मोटापे की असली वजह: कम व्यायाम नहीं, गलत खान-पान है मुख्य कारण
हाइलाइट्स
ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोध से खुलासा: शारीरिक गतिविधि की कमी नहीं, बल्कि अत्यधिक प्रसंस्कृत आहार है मोटापे का मुख्य कारण
34 देशों के 4,200 से अधिक लोगों पर किया गया व्यापक अध्ययन, PNAS जर्नल में प्रकाशित
भारत में 2050 तक 44.9 करोड़ लोग हो सकते हैं मोटापे के शिकार – लैंसेट अध्ययन
प्रोफेसर हरमन पॉन्जर का कॉन्स्ट्रेन्ड एनर्जी एक्सपेंडिचर मॉडल बदल रहा है मेटाबॉलिज्म की समझ
भारत में प्रोसेस्ड फूड का सेवन 2011 से 2021 तक 13.37% की दर से बढ़ा
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दुनिया भर में बढ़ते मोटापे के कारणों को लेकर अब तक यह माना जाता था कि शारीरिक गतिविधियों में कमी और बैठे रहने की जीवनशैली इसकी मुख्य वजह है। लेकिन अमेरिका की प्रतिष्ठित ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक क्रांतिकारी अध्ययन ने इस धारणा को पूरी तरह से बदल दिया है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में प्रकाशित इस महत्वपूर्ण शोध के अनुसार, मोटापे की वास्तविक जड़ हमारे खान-पान के तरीकों में छुपी है, न कि व्यायाम की कमी में। 34 देशों के 4,200 से अधिक वयस्कों पर किए गए इस व्यापक अध्ययन से पता चला है कि विकसित देशों के लोग उतनी ही या उससे भी अधिक कैलोरी बर्न करते हैं जितनी कम विकसित देशों के लोग करते हैं, फिर भी मोटापे की दर में आकाश-पाताल का अंतर है।
ड्यूक यूनिवर्सिटी का अध्ययन
प्रोफेसर हरमन पॉन्जर के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन ने छह महाद्वीपों के 34 विभिन्न समुदायों से डेटा एकत्र किया। इसमें तंजानिया के हदजा शिकारी-संग्रहकर्ता समुदाय से लेकर अमेरिका और यूरोप के औद्योगिक समाजों तक के लोग शामिल थे। शोधकर्ताओं ने दैनिक ऊर्जा व्यय, बॉडी फैट प्रतिशत और बॉडी मास इंडेक्स (BMI) का सटीक मापन किया। इस अध्ययन की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इसमें डबली लेबल्ड वाटर तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जो बेहद सटीक रूप से यह बताती है कि व्यक्ति वास्तव में कितनी कैलोरी बर्न कर रहा है।
चौंकाने वाले परिणाम
अध्ययन के परिणाम हैरान करने वाले थे। पॉन्जर के शब्दों में, “दशकों के प्रयासों के बावजूद आर्थिक रूप से विकसित देशों में मोटापे के मूल कारणों को समझने में हम अटके हुए थे। यह बड़ा, अंतर्राष्ट्रीय, सहयोगी प्रयास हमें इन प्रतिस्पर्धी विचारों को परखने की अनुमति देता है। यह स्पष्ट है कि आहार में बदलाव, न कि कम गतिविधि, अमेरिका और अन्य विकसित देशों में मोटापे का मुख्य कारण है।” शोध से यह भी पता चला कि आर्थिक विकास के साथ-साथ कुल ऊर्जा व्यय में केवल मामूली कमी आई, लेकिन इस कमी से मोटापे में होने वाली वृद्धि का केवल एक छोटा हिस्सा ही समझाया जा सकता है।
कॉन्स्ट्रेन्ड एनर्जी एक्सपेंडिचर मॉडल
पॉन्जर का कॉन्स्ट्रेन्ड एनर्जी एक्सपेंडिचर मॉडल पारंपरिक मेटाबॉलिज्म की समझ को चुनौती देता है। उनके अनुसार, हमारा शरीर दैनिक ऊर्जा व्यय को एक सीमित दायरे में रखता है – लगभग 3,000 कैलोरी प्रति दिन, चाहे हमारी गतिविधि का स्तर कुछ भी हो। यह विकासवादी रणनीति अकाल के समय में जीवित रहने के लिए बेहद कारगर थी, लेकिन आज के समय में यह हमें मोटापे की ओर धकेल रही है। जब हम व्यायाम पर अधिक ऊर्जा खर्च करते हैं, तो शरीर अन्य कार्यों – जैसे प्रतिरक्षा प्रणाली या पाचन – पर कम ऊर्जा खर्च करके संतुलन बनाए रखता है।
हदजा जनजाति का उदाहरण
पॉन्जर के शोध का सबसे प्रभावशाली उदाहरण तंजानिया की हदजा जनजाति है। ये लोग दिन में पांच घंटे तक शिकार और भोजन संग्रह के लिए चलते-फिरते रहते हैं, फिर भी उनकी दैनिक कैलोरी खपत अमेरिका और यूरोप के बैठे-बैठे काम करने वाले लोगों के बराबर ही है। इससे साबित होता है कि केवल शारीरिक गतिविधि बढ़ाने से मेटाबॉलिज्म में उतनी वृद्धि नहीं होती जितनी हम सोचते हैं।
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड: मोटापे का मुख्य अपराधी
