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पिता के डर से जिंदगी हार गई दस साल की मासूम

पिता के डर से जिंदगी हार गई दस साल की मासूम


हाइलाइट्स

  • 10 साल की बच्ची ने सिर्फ बिस्किट-नमकीन खाने के लिए बेचे घर के चावल
  • बड़े भाई ने पिता से कहने की दी धमकी, डर से बच्ची ने कर ली आत्महत्या
  • पिता शोक में बेहाल, मां बार-बार हो रही बेहोश
  • रैपुरा कस्बे की है यह दर्दनाक घटना
  • विशेषज्ञों ने कहा – बच्चों में डर नहीं, भरोसा पैदा करना जरूरी

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के रैपुरा कस्बे में घटी एक हृदय विदारक घटना ने समाज और अभिभावकों को झकझोर कर रख दिया है। एक 10 वर्षीय मासूम बच्ची ने मात्र इस डर से अपनी जान दे दी कि उसके पिता उसे डांटेंगे। यह घटना न सिर्फ पारिवारिक संवाद की विफलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आज के समय में बच्चों की भावनाओं को समझना कितना ज़रूरी हो गया है।


बिस्किट-नमकीन का बालमन

रैपुरा कस्बे में रहने वाले राजकुमार की दस वर्षीय बेटी शालिनी अपने सरल जीवन में चुलबुली, हंसमुख और जिज्ञासु स्वभाव की थी। बुधवार की शाम को उसका मन बिस्किट और नमकीन खाने का हुआ। घर में ये चीजें नहीं थीं और जेब में पैसे भी नहीं थे।

शालिनी ने घर के राशन में से आधा किलो चावल निकाले और पास की दुकान में जाकर बेच दिए। उसे दस रुपये मिले। उन पैसों से उसने अपने मन की तृप्ति के लिए एक-एक पैकेट बिस्किट और नमकीन खरीदा। लेकिन उसकी यह मासूम कोशिश, एक गंभीर मोड़ ले गई।

जैसे ही वह घर लौटी, उसके बड़े भाई विपिन (12 वर्ष) ने उसे देख लिया। उसने कहा – “पापा से कह दूंगा कि तुमने घर से चावल चुराए और बेचे हैं।” यह बात सुनकर शालिनी सन्न रह गई।


पापा डांटेंगे

शालिनी के मन में यह बात घर कर गई कि पापा डांटेंगे, मारेंगे और घर में सबके सामने अपमान होगा। यह सोचते-सोचते उसने एक ऐसा कदम उठा लिया, जिससे पूरा परिवार तिल-तिल कर टूट गया।

उसने चुपचाप कमरे में जाकर कपड़े टांगने वाले बांस पर साड़ी का फंदा बनाया और फांसी लगा ली।

कुछ देर बाद छोटा भाई प्रियांश कमरे में गया तो बहन को लटका देखा। शोर मचाया। माता-पिता दौड़े। अस्पताल ले गए लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।


परिवार टूटा, समाज स्तब्ध

राजकुमार और उनकी पत्नी गौरा इस घटना से शोक में टूट चुके हैं। मां बार-बार बेहोश हो रही है और पिता दीवार से सिर पटकते हुए बस यही कह रहे हैं – “काश मैंने उसे डांटा न होता, काश वो मुझसे डरती न होती।”

भाई विपिन भी लगातार रो रहा है। कस्बे में शोक का माहौल है। पड़ोसी और रिश्तेदार भी यह समझ नहीं पा रहे कि केवल बिस्किट के लिए एक बच्ची ने क्यों इतनी बड़ी सजा खुद को दे दी।


बाल मनोविज्ञान के विशेषज्ञ क्या कहते हैं

प्रसिद्ध बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. अर्चना त्रिपाठी कहती हैं –

“यह घटना दर्शाती है कि बच्चों में डर पैदा करने के बजाय उनसे संवाद और भावनात्मक जुड़ाव ज़रूरी है। अगर बच्ची को लगता कि उसके माता-पिता उसके साथ हैं, तो शायद यह स्थिति नहीं आती।”


शिक्षा और संवेदना की कमी

यह घटना केवल एक पारिवारिक मामला नहीं है, यह हमारे सामाजिक ताने-बाने की खामियों को भी दर्शाती है। स्कूलों में भावनात्मक शिक्षा और अभिभावकों में सकारात्मक संवाद की कमी एक बड़ा कारण बनती जा रही है बच्चों की मानसिक समस्याओं का।

शालिनी की आत्महत्या ने यह साबित कर दिया कि बच्चों के लिए सबसे बड़ा डर अब परीक्षा या पढ़ाई नहीं, बल्कि पारिवारिक अस्वीकृति और अपमान का भय बन गया है।


सरकारी और संस्थागत भूमिका

उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस मामले में रिपोर्ट मांगी है। जिला प्रशासन की ओर से अधिकारियों की एक टीम परिवार से मिलने पहुंची।

बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष मधु श्रीवास्तव ने बताया कि –

“ऐसे मामलों से निपटने के लिए परामर्शदाताओं की नियुक्ति की जानी चाहिए। स्कूलों में भी मेंटल हेल्थ से जुड़े सत्र नियमित हों।”


मूल प्रश्न : बच्ची डरी क्यों?

इस घटना के बाद मुख्य प्रश्न यही उठता है – शालिनी डरी क्यों?
क्या परिवार में संवाद की कमी थी?
क्या डर से अनुशासन सिखाना सही तरीका है?
क्या माता-पिता अपने बच्चों की भावनाओं को समझते हैं?

इन सवालों के जवाब तलाशने की आवश्यकता आज हर परिवार को है।

शालिनी की यह दुखद घटना एक स्पष्ट संदेश देती है कि बच्चों से संवाद, सहानुभूति और आत्मीयता आज की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है।

अगर एक मासूम बच्ची सिर्फ इस डर से दुनिया छोड़ दे कि उसके पिता उसे डांटेंगे, तो यह केवल पारिवारिक विफलता नहीं, सामाजिक संवेदनशीलता की कमी भी है।

हर माता-पिता, हर शिक्षक और हर अभिभावक को अब यह समझना होगा कि अनुशासन के नाम पर डर नहीं, विश्वास का माहौल ज़रूरी है।

👉 बाल संरक्षण आयोग (ncpcr.gov.in)

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