क्लस्टर स्कूलों में समायोजन के विरोध पर उतरे अभिभावक और छात्र
🟨 हाइलाइट्स:
- पिथौरागढ़ जिले में क्लस्टर स्कूल समायोजन के खिलाफ छात्रों और अभिभावकों का धरना।
- छात्रों का आरोप – “30 किलोमीटर पैदल चलने के बाद कैसे करेंगे पढ़ाई?”
- जंगलों के रास्ते और खराब सड़कों से स्कूल पहुंचना असुरक्षित।
- कांग्रेस अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के नेता और पूर्व जनप्रतिनिधियों का समर्थन।
- चंपावत और बेड़ीनाग में भी क्लस्टर योजना का विरोध – ज्ञापन सौंपे गए।
- शिक्षाविदों और स्थानीय संगठनों ने योजना को भूगोल-विरोधी बताया।
उत्तराखंड सरकार की क्लस्टर स्कूल योजना का उद्देश्य है—दूरदराज के क्षेत्रों में विद्यालयों को एकीकृत करना और संसाधनों का कुशल उपयोग करना। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। विशेषकर सीमांत ज़िलों जैसे पिथौरागढ़ और चंपावत में छात्रों और अभिभावकों ने इस योजना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वे इसे न केवल असुविधाजनक, बल्कि छात्रों की शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन मानते हैं।
🧭 क्या है क्लस्टर स्कूल योजना और इससे क्या बदलेगा?
क्लस्टर स्कूल योजना के अंतर्गत सरकार ऐसे स्कूलों को बंद कर रही है जहां छात्र संख्या कम है और उन्हें पास के किसी बड़े स्कूल (क्लस्टर विद्यालय) में स्थानांतरित किया जा रहा है। इससे सरकार के अनुसार शिक्षकों, संसाधनों और गुणवत्ता पर फोकस बढ़ेगा।
लेकिन पहाड़ी इलाकों में यह मॉडल व्यवहारिक रूप से विफल दिखाई दे रहा है। यहाँ स्कूल तक पहुंचने के लिए बच्चों को जंगल, नदी, चढ़ाई और खराब सड़कों से गुजरना पड़ता है। कुछ क्षेत्रों में तो छात्र को 15 से 30 किलोमीटर तक पैदल सफर करना पड़ता है।
🧒 छात्र बोले – हम कैसे करेंगे रोज़ 30 किलोमीटर का सफर?
गंगोलीहाट तहसील के चौरपाल जीआईसी के छात्रों ने अपने माता-पिता के साथ स्कूल में धरना दिया। उन्होंने कहा कि क्लस्टर विद्यालय पव्वाधार तक का रास्ता जंगलों से होकर गुजरता है, जो न केवल लंबा है, बल्कि खतरनाक भी है।
“सुबह 15 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचना और फिर घर लौटते हुए 15 किलोमीटर… कब पढ़ेंगे? कब आराम करेंगे?” — एक छात्र का कथन।
छात्रों की बात सुनकर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह योजना शिक्षा को दूर करने का कारण बन सकती है, न कि करीब लाने का।
अभिभावकों ने कहा कि जीआईसी चौरपाल को स्थानीय ज़रूरतों को देखते हुए खोला गया था, ताकि 10 से अधिक गांवों के बच्चे पास में पढ़ सकें। क्लस्टर विद्यालय में समायोजन के निर्णय से स्थानीय अभिभावक बेहद नाराज़ हैं।
वे कहते हैं कि इससे बच्चों की पढ़ाई में निरंतरता टूटेगी और ड्रॉपआउट की संभावना बढ़ेगी।
उधर माध्यमिक अतिथि शिक्षक संघ, चंपावत ने एक गूगल मीट मीटिंग के माध्यम से राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि प्रदेश की भौगोलिक विषमताओं को ध्यान में रखे बिना यदि क्लस्टर योजना लागू की गई, तो दूरस्थ क्षेत्र के छात्र भारी नुकसान में रहेंगे।
“यह योजना एक आकार सभी पर फिट नहीं होती (one size fits all)। सरकार को स्थान-विशेष की ज़रूरतें समझनी होंगी।” — चंचल सिंह कुंवर, जिलाध्यक्ष।
आंदोलन की तैयारी
पिथौरागढ़ के बेड़ीनाग ब्लॉक के संगौड स्कूल के समायोजन के विरोध में स्थानीय लोगों ने एसडीएम के माध्यम से शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा कि यहां 54 छात्र वर्तमान में पढ़ाई कर रहे हैं, फिर भी समायोजन की तैयारी चल रही है।
“विद्यालय बंद हुआ तो हम आंदोलन करेंगे।” — नवीन कुमार, ग्रामीण प्रतिनिधि।
कांग्रेस अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश महामंत्री मनोज टम्टा ने चौरपाल स्कूल पहुंचकर अभिभावकों और छात्रों के धरने का समर्थन किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने योजना पर पुनर्विचार नहीं किया, तो वे जनआंदोलन छेड़ेंगे।
❓ क्या क्लस्टर स्कूल योजना को सुधारा जा सकता है?
- क्लस्टर मॉडल शहरी क्षेत्रों में कारगर हो सकता है जहां स्कूलों के बीच दूरी कम हो।
- पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग मॉडल चाहिए जो डिजिटल शिक्षा, स्थानीय शिक्षक और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित हो।
- स्कूल समायोजन से पहले जनसुनवाई, ट्रांसपोर्ट और सुरक्षा की व्यवस्था अनिवार्य होनी चाहिए।
🧭 क्या है समाधान? स्थानीय स्तर की शिक्षा को मज़बूती देना
राज्य सरकार को चाहिए कि वह—
- विद्यालय बंद करने के बजाय संसाधनों का न्यायसंगत वितरण करे।
- स्थानीय लोगों की भागीदारी से निर्णय ले।
- छात्रों की सुरक्षा, समय और शिक्षा के संतुलन को समझे।
- बदहाल सड़कों, परिवहन और शिक्षकों की तैनाती पर विशेष ध्यान दे।
शिक्षा में सुधार का रास्ता संवाद से होकर जाता है, समायोजन से नहीं
उत्तराखंड जैसे राज्य में, जहां भौगोलिक परिस्थिति चुनौतीपूर्ण है, वहां शिक्षा नीतियों में लचीलापन और स्थान विशेष की संवेदनशीलता होना अत्यावश्यक है। क्लस्टर योजना का उद्देश्य अच्छा हो सकता है, लेकिन कार्यान्वयन के स्तर पर खामियों को दूर किए बिना इसे थोपना केवल शिक्षा को संकट में डालना है।
राज्य सरकार को चाहिए कि वह छात्रों की आवाज़ सुने, शिक्षकों की सलाह ले और योजना को क्षेत्रीय वास्तविकताओं के अनुसार ढाले।