क्या हैं अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स
NOVA फूड क्लासिफिकेशन सिस्टम के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स वे खाद्य पदार्थ हैं जो मुख्यतः या पूर्णतः खाद्य पदार्थों से निकाले गए पदार्थों या खाद्य घटकों से व्युत्पन्न पदार्थों से बनाए जाते हैं। इनमें बिस्कुट, कार्बोनेटेड पेय, तैयार भोजन, इंस्टेंट नूडल्स, चिप्स, आइसक्रीम और पैकेज्ड स्नैक्स शामिल हैं। ये खाद्य पदार्थ आमतौर पर कैलोरी, चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा में उच्च होते हैं, जबकि फाइबर, प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों में कम होते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
एक व्यापक मेटा-एनालिसिस के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन मोटापे के जोखिम को 55% तक बढ़ा देता है। अध्ययन में पाया गया कि दैनिक कैलोरी सेवन में हर 10% की वृद्धि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से मोटापे का जोखिम 7% बढ़ा देती है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित 2024 की एक समीक्षा में 45 अध्ययनों और लगभग 1 करोड़ प्रतिभागियों के डेटा का विश्लेषण करके पाया गया कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का अधिक सेवन 32 स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा है, जिनमें हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य विकार शामिल हैं।
भारत में मोटापे की चुनौती
वर्तमान स्थिति
भारत में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, महिलाओं में मोटापे की दर 24% और पुरुषों में 22.9% है, जो NFHS-4 की तुलना में काफी अधिक है। शहरी क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर है, जहां 33.2% महिलाएं और 29.8% पुरुष मोटापे से ग्रसित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, जहां महिलाओं में मोटापे की दर 8.6% से बढ़कर 19.7% और पुरुषों में 7.3% से बढ़कर 19.3% हो गई है।
भविष्य की चुनौती
लैंसेट में प्रकाशित एक चौंकाने वाले अध्ययन के अनुसार, भारत में 2050 तक 44.9 करोड़ लोग मोटापे या अधिक वजन से ग्रसित हो सकते हैं। यह देश की कुल जनसंख्या का लगभग एक तिहाई हिस्सा होगा। किशोरों में यह समस्या और भी चिंताजनक है – 15-24 आयु वर्ग के युवा पुरुषों में मोटापे के मामले 1990 में 0.4 करोड़ से बढ़कर 2021 में 1.68 करोड़ हो गए हैं और 2050 तक यह 2.27 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। युवा महिलाओं में भी यही स्थिति है – 1990 में 0.33 करोड़ से बढ़कर 2021 में 1.3 करोड़ और 2050 तक 1.69 करोड़ होने का अनुमान है।
बच्चों में बढ़ता मोटापा
भारत में बच्चों में मोटापे की समस्या भी गंभीर होती जा रही है। 5-14 आयु वर्ग के लड़कों में मोटापे के मामले 1990 में 0.46 करोड़ से बढ़कर 2021 में 1.3 करोड़ हो गए हैं, जो 2050 तक 1.6 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। लड़कियों में भी यही स्थिति है – 1990 में 0.45 करोड़ से बढ़कर 2021 में 1.24 करोड़ और 2050 तक 1.44 करोड़ होने का अनुमान है।
भारत में खान-पान के बदलते पैटर्न
प्रसंस्कृत भोजन की बढ़ती खपत
भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड सेक्टर में 2011 से 2021 तक 13.37% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर देखी गई है, जो विश्व में सबसे अधिक दरों में से एक है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय परिवार अब फलों, सब्जियों या अंडों की तुलना में पैकेज्ड और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर अधिक खर्च कर रहे हैं। वर्षों से, शहरी भारतीयों के आहार में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का योगदान बढ़ा है – ये खाद्य पदार्थ कुल ऊर्जा सेवन का 17%, कार्बोहाइड्रेट का 17%, चीनी का 29%, कुल वसा का 20% और नमक सेवन का 33% योगदान देते हैं।
वसा सेवन में चिंताजनक वृद्धि
