प्रभारी प्रधानाध्यापक को मिलेगा पूरा वेतन – सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
हाइलाइट्स बॉक्स
सुप्रीम कोर्ट ने प्रभारी प्रधानाध्यापक को पूरे वेतन व भत्ते का हकदार माना
इलाहाबाद हाईकोर्ट के 30 अप्रैल, 2025 के आदेश में दखल से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
देशभर के परिषदीय स्कूलों के हजारों शिक्षकों को मिलेगा लाभ
यदि कार्य प्रधानाध्यापक का, तो वेतन भी वही
उत्तराखंड के प्रभारी प्रधानाचार्य परिषद ने फैसले का स्वागत किया
उत्तराखंड में भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे प्रभारी प्रधानाचार्य
भारत में सरकारी स्कूलों में प्रभारी प्रधानाध्यापक (In-charge Headmaster) की व्यवस्था शिक्षकों की कमी या पद रिक्त होने के कारण बनाई जाती है, जिसमें वरिष्ठ शिक्षक विद्यालय संचालन और प्रशासनिक जिम्मेदारी भी संभालते हैं। लेकिन इन प्रभारी शिक्षकों को, वास्तविक प्रधानाध्यापक की तरह न तो पूरा वेतन मिलता है और न ही पद के अनुरूप भत्ते। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से हज़ारों शिक्षकों की मुराद पूरी होती दिख रही है।
फैसले की पृष्ठभूमि
मामला उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों से शुरू हुआ, जहां प्रभारी प्रधानाध्यापक पदभार तो संभाल रहे थे, परंतु उन्हें पूरा वेतन और भत्ता नहीं मिल रहा था। त्रिपुरारी दुबे की ओर से दाखिल याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल, 2025 को आदेश दिया था कि –
“कार्य के अनुरूप वेतन मिलना शिक्षकों का अधिकार है। यदि कोई शिक्षक प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारी निभा रहा है, तो उसे इस पद का पूरा वेतन एवं भत्ता मिलना चाहिए।”
राज्य सरकार के विरोध और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील के बावजूद, जस्टिस संजय कुमार और एस.सी. शर्मा की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को तर्कसंगत बताते हुए, इसमें हस्तक्षेप करने से साफ इंकार कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि –
“यदि सरकार प्रभारी प्रधानाध्यापक को वेतन या भत्ता नहीं देना चाहती तो फिर नियमित प्रधानाध्यापक की नियुक्ति क्यों नहीं करती?”
निर्णय का प्रभाव
इस ऐतिहासिक फैसले से उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर के राज्यों में प्रभारी प्रधानाध्यापक के रूप में सेवा दे रहे शिक्षकों को बड़ा लाभ मिलेगा।
अब अगर कोई शिक्षक प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारी संभालता है, तो उसे उसी पद का पूरा वेतन व भत्ता मिलेगा।
कोर्ट के मुताबिक “कार्य के अनुरूप वेतन” शिक्षा व्यवस्था के मूल में है।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, प्रशासनिक आदेश से प्रभारी बनाए गए शिक्षकों को भी, जिम्मेदारी पूरी करते हुए किसी प्रकार से कमतर नहीं आंका जा सकता।
फैसले की कानूनी और सामाजिक अहमियत
शिक्षकों का अधिकार: यह फैसला न केवल शिक्षकों की आर्थिक स्थिति मजबूत करेगा, बल्कि उन्हें उनके कार्य के अनुरूप सम्मान भी दिलाएगा।
स्कूल संचालन: कई स्कूलों में लंबे समय तक प्रधानाध्यापक की नियुक्ति नहीं होती, ऐसे में प्रभारी शिक्षक पूरी जिम्मेदारी निभाते हैं – उन्हें पूरा वेतन मिलना न्यायोचित है।
सरकारी बचत vs. न्याय: सरकारें खाली पदों के चलते करोड़ों रुपये की बचत तो कर लेती हैं, पर शिक्षकों का हक नहीं दे रहीं – सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि या तो पद स्वीकृत करो या पूरा वेतन दो।
प्रीसिडेंट सेट करना: यह फैसला देश के अन्य राज्यों की नज़ीर बनेगा; जहां भी प्रभारी प्रधानाध्यापक काम कर रहे हैं, वे अपना हक मांग सकते हैं और कोर्ट जा सकते हैं।
उत्तराखंड का संदर्भ
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में भी 1700 से अधिक प्रधानाध्यापक/प्रधानाचार्य पद रिक्त पड़े हैं। वरिष्ठ शिक्षक जिम्मेदारी उठा रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई बढ़ा हुआ वेतन या भत्ता नहीं मिलता।
प्रभारी प्रधानाचार्य परिषद के संयोजक रमेश देवराड़ी के मुताबिक –
“उत्तराखंड में प्रभारी प्रधानाचार्य विषय का शिक्षण कार्य भी कर रहे हैं और स्कूल संचालन का भार भी। लेकिन उन्हें किसी तरह का अतिरिक्त वित्तीय लाभ राज्य सरकार नहीं दे रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सबको आश्वस्त किया है।”
परिषद ने फैसला किया है कि यूपी की तर्ज पर वे भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
स्थानीय और राष्ट्रीय असर
देशभर में हज़ारों प्रभारी शिक्षकों की उम्मीदों को नई उड़ान मिली।
राज्य सरकारों पर नियमित नियुक्ति की जिम्मेदारी का दवाब बढ़ेगा या प्रभारी को पूरा वेतन देना होगा।
शिक्षा विभाग की कार्यशैली, बजट योजनाओं, और प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव की दरकार है।
उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के कई संगठन इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कार्य के अनुरूप वेतन जैसे सिद्धांत को मजबूती देता है और शिक्षकों के अधिकार, गरिमा, और न्याय के पक्ष में है। उत्तराखंड सहित देश के अन्य राज्यों में भी प्रभारी प्रधानाध्यापक न्याय के लिए अब और अधिक मुखर होंगे। यह फैसला शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता, समानता और कर्मचारियों के सम्मान की दिशा में दूरगामी प्रभाव डालेगा।



