सर्विस बुक गुम होने पर नहीं रोक सकते पेंशन और नियमितीकरण: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
हाइलाइट्स
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का आदेश – सेवा रिकॉर्ड गुम होने पर कर्मचारी को पेंशन लाभ और नियमितीकरण से नहीं किया जा सकता वंचित
विभाग की गलती का लाभ उठाकर कर्मचारी को दंडित करना अनुचित
न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने सत्य प्रकाश श्रीवास्तव की याचिका पर सुनाया फैसला
कोर्ट ने विभाग को वर्ष 2000 से पूर्वव्यापी प्रभाव से सेवा नियमित करने के निर्देश दिए
पेंशन व अन्य सभी सेवा लाभ आठ हफ्तों के भीतर देना अनिवार्य
सरकारी विभागों को भविष्य में सेवा रिकॉर्ड सुरक्षित रखना होगा प्राथमिकता
सरकारी कर्मचारियों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव डालने वाला निर्णय सुनाया है। कोर्ट का कहना है कि यदि किसी कर्मचारी की सर्विस बुक (सेवा पुस्तिका) विभागीय लापरवाही के कारण गुम हो जाती है, तो विभाग इस आधार पर उस कर्मचारी को पेंशन लाभ तथा नियमितीकरण से वंचित नहीं कर सकता। सेवा रिकॉर्ड सुरक्षित रखना पूरी तरह विभाग की जिम्मेदारी है और नौकरी के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।
मामले का आधार और कोर्ट की दलीलें
यह ऐतिहासिक फैसला न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने सत्य प्रकाश श्रीवास्तव की दो याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया। याची के अनुसार, उनकी सर्विस बुक विभाग द्वारा गुम कर दी गई थी, जिसके बाद अधिकारी उन्हें समीक्षा अधिकारी के पद पर नियमित न कर, पेंशन और अन्य लाभों से वंचित रख रहे थे।
कोर्ट ने माना कि सेवा रिकॉर्ड के रखरखाव और सुरक्षा की जिम्मेदारी संपूर्ण रूप से विभाग की है। यदि दस्तावेज़ या सर्विस बुक लापता हो जाए, तो विभाग अपनी चूक का फायदा उठाकर कर्मचारी को सजा नहीं दे सकता। कर्मचारी के सभी सेवा लाभ अपेक्षित तौर पर पूरे किए जाएं, यह सुनिश्चित करना प्रशासन का दायित्व है।
कोर्ट का आदेश और प्रभावित बिंदु
विभाग द्वारा सेवा रिकॉर्ड गुम कर देना, कर्मचारी की गलती नहीं मानी जा सकती।
विभाग को निर्देश – याचिकाकर्ता को वर्ष 2000 से प्रभावी तिथि से सेवा में नियमित मानें।
पेंशन, ग्रेजुएटी और अन्य सभी सेवा लाभ आठ हफ्ते के भीतर दिए जाएं।
विभाग निजी लाभ के लिए कर्मचारी का हक नहीं छीन सकता।
निर्णय में कहा गया—’यदि सेवा रिकॉर्ड न मिलें तो विभाग अपनी चूक का लाभ नहीं ले सकता और न ही लाभ के अधिकार से कर्मचारी को वंचित कर सकता है।‘
विस्तार: अन्य कानूनी उदाहरण
इससे जुड़ा एक अन्य निर्णय (मई 2025) में भी हाईकोर्ट ने कहा कि नियमितीकरण में देरी के लिए कर्मचारी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता और न ही सेवा लाभों से वंचित किया जा सकता है। यदि सरकार या विभाग की गलती से रिकॉर्ड गुम या विलंब हुआ है, तो कर्मचारियों को नियुक्ति की मूल तिथि से ही पूरा लाभ मिलना चाहिए।
स्थानीय और सामाजिक प्रभाव
यह निर्णय देशभर के लाखों सरकारी कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनकी पेंशन अथवा अन्य लाभ विभागीय लापरवाही या फाइल गुम होने की वजह से अटक जाते हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में कोई भी विभाग इस आधार पर किसी कर्मचारी को पेंशन या लाभ देने से मना नहीं कर सकता। इससे कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा होगी और संस्थागत जवाबदेही बढ़ेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला सरकारी सेवा में कार्यरत लाखों कर्मचारियों को बड़ी राहत देने वाला है। कोर्ट ने दो टूक कहा है कि विभागीय कमजोरी अथवा लापरवाही से कर्मचारी को भुगतना नहीं पड़ेगा—न नियमितीकरण में और न ही पेंशन जैसी सेवाओं में। विभाग को अपने स्तर पर रिकॉर्ड सुरक्षित करने की जिम्मेदारी अब और अधिक गंभीरता से निभानी होगी। यह फैसला सरकारी व्यवस्था में न्यायपूर्ण प्रक्रिया और मानवाधिकारों का भी महत्वपूर्ण उदाहरण है।



