group of indian village students in school uniform sitting in classroom doing homework

प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती को लेकर शिक्षकों में दिखा विरोध और समर्थन भी

प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती को लेकर शिक्षकों में दिखा विरोध और समर्थन भी

हाइलाइट्स

  • कैबिनेट के फैसले के बाद शिक्षकों के एक वर्ग में नाराजगी, आंदोलन की चेतावनी

  • राजकीय शिक्षक संघ ने पदोन्नति के बजाय विभागीय सीधी भर्ती का विरोध किया

  • कुछ शिक्षक सीधी भर्ती के समर्थन में, बोले – इससे स्कूलों को नियमित प्रधानाचार्य मिलेंगे

  • नियमावली में बदलाव से शिक्षकों के दो धड़े: एक पक्ष पूरी पदोन्नति, दूसरा प्रतिस्पर्धा और निष्पक्षता का समर्थक

  • विभाग में वरिष्ठता, पदोन्नति और प्रशासनिक गुणवत्ता पर उठ रहे सवाल

उत्तराखंड में राजकीय इंटर कॉलेजों के प्रधानाचार्य पदों पर विभागीय सीधी भर्ती को लेकर शिक्षकों में जबरदस्त असहमति उभर आई है। जहां एक तरफ शिक्षक संघ सरकार के फैसले का विरोध कर रहा है, वहीं कुछ शिक्षक इस बदलाव को जरूरत के अनुरूप मानते हैं। नया नियमावली संशोधन राज्य के शिक्षा तंत्र में गहरी बहस और प्रतिक्रिया का कारण बन गया है।

शिक्षक संघ का तीखा विरोध और तर्क

राजकीय शिक्षक संघ व अन्य कई शिक्षकों ने विभागीय सीधी भर्ती का कड़ा विरोध जताया है।

  • प्रांतीय अध्यक्ष राम सिंह चौहान और महामंत्री रमेश पैन्युली ने विभागीय मंत्री से उनको उनके आवास पर मिलकर आपत्ति जताई।

  • संघ का तर्क है कि प्रधानाचार्य का पद हमेशा पदोन्नति से भरा जाता रहा है, और सीधी विभागीय परीक्षा हजारों शिक्षकों के लिए अन्यायपूर्ण है।

  • शिक्षकों ने कहा कि वर्षों की सेवा के बाद भी उन्हें सिर्फ एक ही पद से सेवानिवृत्त होना पड़ रहा है, क्योंकि विभागीय पदोन्नति नहीं मिल रही और खाली पदों को विभागीय भर्ती से भरा जा रहा है।

  • कई वरिष्ठ शिक्षकों का मानना है कि विभागीय सीधी भर्ती से “वरिष्ठ-कनिष्ठ” की समस्या खड़ी होगी और विभाग में विसंगति पैदा होगी।

  • संघ के नेताओं ने आंदोलन की चेतावनी दी है कि चुनाव आचार संहिता हटने के बाद बड़ा विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

  • शिक्षक संघ का पुराना तर्क है कि 2008 तक सहायक अध्यापक (एलटी) पदोन्नति पाकर जिला शिक्षा अधिकारी तक बनते रहे हैं – इसलिए परंपरा और योग्यता का सम्मान किया जाए।

सीधी भर्ती का समर्थन – तर्क और पक्ष

वहीं, कई शिक्षक नए संशोधन को स्कूलों के लिए शुभ मानते हैं:

  • इनका मानना है कि इससे वर्षों से खाली प्रधानाचार्य के 85% पद जल्दी भर जाएंगे।

  • पीजीआई यानी परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स रिपोर्ट में जिस वजह से राज्य की स्थिति कमजोर रही, उसमें स्कूलों में प्रधानाचार्य का न होना बड़ी कमजोरी मानी गई।

  • समर्थक शिक्षकों के अनुसार विभागीय सीधी भर्ती प्रतियोगिता को बढ़ाएगी और योग्य उम्मीदवारों का चयन संभव बनाएगी।

  • नए संशोधन में एलटी कैडर के 15 साल सर्विस वाले शिक्षकर और बिना बीएड प्रवक्ता भी पात्र हैं – इससे अधिक संख्या में शिक्षकों को अवसर मिलेगा।

  • छात्रहित के दृष्टिकोण से यह फैसला सही माना गया है, क्योंकि प्रधानाचार्य की नियुक्ति से प्रबंधन, अनुशासन तथा शिक्षा गुणवत्ता में वृद्धि होगी।

प्रमुख बिंदुओं पर शिक्षकों की राय

समूहविरोध के तर्कसमर्थन के तर्क
राजकीय शिक्षक संघ– वर्षों सेवा के बाद भी पदोन्नति नहीं
– वरिष्ठ शिक्षक कनिष्ठ हो सकते हैं
– विभाग में विसंगति होगी
– परंपरागत पदोन्नति का अधिकार समाप्त
समर्थन करने वाले शिक्षक– 85% खाली पदों की जल्द पूर्ति
– गुणवत्ता व प्रतिस्पर्धा
– छात्रहित में निर्णय
– योग्य शिक्षकों को मौका
पूर्व शिक्षक संघ अधिकारी– 100% पद पदोन्नति से भरे जाएं
– पदोन्नति के बाद रिक्त पदों पर सीधी भर्ती पर विचार

विभागीय प्रक्रिया और नियमावली पर विभिन्न पक्षों की टिप्पणी

  • प्रांतीय महामंत्री रमेश पैन्युली ने कहा कि शिक्षक वर्षों से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं, सरकार सीधे नियुक्ति कर अन्याय कर रही है।

  • जिला मंत्री अर्जुन पंवार ने कहा कि नए नियम से वरिष्ठ शिक्षक कनिष्ठ हो जाएंगे, जिससे स्थायी रूप से विसंगति रहेगी।

  • समर्थक शिक्षक कमलेश मिश्रा ने कहा, “संशोधन के बाद अब सात–आठ हजार से ज्यादा शिक्षकों को परीक्षा में शामिल होने का मौका मिलेगा।”

  • बृजेश पंवार, पूर्व उपाध्यक्ष (गढ़वाल मंडल), ने कहा कि चयन प्रक्रिया से योग्य प्रधानाचार्य मिलेंगे, शिक्षक संघ को विरोध नहीं करना चाहिए।

  • अन्य शिक्षकों ने मांग की कि यदि पदोन्नति के बाद कोई पद शेष रह जाता है, तो ही उन पर सीधी भर्ती हो।

उत्तराखंड सरकार के प्रधानाचार्य पदों पर विभागीय सीधी भर्ती के फैसले ने राज्य के शिक्षकों को दो भागों में बांट दिया है। एक ओर जहां वरिष्ठता, परंपरा और पदोन्नति के अधिकार की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर स्कूल संचालन व शैक्षणिक गुणवत्ता के सुधार हेतु योग्य प्रधानाचार्य की आवश्यकता का तर्क भी मजबूत है। सरकार को दोनों पक्षों की भावनाओं का संतुलन बनाते हुए, शिक्षक हितों और शिक्षा–प्रशासन को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना होगा।

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