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भारतीय कर रहे शिक्षा से ज़्यादा जंक फूड पर खर्च: सर्वेक्षण 

भारतीय कर रहे शिक्षा से ज़्यादा जंक फूड पर खर्च: सर्वेक्षण


हाइलाइट्स

  • भारतीय परिवार शिक्षा व अनाज के बजाय जंक व पैकेज्ड फूड पर ज़्यादा खर्च कर रहे हैं

  • शहरी परिवार मासिक खाद्य बजट का लगभग 50% पैकेज्ड, जंक फूड व डिलीवरी पर खर्च कर रहे हैं

  • ग्रामीण क्षेत्र भी तेज़ी से प्रोसेस्ड-फूड की ओर मुड़ रहे हैं

  • मोटापे व लाइफस्टाइल बीमारियों में दो दशक में तीन गुना बढ़ोतरी

  • 2023-24 में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च ग्रामीण में ₹4,247, शहरी में ₹7,078

  • जंक फूड पर खर्च शिक्षा तथा स्वास्थ्य के वास्तविक खर्च से कहीं अधिक


नवीनतम आंकड़े: खर्च की बदलती प्रवृत्तियां

हाल ही में जारी घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय परिवारों ने 2023-24 में औसत मासिक खर्च का बड़ा हिस्सा डिब्बाबंद, पैकेट और प्रोसेस्ड फूड (जंक फूड व स्नैक्स) पर खर्च किया। शहरी परिवारों का करीब 10-11% खर्च सिर्फ स्नैक, बिस्कुट, नमकीन, कोल्ड ड्रिंक, चिप्स जैसी वस्तुओं पर हुआ, वहीं ग्रामीण क्षेत्र का भी यही अनुपात है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, अनाज, दलहन, दूध, सब्जी पर खर्च में गिरावट, लेकिन बाहर के खाने, स्नैक्स, एवं प्रोसेस्ड आइटमों का हिस्सा अभूतपूर्व तरीके से बढ़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, मासिक बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य, पहनावे, वाहन, बिजली व ईंधन की तुलना में जंक फूड का हिस्सा तेज़ी से बढ़ा है।


दो दशकों में मोटापे और बीमारियों की मार

यूनिसेफ और अन्य संस्थागत रिपोर्टों के मुताबिक भारत सहित दुनिया भर में बच्चों व किशोरों में मोटापा महामारी बन गया है। भारत में पांच साल से कम उम्र के मोटे बच्चों का अनुपात 2005-06 में 1.5% से बढ़कर 2019-21 में 3.4% हो गया। किशोरियों में यह दर 5.4% तथा किशोर लड़कों में 6.6% तक पहुंच गई। इस तरह के आहार से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर, अवसाद, किडनी रोग जैसी परेशानियां भी अब कम उम्र में ही होने लगी हैं।


शहरी-ग्रामीण खर्च का तुलनात्मक ब्योरा

खर्च श्रेणीशहरी परिवार (%)ग्रामीण परिवार (%)
अनाज/दाल45.4
जंक/डिब्बा-बंद फूड10-1110-11
दूध-दही~7~8
सब्जी-फल<4<4
शिक्षा~3~3
चिकित्सा6>7
वाहन/पेट्रोल8.66.6

(स्रोत: घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण 2023-24, रिपोर्ट्स)


सामाजिक-आर्थिक मायने और सरकारी चेतावनी

दस वर्षों में जंक फूड का सामाजिक क्रेज शिक्षा जैसे ज़रूरी क्षेत्र की तुलना में अधिक बढ़ गया है। ग्रामीण भारत में भी पैकेज्ड फूड पर खर्च 2011-12 के 9% से बढ़कर 23% पर पहुंच गया। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि किशोर व युवा वर्ग की यह आदत अगली पीढ़ियों के फिजिकल व मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक असर डालेगी।

सरकार ने ‘फिट इंडिया मूवमेंट’, ‘ईट राइट इंडिया’ जैसे अभियान, खाद्य कर (जैसे शक्कर युक्त पेय पदार्थों पर 40%) और पोषण संबंधित सख्त नियम लागू किए हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जरूरत है–खेती, शिक्षा व स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं पर समाज व नीति-निर्माताओं का फिर से ध्यान केंद्रित करने की।


भारतीय परिवारों का फूड बजट और उपभोग पैटर्न शिक्षा जैसी ज़रूरतों से हटकर तेज़ी से जंक व प्रोसेस्ड फूड की ओर बढ़ रहा है। इसका सीधा परिणाम स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों, आर्थिक बोझ तथा सामाजिक असंतुलन के रूप में सामने आ रहा है। अनुशासन और जागरूक नीतियों के बिना आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य संकट और गहराने की आशंका है।


[संपूर्ण सांख्यिकी व साक्ष्य घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण 2023-24, यूनिसेफ, ICMR, NSSO एवं आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पर आधारित है।]

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