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ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन बना रहा दुनिया का सबसे विशाल बांध, भारत–बांग्लादेश चिंतित

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन बना रहा दुनिया का सबसे विशाल बांध, भारत–बांग्लादेश चिंतित

हाइलाइट्स

  • चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाना शुरू किया, जबकि भारत और बांग्लादेश ने इसका विरोध किया।

  • परियोजना से प्रतिवर्ष लगभग 300 अरब किलोवाट घंटा बिजली उत्पादन का लक्ष्य।

  • भारत को भय है कि नदी के जल प्रवाह में कमी आएगी तथा जल को “हथियार” के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश में खेती, पर्यावरण और जन-जीवन पर भारी प्रभाव की संभावना।

  • बांध के लिए नमचा बरवा पर्वत के निकट लगभग चार 20 किमी लंबी सुरंगें बनाई जा रही हैं।

  • परियोजना के तहत विस्थापित होने वाले लोगों और पर्यावरणीय प्रभाव पर चीन ने जानकारी सार्वजनिक नहीं की।

  • चीन का दावा—बांध से निचले इलाकों पर कोई “नकारात्मक असर” नहीं होगा।

  • भारतीय विशेषज्ञों की राय—चीन पानी रोक या छोड़कर रणनीतिक और आर्थिक दबाव बना सकता है।

भारत के पड़ोसी देश चीन द्वारा तिब्बत में ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्सांगपो) नदी पर दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण प्रारंभ कर दिया गया है। इस परियोजना ने केवल भारत ही नहीं, बांग्लादेश और क्षेत्र के अन्य देशों के लिए भी नई चिंताएं पैदा कर दी हैं। भारत लंबे समय से इस परियोजना का विरोध करता आ रहा है, क्योंकि इससे नदी के निचले प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

परियोजना की मुख्य जानकारी

चीन ने जुलाई 2025 में आधिकारिक रूप से दक्षिण-पूर्वी तिब्बत के निंगची ज़िले में ब्रह्मपुत्र नदी पर विशाल जलविद्युत परियोजना की शुरुआत की। यह बांध भविष्य में यांग्त्जी नदी पर बने “थ्री गॉर्जेस डैम” से भी अधिक ऊर्जा उत्पादन करने में सक्षम होगा। परियोजना में पांच हाइड्रोपावर स्टेशन बनाए जा रहे हैं और कुल निवेश 1.2 ट्रिलियन युआन यानी लगभग 167 अरब अमेरिकी डॉलर है। इस निवेश के पीछे चीन का दावा है कि भविष्य में तिब्बत और अन्य क्षेत्रों की बिजली जरूरतें इसी से पूरी होंगी।

जहाँ तिब्बती अधिकारियों के अनुसार, परियोजना से बिजली का बड़ा हिस्सा दूसरे इलाकों में भेजा जाएगा, वहीं कुछ ऊर्जा स्थानीय खपत के लिए भी होगी। यह बांध तिब्बत के नमचा बरवा पर्वत क्षेत्र (हिमालय की सबसे पूर्वी उपश्रेणी) में और बाजू के चीन-भारत सीमा क्षेत्र के नजदीकी निंगची में बनाया जा रहा है। इसकी खास बात यह है कि इसके लिए ब्रह्मपुत्र नदी के विशाल “यू-टर्न” या “ग्रेट बेंड” क्षेत्र के नीचे तक कम-से-कम 4 बड़ी सुरंगे बनाई जानी हैं, ताकि नदी की धारा मोड़कर बिजली उत्पादन की आवश्यकता पूरी की जा सके।

भारत-बांग्लादेश की आपत्तियाँ और क्षेत्रीय संकट

भारत और बांग्लादेश दोनों ने इस परियोजना का कड़ा विरोध जताया है। भारत की चिंता है कि ऊपर के क्षेत्र (अपस्ट्रीम) में बांध बनने से नदी के निचले हिस्सों (डाउनस्ट्रीम) में पानी का प्रवाह कम हो जाएगा—इससे असम, अरुणाचल प्रदेश तथा पूर्वोत्तर क्षेत्रों के सामाजिक, कृषि और पारिस्थितिक संतुलन पर विपरीत असर पड़ सकता है।

भारतीय विदेश मंत्रालय समेत विभिन्न विशेषज्ञों की चिंता रही है कि चीन बिना पूर्व सूचना के पानी रोक या खोल सकता है, जिससे अचानक आई बाढ़ या सूखा दोनों ही प्रकार के संकट पैदा हो सकते हैं। बांग्लादेश भी इसी कारण से इस परियोजना को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करता है, क्योंकि ब्रह्मपुत्र के निचले प्रवाह पर इसकी निर्भरता अत्यधिक है।