2011-12 से 2023-24 के बीच भारतीयों के आहार पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। जबकि प्रोटीन की खपत में केवल 1-3 ग्राम की मामूली वृद्धि हुई है, वसा का सेवन तेजी से बढ़ा है – ग्रामीण क्षेत्रों में 46.1 ग्राम से बढ़कर 60.4 ग्राम और शहरी क्षेत्रों में 58 ग्राम से बढ़कर 69.8 ग्राम प्रति दिन हो गया है। यह वृद्धि मोटापे की बढ़ती दर की एक प्रमुख वजह हो सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी की पहल और सरकारी रणनीति
मन की बात में मोटापे पर चर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में मोटापे की समस्या को राष्ट्रीय चिंता का विषय बताया है। उन्होंने कहा,
“हमारी खान-पान की आदतों में छोटे-छोटे बदलाव करके हम अपना भविष्य मजबूत, फिट और बीमारी-मुक्त बना सकते हैं।”
प्रधानमंत्री ने “10% कम तेल चैलेंज” का सुझाव दिया है, जिसमें लोगों से अपने मासिक खाना पकाने के तेल की खपत में 10% की कमी करने की अपील की गई है।
सरकारी कार्यक्रम और नीतियां
भारत सरकार ने मोटापे से निपटने के लिए कई व्यापक पहलें शुरू की हैं। फिट इंडिया मूवमेंट, NP-NCD (गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम), पोषण अभियान, ईट राइट इंडिया और खेलो इंडिया जैसे कार्यक्रम स्वस्थ जीवनशैली, बेहतर पोषण और शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए चलाए जा रहे हैं। NP-NCD विशेष रूप से मोटापे की रोकथाम पर केंद्रित है और व्यक्तिगत, पारस्परिक, सामुदायिक और संगठनात्मक स्तर पर हस्तक्षेप करता है।
विशेषज्ञों की राय और समाधान
पोषण विशेषज्ञों की सिफारिशें
डॉ. अंजना कालिया, आयुर्वेदिक चिकित्सक और पोषण विशेषज्ञ के अनुसार,
“मोटापे को नियंत्रित करने के लिए संतुलित आहार सबसे महत्वपूर्ण है। इसका मतलब है कि आप अपने आहार में प्रोटीन, फाइबर, स्वस्थ वसा, विटामिन और खनिज शामिल करें और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों से बचें।”
विशेषज्ञ सुझाते हैं कि प्रसंस्कृत और जंक फूड से बचना, चीनी और मैदे का सेवन कम करना, और पानी की मात्रा बढ़ाना मोटापे से निपटने के प्रभावी तरीके हैं।
व्यायाम की भूमिका को फिर से परिभाषित करना
हालांकि ड्यूक यूनिवर्सिटी के अध्ययन से पता चलता है कि आहार मोटापे का मुख्य कारक है, फिर भी व्यायाम की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। पॉन्जर कहते हैं,
“आहार और शारीरिक गतिविधि को आवश्यक और पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए, विकल्प के रूप में नहीं।”
व्यायाम वजन कम करने में भले ही सीधे मदद न करे, लेकिन यह शरीर की प्रणालियों और संकेतों को इष्टतम रूप से काम करने में सहायता करता है।
डब्ल्यूएचओ और अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देश
विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल
WHO ने मोटापे को एक जटिल, बहुकारक पुरानी बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया है, न कि केवल अन्य गैर-संचारी रोगों के लिए एक जोखिम कारक के रूप में। WHO ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की खपत पर दिशा-निर्देश विकसित करने के लिए विशेषज्ञों की तलाश शुरू की है। संगठन का कहना है कि मोटापे से निपटने के लिए एकीकृत स्वास्थ्य सेवाओं, बहुक्षेत्रीय नीति और कार्रवाई, तथा सशक्त लोगों और समुदायों की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत उपाय
दुनिया भर में 45 से अधिक देशों और छोटी उप-क्षेत्रीय या शहरी संस्थाओं ने चीनी-मिश्रित पेय जैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड पेय पर कर लगाया है। हालांकि, केवल कुछ देशों ने स्नैक्स और अन्य अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर कर अपनाया है। विशेषज्ञ चेतावनी लेबल, स्कूल फूड नीतियों और व्यापक मार्केटिंग नियंत्रण को मिलाकर एक परस्पर सुदृढ़ीकरण नीति सेट बनाने की सिफारिश करते हैं।
समाधान की राह: व्यापक रणनीति की आवश्यकता
व्यक्तिगत स्तर पर समाधान
