दीपावली 2025 की तिथि पर विवाद समाप्त: उत्तराखंड ज्योतिष विभाग ने किया स्पष्ट
- उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग ने 20 अक्तूबर को दीपावली मनाने की सिफारिश
- विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. नंदन कुमार तिवारी का शास्त्रसम्मत फैसला
- महालक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 20 अक्तूबर शाम को निर्धारित
- पर्व निर्णय सभा में आंतरिक विवाद, अध्यक्ष जगदीश चंद भट्ट का इस्तीफा
- प्रदोष काल और स्थिर लग्न के अनुसार तिथि निर्धारण
- 21 अक्तूबर को दीपावली मनाना शास्त्रानुकूल नहीं करार
- संरक्षण आचार्य डॉ. भुवन चंद्र त्रिपाठी ने व्यक्त किया अलग मत
- एक राष्ट्र एक पर्व के सिद्धांत को लेकर बनी असहमति
हल्द्वानी। दीपावली 2025 की तिथि को लेकर चल रही असमंजस की स्थिति में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग ने महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया है। विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. नंदन कुमार तिवारी ने शास्त्रीय गणना के आधार पर 20 अक्तूबर को दीपावली मनाना उचित बताया है। हालांकि, इसी के साथ पर्व निर्णय सभा में आंतरिक विवाद भी देखने को मिला है, जिसमें अध्यक्ष और संरक्षक के बीच मतभेद स्पष्ट हो गए हैं।
शास्त्रीय आधार पर 20 अक्तूबर को दीपावली का फैसला
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डॉ. नंदन कुमार तिवारी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ज्योतिष शास्त्र और धर्म शास्त्र के अनुसार दीपावली का पर्व कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि को प्रदोष काल में मनाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए स्थिर लग्न (वृष, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ) में और महानिशीथ काल व्यापिनी में दीपावली मनाने की परंपरा रही है ।
डॉ. तिवारी ने गणना के आधार पर बताया कि 20 अक्तूबर को दोपहर 2:30 बजे के बाद अमावस्या तिथि शुरू हो रही है, जो 21 अक्तूबर को दोपहर 3:58 बजे तक रहेगी। इसलिए महालक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 20 अक्तूबर को ही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रदोष काल का महत्व गृहस्थों एवं व्यापारियों के लिए है, जबकि महानिशीथ काल का उपयोग आगमशास्त्र (तांत्रिक) विधि से पूजन के लिए उपयुक्त है ।
ज्योतिष विभाग के अनुसार विष्णु-लक्ष्मी का संयोग ही प्रदोष काल है। प्रदोष काल से तात्पर्य दिन-रात का संयोग काल है, जहां दिन विष्णु स्वरूप और रात्रि लक्ष्मी स्वरूपा हैं। इन दोनों का संयोग काल ही प्रदोष काल है। 21 अक्तूबर को दोपहर 3:58 के पश्चात प्रतिपदा तिथि लग जाने से दीपावली का प्रदोष कालीन पूजा, स्थिर लग्न में पूजा तथा महानिशीथकालीन पूजा सभी का अभाव हो जाने से उस दिन दीपावली मनाना उचित नहीं है ।
पर्व निर्णय सभा में विवाद और इस्तीफे का मामला
दीपावली पर्व मनाने की तिथि को लेकर पर्व निर्णय सभा में गंभीर विवाद खड़ा हो गया है। सभा के अध्यक्ष जगदीश चंद भट्ट ने इस्तीफा दे दिया है। गूगल मीट में 21 सितंबर को यह तय हुआ था कि जिस दिन भारत सरकार की ओर से दीपावली के लिए अवकाश घोषित किया जाएगा, उसी दिन पर्व मनाया जाएगा। “एक राष्ट्र एक पर्व” के सिद्धांत को अपनाने की बात कही गई थी ।
हालांकि, पर्व निर्णय सभा के संरक्षण आचार्य डॉ. भुवन चंद्र त्रिपाठी ने एक सादे पेज पर अपना बयान जारी कर अलग मत व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि स्थानीय पंचांग के अनुसार दीपावली 21 अक्तूबर को ही है। उनके अनुसार अगर दो दिन अमावस्या रहे तो दूसरे दिन प्रदोष काल में ही महालक्ष्मी पूजन होता है, यह परंपरा सालों से चली आ रही है। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि कई धार्मिक संगठनों और पुरोहित वर्ग ने भी 21 अक्तूबर को दीपावली मनाने के लिए आग्रह किया है ।
इसी प्रकार तारा प्रसाद दिव्य पंचांग के संपादक आचार्य डॉ. रमेश चंद्र जोशी ने भी 21 अक्तूबर को दीपावली मनाने का निर्णय दिया है। यह विवाद उत्तराखंड की धार्मिक संस्थाओं में एकरूपता की चुनौती को दर्शाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर तिथि निर्धारण की स्थिति
देशभर में दीपावली की तिथि को लेकर यह असमंजस नया नहीं है। विभिन्न पंचांगकारों और ज्योतिष संस्थानों के बीच अक्सर मतभेद देखने को मिलते हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार कार्तिक अमावस्या की शुरुआत 20 अक्तूबर 2025 को सुबह 03 बजकर 44 मिनट पर होगी और इसका समापन 21 अक्तूबर 2025 को सुबह 05 बजकर 54 मिनट पर होगा ।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि जब अमावस्या तिथि प्रदोष काल और निशिता काल दोनों में होती है, तब दीपावली का मुख्य पर्व उसी दिन मनाना श्रेष्ठ होता है। इसलिए महालक्ष्मी का पूजन 20 अक्तूबर को ही करना उचित है ।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकार द्वारा 20 अक्तूबर को अवकाश घोषित किया जाता है, तो “एक राष्ट्र एक पर्व” के सिद्धांत के अनुसार पूरे देश में एक ही दिन दीपावली मनानी चाहिए। यह न केवल व्यावहारिक है, बल्कि राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से भी उपयुक्त है ।
दीपावली 2025 की तिथि को लेकर उत्तराखंड ज्योतिष विभाग का स्पष्टीकरण और पर्व निर्णय सभा में आंतरिक विवाद धार्मिक संस्थानों में एकरूपता की आवश्यकता को दर्शाता है। जबकि शास्त्रीय गणना के आधार पर 20 अक्तूबर का समर्थन मिल रहा है, वहीं परंपरागत मान्यताओं के समर्थक 21 अक्तूबर को प्राथमिकता दे रहे हैं।
इस स्थिति में आम जनता को अपने स्थानीय पंचांग और धार्मिक गुरुओं की सलाह के अनुसार निर्णय लेना चाहिए। साथ ही यह आवश्यक है कि भविष्य में ऐसे विवादों से बचने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समान पंचांग प्रणाली विकसित की जाए। रोशनी का यह पावन पर्व चाहे जिस दिन मनाया जाए, इसका मूल संदेश अंधकार पर प्रकाश की विजय और समाज में एकता का है।



