न्यूज़ डेस्क। 05 जून 2025। भारत में 1 मार्च, 2027 से शुरू होने वाली जनगणना में पहली बार जातिगत आंकड़े शामिल होंगे। यह डिजिटल प्रारूप में होगी और सामाजिक न्याय के लिए महत्वपूर्ण होगी।
भारत सरकार ने घोषणा की है कि वर्ष 2027 में होने वाली राष्ट्रीय जनगणना में पहली बार जातिगत आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे। यह जनगणना 1 मार्च, 2027 से शुरू होगी और देश के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में अक्टूबर 2026 से ही गणना शुरू हो जाएगी। यह पहली बार होगा जब स्वतंत्र भारत में जाति आधारित जनगणना को राष्ट्रीय स्तर पर शामिल किया जाएगा। यह जनगणना डिजिटल प्रारूप में होगी, जो इसे और अधिक पारदर्शी और आधुनिक बनाएगी।
भारत में जनगणना हर दस साल में आयोजित की जाती है, लेकिन 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण इसे अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया था। इससे पहले 2011 में हुई जनगणना में जातिगत आंकड़े एकत्र किए गए थे, लेकिन उनकी सटीकता पर सवाल उठने के कारण वह डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया। अब, 16 साल बाद, 2027 में होने वाली जनगणना न केवल जनसंख्या की गणना करेगी, बल्कि विभिन्न जातियों और उप-जातियों की संख्या को भी रिकॉर्ड करेगी। यह कदम सामाजिक न्याय और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
*दो चरणों में होगी जनगणना*
जनगणना दो चरणों में आयोजित होगी। पहले चरण में लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फीले और पहाड़ी क्षेत्रों में अक्टूबर 2026 से गणना शुरू होगी। दूसरे चरण में शेष भारत में 1 मार्च, 2027 से जनगणना शुरू होगी। इसकी संदर्भ तिथि (रेफरेंस डेट) 1 मार्च, 2027 को 12 बजे निर्धारितज की गई है।
*सामाजिक न्याय के लिए महत्वपूर्ण कदम*
जातिगत जनगणना का उद्देश्य देश में विभिन्न जातियों और उप-जातियों की जनसंख्या का सटीक आंकड़ा जुटाना है। इससे सरकार को सामाजिक और आर्थिक नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना सटीक जातिगत आंकड़ों के सामाजिक न्याय की दिशा में नीतियां बनाना मुश्किल है।
*राजनैतिक और सामाजिक मांग*
जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों द्वारा की जा रही थी। खासकर बिहार जैसे राज्यों में, जहां अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी करीब 63% है। इस मांग को लेकर तीव्र राजनैतिक बहस देखी गई। बिहार, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने हाल के वर्षों में अपने जातिगत सर्वेक्षण किए हैं, जबकि कर्नाटक में 2015 में हुए सर्वेक्षण के आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए गए हैं।
*डिजिटल जनगणना: एक नया कदम*
2027 की जनगणना भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी। इसमें स्व-गणना (सेल्फ-इन्यूमरेशन) की सुविधा होगी। जिसके तहत लोग ऑनलाइन अपनी जानकारी दर्ज कर सकेंगे। यह प्रक्रिया न केवल समय बचाएगी, बल्कि डेटा की सटीकता और पारदर्शिता को भी बढ़ाएगी। सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इस प्रक्रिया के लिए मौजूदा जनगणना अधिनियम 1948 में किसी बदलाव की आवश्यकता नहीं होगी।
2027 की जनगणना भारत के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को समझने का एक ऐतिहासिक अवसर है। पहली बार जातिगत आंकड़ों को शामिल करने और डिजिटल प्रारूप में गणना करने का निर्णय इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है। यह कदम सामाजिक न्याय, पारदर्शिता और समावेशी विकास की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है, बशर्ते इसे सावधानी और निष्पक्षता के साथ लागू किया जाए।