व्यक्तिगत स्तर पर मोटापे से निपटने के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पोषण विशेषज्ञ निम्नलिखित सुझाव देते हैं: संपूर्ण खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाना, चीनी-मिश्रित पेय से बचना, नियमित शारीरिक गतिविधि करना, पर्याप्त नींद लेना और तनाव का प्रबंधन करना। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के बजाय ताजी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, स्वस्थ प्रोटीन स्रोत और स्वस्थ वसा का सेवन करना चाहिए।
नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता
व्यक्तिगत प्रयासों के साथ-साथ नीतिगत स्तर पर भी कार्रवाई की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकारों को अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड पर कर लगाना चाहिए, स्वस्थ भोजन की उपलब्धता बढ़ानी चाहिए, बच्चों के लिए अस्वास्थ्यकर भोजन के विज्ञापन को नियंत्रित करना चाहिए और स्कूलों में पोषक भोजन की नीति बनानी चाहिए। इसके अलावा, खाद्य लेबलिंग को मजबूत बनाना और जनजागरूकता अभियान चलाना भी आवश्यक है।
समुदायिक भागीदारी का महत्व
मोटापे से निपटने के लिए समुदायिक स्तर पर भी प्रयास करने होंगे। इसमें स्थानीय स्तर पर स्वस्थ भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करना, खेल के मैदानों और पार्कों का विकास करना, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाना और पारंपरिक खाना पकाने की तकनीकों को बढ़ावा देना शामिल है। WHO के अनुसार, मोटापे के मूल कारणों से निपटने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा।
भविष्य की चुनौतियां और अवसर
अनुसंधान की दिशा
मोटापे और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड के बीच संबंध को बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है। अमेरिकी FDA ने NIH के साथ मिलकर एक संयुक्त पोषण नियामक विज्ञान कार्यक्रम की घोषणा की है, जो अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की भूमिका की जांच करेगा। यह कार्यक्रम यह समझने में मदद करेगा कि ये खाद्य पदार्थ कैसे और क्यों लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
तकनीकी समाधान और नवाचार
डिजिटल स्वास्थ्य तकनीकों, न्यूट्रिजेनोमिक्स और व्यक्तिगत पोषण दृष्टिकोण जैसे नवाचार मोटापे से निपटने में नई संभावनाएं प्रदान कर सकते हैं। मोबाइल ऐप्स, फिटनेस ट्रैकर और AI-आधारित आहार सलाहकार व्यक्तिगत स्तर पर स्वस्थ विकल्प बनाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, इन तकनीकी समाधानों को व्यापक सामाजिक और नीतिगत परिवर्तनों के साथ जोड़ना होगा।
खाद्य उद्योग की भूमिका
खाद्य उद्योग को भी अधिक जिम्मेदार व्यवहार अपनाना होगा। इसमें स्वस्थ विकल्पों का विकास करना, पारदर्शी लेबलिंग करना, बच्चों के लिए हानिकारक विज्ञापन कम करना और छोटे पैकेजिंग के विकल्प प्रदान करना शामिल है। कुछ कंपनियां पहले से ही अपने उत्पादों में चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा कम करने की दिशा में काम कर रही हैं।
मोटापे की हमारी समझ
ड्यूक यूनिवर्सिटी के इस महत्वपूर्ण अध्ययन ने मोटापे की हमारी समझ को मौलिक रूप से बदल दिया है। यह स्पष्ट हो गया है कि शारीरिक गतिविधि की कमी के बजाय, हमारे आहार की गुणवत्ता – विशेषकर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता सेवन – मोटापे का मुख्य कारण है। भारत के संदर्भ में यह खोज और भी चिंताजनक है, क्योंकि देश में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन तेजी से बढ़ रहा है और 2050 तक 44.9 करोड़ लोगों के मोटापे से ग्रसित होने का अनुमान है। इस चुनौती से निपटने के लिए व्यक्तिगत, सामुदायिक और नीतिगत स्तर पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार की पहल और WHO के दिशा-निर्देश उम्मीद की किरण दिखाते हैं। यदि हम अपने खान-पान की आदतों को बदलकर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन कम करें और पारंपरिक, संपूर्ण खाद्य पदार्थों की ओर लौटें, तो इस मोटापे की महामारी को रोका जा सकता है। समय रहते सही कदम उठाकर हम एक स्वस्थ और फिट भारत का निर्माण कर सकते हैं।