पंचायत चुनाव के बीच 11वीं की मासिक परीक्षा: शिक्षकों में नाराज़गी, परीक्षा कार्यक्रम पर उठे सवाल
🔍 मुख्य बिंदु (हाइलाइट्स)
पंचायत चुनाव की व्यस्तता के बावजूद 29 और 30 जुलाई को 11वीं की मासिक परीक्षा आयोजित करने का आदेश
अधिकतर शिक्षक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव ड्यूटी में तैनात
28 जुलाई को मतदान, 29 को मतदान सामग्री स्ट्रॉन्ग रूम तक पहुंचाई जानी है
स्कूलों को प्रश्नपत्र बनाने की जिम्मेदारी, शिक्षकों पर दोहरी दबाव
राजकीय शिक्षक संघ और राशिस ने की परीक्षा तिथि पर आपत्ति दर्ज
परीक्षा की गोपनीयता और निष्पक्षता को लेकर उठे प्रश्न
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव का माहौल जहां प्रशासनिक तैयारी, मतदान और गणना से व्यस्त है, वहीं शिक्षा विभाग ने इसी अवधि में कक्षा 11वीं की मासिक परीक्षा आयोजित करने का निर्णय लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। यह फैसला उन शिक्षकों के लिए बड़ा दबाव बन गया है, जिनकी ड्यूटी पंचायत चुनाव में लगी है और जो 28 जुलाई को मतदान प्रक्रिया का हिस्सा बनेंगे। ऐसे में अगले ही दिन परीक्षा कराना न तो व्यावहारिक है और न ही शिक्षण व्यवस्था के अनुकूल।
📆 क्या है परीक्षा कार्यक्रम?
राज्य के विद्यालय शिक्षा महानिदेशालय द्वारा जारी आदेश के अनुसार:
29 जुलाई (सोमवार):
विषय: अंग्रेज़ी, अर्थशास्त्र, रसायन विज्ञान, इतिहास, संस्कृत, व्यवसायिक अध्ययन, लेखा शास्त्र, गृह विज्ञान
30 जुलाई (मंगलवार):
विषय: हिंदी, राजनीति विज्ञान, भूगोल, गणित, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, संगीत गायन, कृषि, ड्राइंग एंड पेंटिंग
अगर किसी विद्यालय में अतिरिक्त वैकल्पिक विषय हैं, तो उनकी परीक्षा भी 30 जुलाई को ही आयोजित की जाएगी।
प्रश्नपत्र: विद्यालय स्तर पर ही तैयार किया जाना है, एससीईआरटी द्वारा निर्धारित मापदंडों के आधार पर।
🔄 परीक्षा और पंचायत चुनाव के बीच टकराव
तारीखों का संयोग:
24 और 28 जुलाई को पंचायत चुनाव मतदान की तिथियां हैं।
अधिकांश शिक्षकों की ड्यूटी ग्रामीण क्षेत्रों में लगी है।
28 जुलाई को चुनाव के दूसरे चरण के तुरंत बाद, 29 जुलाई को परीक्षा कराना कार्यान्वयन में कठिनाई उत्पन्न कर रहा है।
व्यावहारिक समस्या:
मतदान ड्यूटी से लौटने वाले शिक्षक देर रात या 29 जुलाई की दोपहर तक ही वापस आ पाएंगे।
इन शिक्षकों से प्रश्नपत्र बनवाने, परीक्षा संचालन और गोपनीयता सुनिश्चित कराना व्यवहारिक नहीं है।
प्रबंधन में असंतुलन:
शिक्षा विभाग ने विद्यालयों से प्रश्नपत्र बनवाने की जिम्मेदारी भी थोप दी है, जिससे शिक्षकों पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ा है।
🎓 शिक्षक संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया
✅ राजकीय शिक्षक संघ :
प्रांतीय महामंत्री रमेश चंद्र पैन्यूली कहते हैं:
“28 जुलाई को पंचायत चुनाव का दूसरा चरण है, जिसमें अधिकांश शिक्षक ड्यूटी में तैनात हैं। उनके लिए 29 जुलाई को परीक्षा कराना अत्यंत कठिन होगा। विभाग को तिथियों के निर्धारण में व्यावहारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए था।”
प्रदेश अध्यक्ष राम सिंह चौहान ने प्रतिक्रिया दी:
“पंचायत चुनाव के बीच परीक्षा की योजना बनाकर विभाग ने शिक्षकों और विद्यालयों को असुविधा में डाल दिया है। जो शिक्षक चुनाव ड्यूटी में हैं, वे पेपर कब बनाएंगे?”
