IMG 20250722 080024

भ्रष्टाचार मामले में ग्रामीण बैंक के पूर्व मैनेजर समेत छह दोषियों को सजा – सीबीआई कोर्ट का फैसला

भ्रष्टाचार मामले में ग्रामीण बैंक के पूर्व मैनेजर समेत छह दोषियों को सजा – सीबीआई कोर्ट का फैसला

हाइलाइट्स:

  • उत्तराखंड ग्रामीण बैंक में 1.23 करोड़ रुपये से अधिक की फर्जीवाड़े की पुष्टि
  • पूर्व शाखा प्रबंधक लक्ष्मण सिंह रावत समेत छह दोषी करार
  • सीबीआई कोर्ट ने 14 साल बाद सुनाया फैसला
  • अदालत ने प्रमुख आरोपियों को 2 वर्ष तक की सजा और ₹15,000-10,000 का जुर्माना सुनाया
  • भ्रष्टाचार और जालसाजी सहित IPC और भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराएँ लगीं
  • सीबीआई की एंटी करप्शन ब्रांच ने गहरी जांच कर 26 गवाह पेश किए
  • फर्जी खातों से करोड़ों की रकम इधर-उधर की गई

देहरादून। उत्तराखंड ग्रामीण बैंक में करोड़ों रुपये के बैंकिंग घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। वर्ष 2010 में दर्ज किए गए इस मामले में, प्रेमनगर शाखा के पूर्व प्रबंधक समेत छह लोगों को हाल ही में दोषी पा कर सजा दी गई। बैंक के मुख्‍य सतर्कता प्रबंधक की शिकायत के आधार पर हुई गहन जांच के बाद अदालत ने यह निर्णय दिया, जिससे बैंकों में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर संदेश गया है।


कैसे हुआ घोटाला और कैसे फंसे आरोपी?

सीबीआई की जांच में सामने आया कि लक्ष्मण सिंह रावत, जो उस समय प्रेमनगर शाखा के प्रबंधक थे, ने हेड ऑफिस अकाउंट की राशि से 1,23,49,842 रुपये की फर्जी डेबिट एंट्री तैयार की और यह रकम छह खातों में स्थानांतरित कर दी। जिन खातों में पैसा गया, वे माखन सिंह नेगी, कलम सिंह नेगी, एमएस सनराइज इंटरनेशनल, आरसी आर्य और बाद में संजय कुकरेजा, मीना आर्य आदि से जुड़े थे।

ऑडिट के दौरान जब फर्जीवाड़ा पकड़ा गया, तब रावत ने इन एंट्रियों को रिवर्स दिखाते हुए डेबिट को चार नए लोन खातों में डाल दिया। इस मामले में बैंक के हेड ऑफिस के मुख्य सतर्कता प्रबंधक ने 16 फरवरी 2010 को लिखित शिकायत दी थी, जिसके आधार पर 24 फरवरी 2010 को सीबीआई की एंटी करप्शन ब्रांच ने केस दर्ज किया। एक अप्रैल 2011 को आरोप पत्र दाखिल हुआ और करीब 14 वर्ष तक केस चला।

अभियोजन पक्ष ने 26 गवाह और प्रचुर दस्तावेजी साक्ष्य अदालत में रखे, जबकि बचाव पक्ष ने भी पांच गवाह पेश किए। यह पूरे देश में बैंकिंग सेक्टर में पारदर्शिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण केस माना गया।

कानूनी धारा, फैसले और सजा – अदालत की टिप्पणी

अदालत ने सभी दोषियों को IPC की धारा 120-B (षड्यंत्र), 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी), 471 (फर्जी दस्तावेज का प्रयोग), 477-A (खातों में हेराफेरी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत दोषी करार दिया। आरोप 2 नवंबर 2012 को तय किए गए और लंबी सुनवाई के बाद सीबीआई के विशेष न्यायाधीश मदन राम ने अपना फैसला दिया।

आरोपी लक्ष्मण सिंह रावत (पूर्व शाखा प्रबंधक) को दो वर्ष की कैद तथा ₹15,000 का आर्थिक दंड सुनाया गया। अन्य आरोपियों – माखन सिंह नेगी, कलम सिंह नेगी, संजय कुमार, आरसी आर्य और मीना आर्य – को एक-एक वर्ष की सजा और ₹10,000-10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।

सीबीआई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “बैंकों में विश्वसनीयता और सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि ऐसे अपराधों पर सख्त कार्रवाई हो। यह उदाहरण अन्य बैंक कर्मचारियों और आम नागरिकों के लिए भी चेतावनी के रूप में सामने आए।”

विशेषज्ञ मानते हैं कि सीबीआई और अदालत द्वारा अपनाई गई गहन जांच और सख्त कार्रवाई आने वाले समय में ऐसे मामलों को रोकने में सहायक सिद्ध होगी। यह निर्णय न केवल संस्थागत सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि आम आदमी के बैंकिंग भरोसे की नींव और मजबूत करता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *