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दो करोड़ से अधिक बैलेट पेपर: आयोग की अनूठी तैयारी

दो करोड़ से अधिक बैलेट पेपर: आयोग की अनूठी तैयारी

हाइलाइट्स बॉक्स

  • पंचायत चुनाव 2025 के लिए आयोग ने छपवाए हैं दो करोड़ से भी अधिक बैलेट पेपर

  • बैलेट पेपर प्रत्याशी के नाम की बजाय चुनाव चिह्न आधारित होते हैं

  • 144 अलग-अलग चुनाव चिह्न तय, हर पद के लिए विशेष प्रतीक

  • पहली बार सरकारी प्रिंटिंग प्रेस के साथ निजी प्रेसों से भी छपाई

  • मतदाता सूची को ऑनलाइन जारी करने की शुरुआत

  • मतदान कर्मियों को मताधिकार की मांग फिर चर्चा में

  • मतदान को आसान बनाने के लिए रंगीन बैलेट पेपर व दिव्यांगजन के लिए खास सुविधा

पंचायत चुनाव लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ माने जाते हैं, जहां ग्रामीण मतदाता अपनी पंचायतों का चयन स्वतंत्र रूप से कर पाते हैं। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में पंचायत चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग हर बार नवीन तकनीक व पारदर्शिता के साथ चुनावी तैयारियाँ करता है। 2025 के पंचायत चुनाव में आयोग ने रिकॉर्ड स्तर पर दो करोड़ से अधिक बैलेट पेपर छपवाए हैं, जिससे चुनाव प्रक्रिया की जटिलता और इसकी भव्यता का अहसास होता है।

पंचायत चुनाव की तैयारियाँ: एक नजर

राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनावों की अधिसूचना से कई माह पहले ही जमीनी स्तर से योजनाएं बनाना शुरू कर दिया था। चुनाव में पारदर्शिता बनी रहे इसके लिए आयोग ने मतपेटियों की आपूर्ति हिमाचल प्रदेश से करवाई, ताकि किसी भी प्रकार की कमी ना रह जाए। बढ़ती मतदाता संख्या (उत्तराखंड में लगभग 50 लाख मतदाता अनुमानित) के अनुसार, आयोग ने दो करोड़ से अधिक बैलेट पेपर छपवाए। इस बार छपाई की प्रक्रिया में हैदराबाद स्थित सरकारी प्रिंटिंग प्रेस सहित उत्तर प्रदेश की सरकारी प्रेस और कुछ RBI अधिकृत निजी प्रेसों की भी मदद ली गई।

मतदाता सूची हुई ऑनलाइन

आधुनिक तकनीक के प्रयोग की दिशा में यह पहला अवसर था जब आयोग ने पंचायत चुनाव के लिए मतदाता सूची को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर उपलब्ध कराया। इससे ग्रामीण मतदाता अपने नाम की स्थिति घर बैठकर ही देख सकते हैं। अगर किसी प्रकार की गलती हो, तो सुधार की भी सहूलियत दी गई है। इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वास दोनों को बल मिला।

बैलेट पेपर: प्रत्याशी के नाम नहीं, चुनाव चिह्न बनते पहचान

भारत में पंचायत चुनाव “चुनाव चिह्न” आधारित होते हैं, न कि प्रत्याशी के नाम पर। इसका एक बड़ा कारण राजनीतिक दलों के सीधा मैदान में ना उतरना और स्थानीय स्तर पर स्वतंत्र उम्मीदवारों को बढ़ावा देना है। राज्यों के निर्वाचन आयोग प्रत्येक पद के लिए अलग-अलग प्रतीक चिह्न निर्धारित करते हैं, जिनकी सूची चुनाव से पहले सार्वजनिक कर दी जाती है।

आयोग के एक अधिकारी के अनुसार:

“प्रत्याशी के बजाय चुनाव चिह्न आधारित मतपत्र छपते हैं। प्रक्रिया के अनुसार, छह, नौ या बारह चिह्न के बैलेट तैयार कर लिए जाते हैं। जहाँ जितने प्रत्याशी होते हैं, उतने चिह्न बैलेट में मोडिफाई कर दिए जाते हैं—जैसे, पांच प्रत्याशी हैं तो छह वाले बैलेट से एक प्रतीक अलग कर दिया जाएगा।”

ऐसे प्रयोग से चुनावी निष्पक्षता मजबूत होती है और मतदाता को अपनी पसंद का चुनाव चिह्न चुनने में आसानी रहती है।

बैलेट पेपर के रंग और उनकी विशेषता

चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सुविधा के लिए बैलेट पेपर के लिए रंग कोडिंग भी तय की। उत्तराखंड में:

  • ग्राम पंचायत सदस्य का बैलेट पेपर सफेद

  • प्रधान प्रत्याशियों का बैलेट पेपर हरा

  • क्षेत्र पंचायत सदस्य का बैलेट पेपर नीला

  • जिला पंचायत सदस्य का बैलेट पेपर गुलाबी रखा गया है

रंगीन बैलेट पेपरों के जरिए अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे मतदाता भी अपने पद के अनुसार आसानी से सही बैलेट चुन सकते हैं। दिव्यांग मतदाताओं के लिए घर से मतदान केंद्र तक पहुंचाने के लिए परिवारजन को वाहन प्रयोग की अनुमति दी गई है, जिससे उन्हें स्वतंत्र और सम्मानजनक मतदान का अधिकार मिल सके।

चुनाव चिह्न: विविधता और पहचान

पूर्व की तरह इस बार भी पंचायत चुनावों के लिए आयोग ने 144 चुनाव चिह्न निर्धारित किए हैं। ये चिह्न प्रत्याशी की पद श्रेणी के अनुसार भिन्न होते हैं:

