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उपराष्ट्रपति चुनाव में 786 का खेल, इनको मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी

उपराष्ट्रपति चुनाव में 786 का खेल, इनको मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने के बाद देश में नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। अब उत्सुकता इस बात की है कि इस महत्वपूर्ण संवैधानिक पद के लिए कौन चुना जाएगा और इस चुनावी गणित में राजनीतिक दलों की क्या स्थिति है।

हाइलाइट्स:

  • जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया

  • उपराष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य मतदान करते हैं – कुल 786 सदस्य

  • जीत के लिए 394 वोट की आवश्यकता होगी

  • NDA के पास दोनों सदनों में कुल 422 सदस्य हैं – जीत के लिए पर्याप्त

  • राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का नाम सबसे आगे है

  • हरिवंश ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की है, जिससे चर्चाओं को बढ़ावा मिला

उपराष्ट्रपति चुनाव की संवैधानिक प्रक्रिया

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है। इस निर्वाचक मंडल में राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य और लोकसभा के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। यह चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है और मतदान गुप्त होता है।

संविधान के अनुच्छेद 68 के क्लॉज 2 के अनुसार, उपराष्ट्रपति की रिक्ति को भरने के लिए जल्द से जल्द चुनाव कराया जाना चाहिए। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 साल का होता है। भारत का निर्वाचन आयोग कभी भी इस चुनाव की अधिसूचना जारी कर सकता है।

नंबर गेम: 786 का संघर्ष

वर्तमान स्थिति के अनुसार, उपराष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने वाले निर्वाचकों की संख्या निम्नलिखित है:

लोकसभा की स्थिति

  • कुल सीटें: 543

  • भरी सीटें: 542 (बशीरहाट की एक सीट खाली है)

राज्यसभा की स्थिति

  • कुल सीटें: 245

  • भरी सीटें: 240 (5 सीटें खाली हैं)

  • 24 जुलाई को 6 और पद खाली होने हैं तब कुल भरी सीटें 234 रह जाएंगी

इस प्रकार कुल निर्वाचक मंडल 776 सदस्यों का बनता है। यदि सभी सदस्य मतदान करते हैं तो जीत के लिए 388 वोट की आवश्यकता होगी। हालांकि  कुल क्षमता 786 सदस्यों की है।

NDA की मजबूत स्थिति

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की वर्तमान संसदीय स्थिति अत्यंत मजबूत है:

NDA की संख्या बल

  • लोकसभा में NDA सदस्य: 293

  • राज्यसभा में NDA सदस्य: 129

  • कुल NDA सदस्य: 422

यह संख्या जीत के लिए आवश्यक 388 वोटों से 34 वोट अधिक है, जो NDA को स्पष्ट बहुमत प्रदान करती है। इससे यह स्पष्ट है कि NDA को विपक्षी दलों के समर्थन की आवश्यकता नहीं है, लेकिन वह चाहेगा कि सर्वसम्मति से नया उपराष्ट्रपति चुना जाए।

NDA में शामिल दल

18वीं लोकसभा के चुनावों में NDA गठबंधन में कुल 14 दल शामिल हैं। इनमें मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी के अलावा तेलुगु देशम पार्टी (TDP), जनता दल (यूनाइटेड), शिवसेना, जनता दल (सेक्युलर), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर), लोक जनशक्ति पार्टी, जन सेना पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल, अपना दल (सोनेलाल), यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल, असम गण परिषद, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं।

हरिवंश नारायण सिंह: संभावित उम्मीदवार

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के तुरंत बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का नाम सबसे प्रबल उम्मीदवार के रूप में सामने आ रहा है। उनकी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात ने इन अटकलों को और बल दिया है।

हरिवंश की राजनीतिक पृष्ठभूमि

हरिवंश नारायण सिंह एक अनुभवी राजनेता और पत्रकार हैं। 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रस्ताव पर वे अतिरिक्त सूचना सलाहकार के रूप में PMO से जुड़े थे। चंद्रशेखर का कार्यकाल समाप्त होने पर वे पुनः पत्रकारिता में लौट गए। अप्रैल 2014 में जनता दल (यू) ने उन्हें बिहार से राज्यसभा सदस्य बनाया।