सतर्कता की आवश्यकता (भारतीय विश्लेषकों द्वारा)

“जब तक चीन पारदर्शिता और सूचना साझा करने की प्रतिबद्धता नहीं निभाता, तब तक इस बांध के खतरे को हल्के में नहीं लिया जा सकता।”

नदी के प्राकृतिक प्रवाह और पारिस्थितिकी पर प्रभाव

ब्रह्मपुत्र क्षेत्र अपनी समृद्ध जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) के लिए देश-दुनिया में मशहूर है। नदी के बहाव के साथ जो मिट्टी (गाद) आती है, उसमें कृषि के लिए बेहद जरूरी खनिज होते हैं। बांध निर्माण और नदी का प्रवाह बदलने पर यह गाद निचले क्षेत्रों में नहीं पहुंचेगी, जिससे अरुणाचल और असम में खेती तथा जैविक विविधता को नुकसान पहुँच सकता है। इसी बहाव पर काजीरंगा जैसी जैव विविधता से भरे राष्ट्रीय उद्यान भी निर्भर हैं।

पर्यावरणविद बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि इतना बड़ा बांध पूरे क्षेत्र की पारिस्थितिकी को स्थायी रूप से बदल सकता है। नदी के जल प्रवाह में बाधा आने से यहाँ के मानव और वन्य जीवों दोनों की जीवन-शैली प्रभावित होगी। निचले क्षेत्रों में पानी के अचानक छोड़े जाने से बाढ़ आ सकती है—यह सामाजिक और आर्थिक स्तर पर गंभीर चुनौती बन सकती है।

साल 2017 में डोकलाम विवाद के दौरान चीन ने ब्रह्मपुत्र पर जलवैज्ञानिक डेटा साझा करना बंद कर दिया था। इस कारण भारत में तत्कालीन बारिश में बाढ़ की आशंका बढ़ गई थी।

रणनीतिक, सामाजिक और स्थानीय प्रभाव

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लोगों की आजीविका, पारिस्थितिकी और बुनियादी जरूरतें ब्रह्मपुत्र पर ही निर्भर हैं। स्थानीय किसान मानते हैं कि

“नदी के प्राकृतिक प्रवाह को मोड़ना, खेती और मछली पालन के लिए लंबे समय में भारी नुकसान का कारण बन सकता है।”

घरों का विस्थापन, रोजगार की समस्या, जलस्रोत पर अस्थिरता, और गरीबी जैसे सवाल स्थानीय समाज के समक्ष उठ खड़े होते हैं। वहीं, यह भी आशंका है कि इतनी बड़ी परियोजना से तिब्बत के कुछ भागों में विस्थापन होगा, लेकिन चीनी सरकार ने इस पर स्पष्ट जानकारी नहीं दी है।

तकनीकी जटिलता और सुरक्षा

ब्रह्मपुत्र पर बनने वाले इस विशाल बांध को बनाने के लिए चीन को नमचा बरवा पर्वत के आसपास हजारों मजदूर और भारी मशीनरी लगानी पड़ी है। यहां हिमालय की दुर्गम घाटी, भीषण ठंड तथा भूकंप के खतरे जैसी तमाम चुनौतियां हैं।

चीन का पक्ष और विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया

चीनी अधिकारियों का कहना है कि यह परियोजना तिब्बत के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। वह कहते हैं कि “निचले इलाकों पर कोई उल्लेखनीय प्रतिकूल असर” नहीं पड़ेगा और भारत, बांग्लादेश के हित ध्यान में रखे जाएंगे। हालाँकि, वास्तविक चिंता यह है कि बाँध बनने के बाद भविष्य में चीन चाहे तो राजनैतिक या रणनीतिक कारणों से पानी रोक या अचानक छोड़ सकता है—इसे अक्सर “जल कूटनीति” भी कहा जाता है।

पर्यावरण संगठन, थिंक टैंक और क्षेत्रीय विशेषज्ञ चीन की इस परियोजना की पारदर्शिता, जानकारी साझा करने की नियमित व्यवस्था और संभावित पर्यावरणीय जोखिमों को लेकर जवाबदेही की मांग करते आ रहे हैं।

चीन द्वारा तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर दुनिया के सबसे बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का निर्माण भारत और पड़ोसी देशों के लिए गहरी चिंता का कारण बन गया है। जहाँ चीन इसे विकास और ऊर्जा सुरक्षा के नए युग के रूप में प्रस्तुत करता है, वहीं भारत के लिए यह राष्ट्रीय, सामाजिक और पर्यावरणीय संकट के रूप में उभर सकता है। क्षेत्रीय शांति, नदी के निचले प्रवाह और जैविक विविधता के लिए जिम्मेदारी से आगे बढ़ना, केवल चीन पर ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता पर निर्भर करता है।

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