🧾 विभागीय स्थिति और तर्क
शिक्षा विभाग की तरफ से प्रभारी अपर निदेशक पदमेंद्र सकलानी ने सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को 29 एवं 30 जुलाई को परीक्षा कराने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं।
वे कहते हैं:
“प्रश्नपत्र SCERT द्वारा तय मानकों के आधार पर स्थानीय शिक्षक तैयार करेंगे और परीक्षा की गोपनीयता सुनिश्चित की जाएगी।”
हालांकि इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि जिन शिक्षकों की चुनाव ड्यूटी है, वे परीक्षा की तैयारियों में कैसे हिस्सेदारी करेंगे।
🔍 क्या हैं प्रमुख चिंताएं?
समस्या की श्रेणी | विवरण |
---|---|
मानव संसाधन | शिक्षक चुनाव ड्यूटी में, परीक्षा संचालन मुश्किल |
प्रश्नपत्र निर्माण | पेपर बनाने की जिम्मेदारी स्कूल पर, समयाभाव |
परीक्षा गोपनीयता | परीक्षा की निष्पक्षता और गोपनीयता खतरे में |
छात्रों पर असर | अचानक परीक्षा आयोजन से छात्रों में भ्रम और तनाव |
प्रशासनिक असंगति | पंचायत चुनाव व शिक्षा विभाग के समन्वय की कमी |
🏫 छात्रों व अभिभावकों की चिंता
परीक्षा की तैयारियों के बीच मानसिक असमंजस।
28 तारीख को मतदान में संलिप्त परिजन और ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रियता के कारण विद्यार्थियों को परिवहन व तैयारी में समस्या।
शिक्षकों की अनुपस्थिति से पेपर बनने, मूल्यांकन होने और पक्षपात के आरोप लगने की संभावना।
⏳ क्या है समाधान?
शिक्षक संगठनों की मांग:
मासिक परीक्षा की तिथि को स्थगित या पुनर्निर्धारित किया जाए।
परीक्षा और चुनाव की तिथि में समन्वय रखा जाए।
मूल्यांकन व परीक्षा आयोजक को चुनाव ड्यूटी से मुक्त किया जाए।
संभावित विकल्प:
परीक्षा को अगस्त के पहले सप्ताह में आयोजित किया जाए।
प्रश्नपत्र क्षेत्रीय स्तर पर बनाए जाएं, ताकि स्कूलों का दबाव घटे।
वर्गवार मूल्यांकन को डिजिटल रूप से (ऑनलाइन मूल्यांकन दिशा-निर्देशों) में बदला जाए।
शिक्षा व्यवस्था के संचालन में यदि प्रशासनिक उद्देश्यों की उपेक्षा हो, तो उसका सीधा असर न केवल शिक्षकों, बल्कि छात्रों पर भी पड़ता है। पंचायती लोकतंत्र की सफलता में शिक्षक हमेशा सफल किरदार निभाते आ रहे हैं लेकिन उन्हें उनके मूल कार्य से इस प्रकार विचलित करना तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह जमीनी हकीकत को स्वीकारते हुए परीक्षा कार्यक्रम पर पुनर्विचार करे।
समझदारी यह नहीं कि दो जिम्मेदारियों में से एक को ही निभाया जाए, बल्कि निर्णयन में सामंजस्य और यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया जाए।