9 अगस्त 2018 को वे पहली बार राज्यसभा के उपसभापति निर्वाचित हुए और सितंबर 2020 में दूसरी बार इस पद के लिए चुने गए। वे जेडीयू की पृष्ठभूमि से आते हैं और प्रधानमंत्री मोदी तथा नीतीश कुमार दोनों से उनके अच्छे संबंध बताए जाते हैं।

हरिवंश को उपराष्ट्रपति बनाने के कारण

हरिवंश को उपराष्ट्रपति पद का प्रबल दावेदार माने जाने के कई कारण हैं:

  1. संवैधानिक पद की जिम्मेदारी: उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राज्यसभा के उपसभापति का दायित्व सदन की अध्यक्षता का होता है

  2. राजनीतिक संतुलन: JDU से आने के कारण गठबंधन में संतुलन बनाए रखने में सहायक

  3. अनुभव: राज्यसभा के उपसभापति के रूप में संसदीय प्रक्रियाओं का गहरा ज्ञान

  4. व्यापक स्वीकार्यता: सभी दलों में सम्मान और प्रधानमंत्री मोदी का भरोसा

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: कारण और विवाद

जगदीप धनखड़ ने सोमवार 21 जुलाई 2025 को रात में अचानक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद छोड़ने की जानकारी दी। उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा,

“स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं संविधान के अनुच्छेद 67(A) के अनुसार, तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे रहा हूं”।

विपक्ष की आपत्तियां

धनखड़ के इस्तीफे पर विपक्षी दलों ने कई सवाल उठाए हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सोमवार को जब कार्य मंत्रणा समिति की बैठक के लिए संसद सदस्य पहुंचे तो जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू नहीं आए और धनखड़ को व्यक्तिगत रूप से इसकी जानकारी नहीं दी गई।

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, केंद्र सरकार की ओर से धनखड़ को फोन आया था जिसके बाद विवाद शुरू हुआ। मानसून सत्र के दौरान उन्होंने जस्टिस वर्मा को हटाने वाले प्रस्ताव पर कार्रवाई करते हुए विपक्ष के नोटिस को स्वीकार किया था, जिससे केंद्र सरकार नाराज हो गई थी।

इस्तीफे की असामान्यता

जगदीप धनखड़ से पहले किसी उपराष्ट्रपति ने इस तरह से इस्तीफा नहीं दिया था। उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, लेकिन 74 साल की उम्र में उन्होंने अचानक यह फैसला लिया। मात्र 12 दिन पहले JNU के एक कार्यक्रम में धनखड़ ने कहा था कि वह अगस्त 2027 में सही समय पर रिटायर होंगे।

अन्य राजनीतिक दल और संभावित प्रभाव

उपराष्ट्रपति चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी:

मुख्य विपक्षी दल

इंडिया गठबंधन की स्थिति कमजोर है क्योंकि उनके पास संसद में कम संख्या है। हाल ही में आम आदमी पार्टी ने इंडिया गठबंधन से अलग होने की घोषणा की है। AAP के संजय सिंह ने कहा कि “आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं है”।

क्षेत्रीय दल

कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रीय दल जो न तो NDA और न ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं, उनमें शामिल हैं:

बीजू जनता दल (BJD): ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व में यह दल न तो NDA का हिस्सा है और न ही विपक्षी गठबंधन का। नवीन पटनायक को हाल ही में नौवीं बार BJD का अध्यक्ष चुना गया है।

AIMIM: असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में यह दल भी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। ओवैसी लगातार चौथी बार हैदराबाद लोकसभा सीट से सांसद हैं।

संवैधानिक महत्व और उपराष्ट्रपति की भूमिका

उपराष्ट्रपति भारत का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है और उसके पास कोई अन्य लाभ का पद नहीं होता है। उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव द्वारा पद से हटाया जा सकता है, जो उस समय उपस्थित सदस्यों के बहुमत से पारित होता है, साथ ही लोकसभा द्वारा सहमति आवश्यक होती है।

उपराष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य

राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति की निम्नलिखित शक्तियां हैं:

  1. कोरम न होने की स्थिति में सदन को स्थगित करने या बैठक स्थगित करने का अधिकार

  2. दल-बदल के आधार पर राज्यसभा के सदस्य की अयोग्यता के प्रश्न का निर्धारण करने का अधिकार

  3. सदन में व्यवस्था और शिष्टाचार बनाए रखने की जिम्मेदारी

चुनाव की तैयारी और समयसीमा

राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम 1952 के अनुसार, उपराष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन रिक्ति होने के बाद यथाशीघ्र किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग कभी भी इस चुनाव की अधिसूचना जारी कर सकता है।

