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दिल्ली में सियासी हलचल: केजरीवाल के चार चार आईफोन पर विवाद

दिल्ली में सियासी हलचल: केजरीवाल के चार चार आईफोन पर विवाद

दिल्ली की राजनीति में मोबाइल फोन खरीदारी को लेकर गहमागहमी मची हुई है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार द्वारा मुख्यमंत्री और मंत्रियों के लिए महंगे मोबाइल फोन खरीदने की सीमा बढ़ाए जाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। इसके जवाब में बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के मंत्रियों पर निर्धारित सीमा से कहीं अधिक महंगे फोन खरीदने के आरोप लगाए हैं।

हाइलाइट्स

  • बीजेपी सरकार ने मुख्यमंत्री के लिए 1.5 लाख और मंत्रियों के लिए 1.25 लाख रुपये की मोबाइल फोन खरीदने की सीमा तय की

  • केजरीवाल पर आरोप: 50 हजार की सीमा के बावजूद 1.63 लाख रुपये तक के फोन खरीदे

  • आप नेता सौरभ भारद्वाज ने बीजेपी की नीति पर सवाल उठाए

  • मनीष सिसोदिया, आतिशी और भारद्वाज पर भी लिमिट से महंगे फोन खरीदने के आरोप

बीजेपी की नई मोबाइल नीति

दिल्ली सरकार के प्रशासनिक विभाग ने 9 जुलाई 2025 को एक नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता 1.5 लाख रुपये तक और मंत्री 1.25 लाख रुपये तक के मोबाइल फोन खरीद सकेंगे। यह सुविधा हर दो साल में एक बार मिलेगी और फोन का पूरा बिल सरकार वहन करेगी।

पहले 2013 में मुख्यमंत्री को 50 हजार रुपये और मंत्रियों को 45 हजार रुपये तक के फोन की अनुमति थी। अब यह सीमा तीन गुना बढ़ाई गई है। मोबाइल फोन के अलावा, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के मासिक मोबाइल बिल की भी कोई सीमा नहीं होगी।

बीजेपी के आरोप

दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद और बीजेपी नेता दीपक राज वर्मा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आम आदमी पार्टी के नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया कि अरविंद केजरीवाल ने 2015 से 2022 तक चार बार (अपने कार्यकाल के दौरान) महंगे मोबाइल फोन खरीदे थे:

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  • 2015: आईफोन 6एस प्लस – 81,000 रुपये (सीमा: 50,000 रुपये)

  • 2017: आईफोन 7 प्लस – 69,000 रुपये

  • 2020: आईफोन 12 प्रो मैक्स – 1.39 लाख रुपये

  • 2022: आईफोन 13 प्रो मैक्स – 1.63 लाख रुपये

मनीष सिसोदिया पर भी पांच बार लिमिट से महंगे फोन खरीदने का आरोप लगाया गया है। उन्होंने 2017 में सैमसंग गैलेक्सी S8 (59,899 रुपये), 2019 में आईफोन (1.12 लाख रुपये), 2021 में आईफोन 12 प्रो मैक्स (1.66 लाख रुपये), और 2022 में आईफोन 13 प्रो मैक्स (1.37 लाख रुपये) खरीदे थे।

दिल्ली की राजनीतिक पृष्ठभूमि

दिल्ली में फरवरी 2025 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत हासिल की थी। रेखा गुप्ता शालीमार बाग सीट से आप की उम्मीदवार को 29,595 वोटों से हराकर दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी हैं। वह इस पद को संभालने वाली चौथी महिला हैं।

आशीष सूद जनकपुरी सीट से आप के उम्मीदवार को 18,766 वोटों से हराकर दिल्ली सरकार में शिक्षा, शहरी विकास और बिजली मंत्री बने हैं। वह बीजेपी के प्रमुख नेता हैं और जम्मू-कश्मीर के सह प्रभारी भी हैं।

व्यापक नीति का विवरण

नई नीति के तहत केवल मुख्यमंत्री और मंत्री ही नहीं, बल्कि वरिष्ठ अधिकारी भी महंगे फोन खरीद सकेंगे:

  • मुख्य सचिव: 1 लाख रुपये

  • प्रमुख सचिव: 80,000 रुपये

  • सचिव: 75,000 रुपये

  • विशेष सचिव: 60,000 रुपये

  • निजी सचिव: 50,000 रुपये

मासिक मोबाइल बिल की सीमा भी तय की गई है। मुख्य सचिव को 6,500 रुपये, प्रमुख सचिव को 6,000 रुपये, सचिव को 5,500 रुपये और निजी सचिव को 5,000 रुपये प्रति माह मिलेगा।

विपक्ष का आरोप

आम आदमी पार्टी ने दावा किया है कि बीजेपी अपने “विश्वासघात” को छिपाने के लिए भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगा रही है। पार्टी का कहना है कि उनकी सरकार ने कभी पैसों की कमी का रोना नहीं रोया और अपने हर वादे को पूरा किया।

तकनीकी जानकारी

नई नीति के अनुसार, यदि किसी मंत्री या अधिकारी का मोबाइल फोन तकनीकी रूप से खराब हो जाता है और मरम्मत का खर्च फोन की कीमत के 50% से अधिक आता है, तो फोन को बदला जा सकता है। यह सुविधा केवल दो साल में एक बार ली जा सकती है।

मुख्यमंत्री और मंत्रियों को अब सिम कार्ड नहीं दिया जाएगा, लेकिन उनके मोबाइल फोन का मासिक रिचार्ज और बिल पूरी तरह सरकार वहन करेगी।

राजनीतिक विश्लेषण

यह विवाद दिल्ली की राजनीति में “शीश महल” मुद्दे की याद दिलाता है, जो पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बना था। विपक्ष में बैठी आम आदमी पार्टी अब नई सरकार के हर खर्च पर बारीकी से नजर रख रही है।

बीजेपी का तर्क है कि मोबाइल फोन जनप्रतिनिधियों के लिए एक चलता-फिरता ऑफिस है और यह जनता के काम के लिए जरूरी है। वहीं आप का कहना है कि यह जनता के पैसे की बर्बादी है।

यह विवाद आगामी दिनों में और भी तूल पकड़ सकता है, क्योंकि दोनों पार्टियां अपने-अपने तर्क देकर जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं। दिल्ली की जनता इस बहस को कितनी गंभीरता से लेती है, यह देखना होगा।

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