चुनाव ड्यूटी पर राहत नहीं: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अनिवार्य ड्यूटी करनी ही होगी
हाइलाइट्स
हाईकोर्ट ने डिग्री कॉलेजों के प्राध्यापकों को चुनाव ड्यूटी से राहत देने से किया इनकार
राज्य निर्वाचन आयोग ने प्राध्यापकों को पंचायत चुनाव में पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया
याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने स्पष्ट कहा: जिनकी ड्यूटी लगी है, उन्हें करनी ही होगी
याचिकाकर्ताओं का तर्क – प्राध्यापक प्रथम श्रेणी कर्मचारी, पीठासीन अधिकारी द्वितीय श्रेणी के
कोर्ट ने पूर्व आदेशों के आधार पर याचिका निस्तारित कर ड्यूटी करने का निर्देश दिया
उत्तराखंड के डिग्री कॉलेजों के सैकड़ों प्राध्यापक पंचायत चुनाव में पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) की ड्यूटी पर तैनात किए गए। उनके द्वारा ड्यूटी से राहत की मांग को लेकर याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई, जिसमें तर्क था कि प्राध्यापकों की श्रेणी अन्य कर्मचारियों से भिन्न है, इसलिए ड्यूटी में उन्हें छूट दी जाए। लेकिन नैनीताल हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि प्राध्यापकों को चुनाव ड्यूटी निभानी ही होगी।
पूरा मामला: क्या था विवाद?
राज्य निर्वाचन आयोग ने आगामी पंचायत चुनाव के लिए राज्य के डिग्री कॉलेजों के प्राध्यापकों को पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) के पद पर ड्यूटी लगाई थी।
प्राध्यापकों ने कहा कि वे ‘प्रथम श्रेणी’ (Class One Officer) के कर्मचारी हैं, जबकि पीठासीन अधिकारी की ड्यूटी पर अधिकतर ‘द्वितीय श्रेणी’ (Class Two) के कर्मचारी नियुक्त किए जाने का प्रावधान है।
उनका तर्क था कि उन्हें अपने कार्य से अलग, अपेक्षाकृत निम्न श्रेणी की ड्यूटी पर लगाया गया है, जो उनकी गरिमा और दायित्वों से मेल नहीं खाता।
कोर्ट में यह भी दलील दी गई कि उच्च शिक्षित, स्नातकोत्तर डिग्री धारक शिक्षकों की ड्यूटी क्लास टू पोस्ट पर नहीं लगनी चाहिए।
हाईकोर्ट का फैसला
ये मामला न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ के समक्ष पेश हुआ।
सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिन प्राध्यापकों की चुनाव ड्यूटी लगी है, उन्हें वह ड्यूटी करनी अनिवार्य है।
आदेश का सार
न्यायालय ने पूर्व के आदेशों का हवाला देते हुए याचिका निस्तारित कर दी।
कोर्ट ने किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया।
यानी राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जिन प्राध्यापकों की ड्यूटी लगाई गई है, उन्हें चुनाव प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभानी अनिवार्य होगी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत में सरकारी सेवा में रहते किसी भी कर्मचारी को, चाहे वह किसी भी श्रेणी का हो, राज्य हित व प्रशासनिक कार्य हेतु आवश्यकतानुसार ड्यूटी पर लगाया जा सकता है।
कानूनी व प्रशासनिक स्थिति
चुनाव आयोग के पास अधिकार होता है कि वह किसी भी सरकारी अधिकारी/कर्मचारी की चुनाव ड्यूटी लगा सकता है, आवश्यकता पड़ने पर मामले में श्रेणी या पद का निर्धारण बाध्यकारी नहीं।
पूर्व में भी कई राज्यों में इस प्रकार के मामले सामने आए, हालांकि उन पर अक्सर अदालतों ने यही रुख दिखाया है कि ‘सरकारी काम’ सर्वोपरि है।
हाईकोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि डिग्री कॉलेजों के प्राध्यापकों को पंचायत चुनाव में पीठासीन अधिकारी की ड्यूटी अनिवार्य रूप से करनी होगी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है – सरकार अथवा निर्वाचन आयोग की जरूरत के अनुसार किसी भी कर्मचारी की चुनाव ड्यूटी लगाई जा सकती है, इसमें पद या श्रेणी की बाध्यता नहीं है। प्राध्यापकों को सेवा भावना, प्रशासनिक दायित्व और नियमों के अनुसार चुनाव ड्यूटी निभानी होगी।