष्टि दी गई।
- आशा कार्यकर्ता की मदद से महिला ने बेड पर बच्ची को जन्म दिया।
- घटना सोमवार रात 9:30 बजे ब्रह्मपुरी निवासी महिला के साथ हुई।
- सीएमओ ने भविष्य में भी डॉ. सलोनी को सेवा न देने की संस्तुति की है
- कांग्रेस और महिला आयोग ने मामले में संज्ञान लिया।
हरिद्वार। जिला महिला अस्पताल में एक शर्मनाक घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग ने तत्काल कार्रवाई की है। सोमवार रात को ब्रह्मपुरी से आई एक गर्भवती महिला को ड्यूटी डॉक्टर ने भर्ती करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उसे अस्पताल के फर्श पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने 24 घंटे की जांच के बाद अनुबंधित डॉ. सलोनी पंथी की सेवाएं समाप्त कर दीं और दो नर्सों के खिलाफ भी कार्रवाई की।
घटना का विस्तृत विवरण और डॉक्टर की लापरवाही
सोमवार रात लगभग 9:30 बजे ब्रह्मपुरी निवासी एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा के कारण आशा कार्यकर्ता के साथ महिला अस्पताल लाया गया। ड्यूटी पर मौजूद डॉ. सलोनी पंथी ने महिला को केवल देखकर ही कहा कि “अभी बच्चा पैदा नहीं हो रहा है, यहां से चली जाएं” और डिलीवरी कराने से साफ इनकार कर दिया। डॉक्टर ने साथ आई आशा कार्यकर्ता के साथ भी अभद्र व्यवहार किया और महिला को भर्ती नहीं किया।
जब गर्भवती महिला का दर्द बढ़ता गया और वह फर्श पर तड़पने लगी, तब भी डॉक्टर ने कोई सहायता नहीं की। रात करीब 12:30 बजे जब महिला की डिलीवरी होने लगी, तो आशा कार्यकर्ता ने हिम्मत दिखाते हुए उसे बेड पर लिटाया और बिना किसी चिकित्सा सहायता के एक कन्या को जन्म दिया गया। बच्चे के जन्म लेने के बाद ही डॉक्टर ने अपनी गर्दन बचाने के लिए महिला को भर्ती कर लिया।
और भी शर्मनाक बात यह थी कि जब आशा कार्यकर्ता ने घटना का वीडियो बनाना शुरू किया, तो अस्पताल स्टाफ ने उसका मोबाइल छीनने की कोशिश की और फोटो-वीडियो डिलीट कर दिए, ताकि सबूत न मिले। डॉक्टर ने आशा कार्यकर्ता से कहा कि “तेरा मरीज है, सफाई भी तू कर”।
स्वास्थ्य विभाग की तत्काल कार्रवाई और जांच
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने घटना की गंभीरता को समझते हुए तत्काल प्रमुख अधीक्षक डॉ. आरबी सिंह से 24 घंटे के भीतर जांच रिपोर्ट मांगी । जांच में डॉ. सलोनी पंथी प्रथम दृष्टया दोषी पाई गईं, जिसके बाद सीएमओ ने उनकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दीं। विशेष बात यह है कि डॉ. सलोनी का अनुबंध 30 सितंबर को समाप्त हो चुका था और 1 अक्तूबर को नया अनुबंध होना था, लेकिन इस घटना के कारण उनका अनुबंध नवीकरण नहीं किया गया।
इसके साथ ही घटना के समय ड्यूटी पर मौजूद दो स्टाफ नर्स ज्ञानेंद्री और वंशिका मित्तल की लापरवाही भी सामने आई, जिसके लिए उनकी सेवा पुस्तिका में प्रतिकूल प्रविष्टि दर्ज की गई है। प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरबी सिंह को भी चेतावनी दी गई है कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सीएमओ ने शासन से सिफारिश की है कि भविष्य में डॉ. सलोनी पंथी की सेवा न ली जाए और उनके साथ कोई अनुबंध न किया जाए, ताकि फिर से किसी गर्भवती महिला की जान से खिलवाड़ न हो सके। सीएमओ ने स्पष्ट कहा कि “लापरवाही बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी”।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और महिला आयोग का संज्ञान
इस शर्मनाक घटना पर कांग्रेस पार्टी ने गांधीवादी तरीके से विरोध प्रदर्शन किया। पूर्व सभासद अशोक शर्मा के नेतृत्व में कांग्रेसियों ने पहले जिला अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डॉ. आरबी सिंह को फूल मालाएं पहनाकर व्यंग्यात्मक बधाई दी। उन्होंने कहा “बधाई हो, आपकी वजह से महिलाएं फर्श पर बच्चों को जन्म दे रही हैं”।
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने भी इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए अपनी नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि “यह बहुत चिंता का विषय है। यदि अस्पताल में तैनात चिकित्सकों या कर्मचारियों की ओर से किसी के भी साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी”।
सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है और लोग सरकारी अस्पतालों की संवेदनहीनता पर गुस्सा जता रहे हैं । स्थानीय लोगों का कहना है कि तीर्थनगरी हरिद्वार में अगर यह हालात हैं, तो ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी भयावह होगी।
हरिद्वार महिला अस्पताल की यह घटना भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की गंभीर कमियों को उजागर करती है। डॉ. सलोनी पंथी की तत्काल बर्खास्तगी और अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई से यह संदेश मिलता है कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हालांकि, यह घटना दिखाती है कि सिर्फ कार्रवाई काफी नहीं है, बल्कि सिस्टम में व्यापक सुधार की जरूरत है।
जच्चा-बच्चा दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना स्वास्थ्य प्रणाली की मूलभूत जिम्मेदारी है। इस घटना के बाद उम्मीद की जा सकती है कि अन्य अस्पतालों में भी ऐसी लापरवाही को लेकर सतर्कता बढ़ेगी। सीएमओ का यह कहना सही है कि “सरकारी अस्पतालों में मरीजों और तीमारदारों से अभद्रता की किसी भी शिकायत को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा”।