चुनाव प्रक्रिया के चरण

सामान्यतः उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:

  1. चुनाव अधिसूचना: चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा

  2. नामांकन प्रक्रिया: उम्मीदवारों के नामांकन पत्र दाखिल करना

  3. नामांकन जांच: नामांकन पत्रों की वैधता की जांच

  4. उम्मीदवारी वापसी: उम्मीदवारों का अपनी उम्मीदवारी वापस लेना

  5. मतदान: गुप्त मतदान प्रक्रिया

  6. मतगणना: मतों की गिनती और परिणाम घोषणा

ऐतिहासिक संदर्भ: 2022 का उपराष्ट्रपति चुनाव

2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ को NDA का उम्मीदवार बनाया गया था। उस समय निर्वाचक मंडल में कुल 780 सदस्य थे, जिनमें NDA के पास 449 सदस्य (58%) थे। धनखड़ 6 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति चुने गए थे।

राज्यवार NDA की स्थिति

NDA की मजबूत स्थिति का आकलन राज्यवार वितरण से होता है:

प्रमुख राज्यों में NDA की स्थिति:

  • उत्तर प्रदेश: 36 सांसद (कुल 80 में से)

  • बिहार: 30 सांसद (कुल 40 में से) – जिसमें JDU के 12 सांसद शामिल हैं

  • मध्य प्रदेश: मजबूत प्रतिनिधित्व

यह वितरण दिखाता है कि NDA का आधार देश के विभिन्न भागों में मजबूत है।

संभावित चुनौतियां और अवसर

NDA के लिए अवसर:

  1. स्पष्ट बहुमत: 422 सदस्यों के साथ आरामदायक जीत की स्थिति

  2. विकल्प की सुविधा: कई योग्य उम्मीदवारों में से चुनने की सुविधा

  3. सर्वसम्मति की संभावना: विपक्ष के साथ सहयोग से सर्वसम्मत चुनाव

संभावित चुनौतियां:

  1. गठबंधन की एकता: विभिन्न दलों की सहमति सुनिश्चित करना

  2. क्षेत्रीय संतुलन: विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व का संतुलन

  3. जाति और धर्म के कारक: सामाजिक संतुलन का ध्यान रखना

राज्यसभा की कार्यप्रणाली पर प्रभाव

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद हरिवंश नारायण सिंह ने राज्यसभा की कार्यवाही की जिम्मेदारी संभाल ली है। नियमों के अनुसार, जब तक नए उपराष्ट्रपति का चुनाव नहीं होता, राज्यसभा के उपसभापति सदन की अध्यक्षता करते हैं।

मानसून सत्र पर प्रभाव

संसद के मानसून सत्र के दौरान यह इस्तीफा आया है, जिससे राज्यसभा की कार्यप्रणाली में कुछ बदलाव देखने को मिले हैं। हरिवंश ने सदस्यों को बताया कि जब उन्हें नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की जानकारी मिलेगी तो वे इसके बारे में सूचित करेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

उपराष्ट्रपति चुनाव का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व है क्योंकि यह पद भारतीय लोकतंत्र में संसदीय प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग है। नए उपराष्ट्रपति का चुनाव भारत की संवैधानिक स्थिरता और लोकतांत्रिक परंपराओं को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

NDA की मजबूत स्थिति

वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के आकलन से यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) उपराष्ट्रपति चुनाव में स्पष्ट बहुमत की स्थिति में है। 776 सदस्यों के निर्वाचक मंडल में 422 सदस्यों के साथ NDA के पास आरामदायक जीत का मार्ग है। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का नाम सबसे प्रबल उम्मीदवार के रूप में उभर रहा है, जिससे JDU-BJP गठबंधन में संतुलन भी बना रहेगा।

जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने राजनीतिक चर्चाओं को तेज कर दिया है, लेकिन संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार शीघ्र ही नए उपराष्ट्रपति का चुनाव होना निश्चित है। NDA की मजबूत संख्या बल यह सुनिश्चित करती है कि गठबंधन अपने चुने गए उम्मीदवार को आसानी से जिता सकता है। हालांकि, सर्वसम्मति से चुनाव कराने का प्रयास भारतीय लोकतंत्र की परंपरा के अनुकूल होगा।

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