  • प्रधान: फावड़ा, बाल्टी, ड्रम, टोकरी, अनानास, कैमरा आदि।

  • क्षेत्र पंचायत सदस्य: नारियल, महिला पर्स, लौकी, गुड़िया, टेबल लैंप, टॉर्च आदि।

  • जिला पंचायत सदस्य: सीढ़ी, हथौड़ा, सैनिक, पेड़, सीटी, थर्मस आदि।

  • वार्ड सदस्य: तरबूज, सेब, घड़ा, शंख, चम्मच, डमरू, आम आदि।

हर प्रत्याशी को नामांकन व जांच प्रक्रिया के बाद उसके लिए उपलब्ध प्रतीकों में से एक चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया जाता है। आयोग ने इस बार वोटर्स की ऑनलाइन सूची भी सार्वजनिक की है जिसे यहाँ देखें

छपाई प्रक्रिया: सरकारी और निजी प्रेस की साझेदारी

पहली बार हैदराबाद स्थित सरकारी प्रिंटिंग प्रेस को पंचायत चुनाव के बैलेट पेपर छापने का जिम्मा सौंपा गया। इसके साथ ही यूपी की सरकारी प्रेस और कुछ निजी RBI अधिकृत प्रिंटर भी शामिल किए गए। छपाई की प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय और जांच-परख के बाद ही संबंधित जिलों को बैलेट पेपर भेजे गए।

छपाई से जुड़ी विवाद व हाईकोर्ट की टिप्पणी

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने हाल के मामले में यह सवाल खड़ा किया था कि नामांकन की अंतिम प्रक्रिया और प्रतीक आवंटन से पहले बैलेट पेपर छापने में आयोग ने जल्दबाजी क्यों की। आयोग ने बताया कि यह पूरी प्रक्रिया प्रत्याशियों की संख्या और चुनाव चिह्न फॉर्मेट के आधार पर मोडिफाईबल रहती है, जिससे कोई भी तकनीकी दिक्कत सामने नहीं आती।

मतदान कर्मियों का मतदान अधिकार: विवाद

पंचायत चुनाव के दौरान मतदान ड्यूटी में लगे कर्मचारियों, विशेषकर शिक्षकों, ने मताधिकार से वंचित होने की शिकायत की। जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ ने आयोग को पत्र लिखकर मतदान कार्य में लगे शिक्षकों को भी मतदान का अधिकार देने की मांग की। इस विषय पर आयोग द्वारा कोई स्पष्ट निर्देश न जारी होने से इस वर्ग में नाराजगी देखी गई। इस पर राज्य निर्वाचन आयोग विचार कर रहा है एवं संभवत: आगे के चुनावों में उपाय सुझाएगा।

चुनाव नतीजों की गणना और निष्पक्षता

मतदान समाप्ति के बाद सभी बैलेट पेपर सुरक्षित रूप से मतगणना केंद्र तक पहुंचाए जाते हैं। हर जिले में अलग-अलग मतगणना कक्ष बने रहते हैं। सरकारी और प्रेक्षक टीमें लगातार निगरानी रखती हैं ताकि मुकम्मल पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके। जिलेवार परिणाम की घोषणा उदाहरणार्थ एक ही बैलेट पेपर से पंचायत का परिणाम भी निकल सकता है, जैसा हाल में गुजरात के डाभरी गांव में देखने को मिला।

चुनाव प्रक्रिया में तकनीकी नवाचार

सेक्टर मजिस्ट्रेट व मतदान कर्मियों को मोबाइल ऐप और ऑनलाइन डैशबोर्ड उपलब्ध कराया गया है, जिससे वे किसी भी सूचना या शिकायत को तुरंत दर्ज कर सकते हैं। हालांकि कुछ सीमांत गाँवों या पहाड़ी क्षेत्रों में नेटवर्क संबंधी चुनौतियाँ सामने आई हैं, लेकिन प्रयास जारी हैं कि प्रदेश के कोने-कोने तक निर्बाध चुनाव प्रक्रिया संपन्न हो।

स्थानीय और सामाजिक असर

पंचायत चुनाव ग्रामीण समाज की नींव हैं। इन चुनावों में पहली बार मतदान करने वाले युवा, महिलाएं और दिव्यांगजन सभी की सक्रियता समाज में लोकतंत्र की मजबूती की मिसाल है। विविध चुनाव चिह्नों से स्थानीय पहचान को भी बल मिलता है, जैसे फल, सब्जी, घरेलू वस्तुओं के प्रतीक गाँव-समाज की झलक दिखाते हैं।

2025 के पंचायत चुनावों में दो करोड़ से अधिक बैलेट पेपर छपवाना और चुनाव चिह्न आधारित प्रक्रिया अपनाना, भारतीय लोकतंत्र के जमीनी स्तर पर बढ़ती परिपक्वता और पारदर्शिता का प्रमाण है। यह सशक्त प्रणाली एक ओर जहाँ स्वतंत्र चुनावी अधिकार सुनिश्चित करती है, वहीं स्थानीयता और विरासत को भी सम्मानित करती है। आयोग की ऑनलाइन पहलें, मतदान कर्मियों की भागीदारी और रंग एवं प्रतीक आधारित बैलेट—ये सब मिलकर चुनाव को सहज, निष्पक्ष और आधुनिक बनाते हैं। भविष्य में भी ऐसी पारदर्शी और तकनीक-समर्थित प्रणाली से लोकतंत्र और सुदृढ़ होगा, यही उम्मीद है।

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