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कच्यार और बरसात: फिर भी न टूटा हौंसला, जनता तक  पहुंचे प्रत्याशी

कच्यार और बरसात: फिर भी न टूटा हौंसला, जनता तक  पहुंचे प्रत्याशी

हाइलाइट्स

  • उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव बारिश के मौसम में आयोजित

  • सड़कों की खराब हालत, ग्रामीण इलाकों में कठिनाई

  • प्रशासन ने सुरक्षित मतदान और पोलिंग पार्टी पहुंचाने की बनाई खास रणनीति

  • स्थानीय जनता, उम्मीदवार और प्रशासन–तीनों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति

  • हेलिकॉप्टर और बचाव दलों की मदद की तैयारी, बारिश से लगातार प्रभावित सैकड़ों सड़कें

उत्तराखंड के पहाड़ी और दूरदराज़ क्षेत्रों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 का प्रचार पूरे जोर-शोर से जारी है। एक ओर लगातार बारिश से सड़कों की हालत खराब है, दूसरी ओर प्रत्याशी और उनके समर्थक हर गांव, हर घर, खेत-खलिहान तक पहुंचकर वोट मांगने के लिए निकल पड़े हैं। हादसों, मार्ग अवरोध, गाड़-गदेरे के उफान के बावजूद उम्मीदवार और प्रशासन – दोनों इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए नए-नए जतन कर रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में स्थानीय जनता की समस्याएं, प्रशासन की योजनाएं और चुनावी माहौल, सबकुछ मौसम के अनुकूल ही नहीं चल रहा।

बरसात से टूटी राहें, फिर भी जारी है चुनावी प्रचार

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मानसून के मौसम में सबसे अधिक परेशानी सड़क मार्गों को लेकर आती है। चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ जैसे जिलों में बारिश के कारण लगातार भूस्खलन होता है जिससे राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर ग्रामीण संपर्क मार्ग बार-बार बाधित हो जाते हैं। इसी बीच चुनावी माहौल अपने चरम पर है—महिला, पुरुष, युवा प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ उफनते नालों, कीचड़, टूटे रास्तों और पहाड़ी ढलानों को पार कर घर-घर जाकर संपर्क बना रहे हैं।

ग्रामीण इलाकों के कई लिंक मार्ग पूरी तरह से बंद हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, जून से जुलाई 2025 के बीच केवल चमोली जिले में 179 सड़कें अवरुद्ध हुईं जिसमें से अधिकांश को फिर से खोला गया, लेकिन औसतन 10-20 सड़कें अब भी रोज किसी न किसी विभाग के लिए चुनौती बनी रहती हैं। ऐसी स्थिति में जहां रास्ते नहीं हैं, वहां लोग जान जोखिम में डालकर मीलों पहाड़ चढ़-उतरकर या बंजर रास्तों से होकर घर-घर प्रचार कर रहे हैं।

न टूटे प्रत्याशियों के हौसले

गोपेश्वर के रमेश सिंह, जो जिला पंचायत सदस्य के लिए खड़े हैं, उनका कहना है—“रास्ते बंद हैं, नालों में उफान है, लेकिन जनता हमारे लिए नहीं, अपने हक के लिए वोट करती है, इसलिए हम हर हाल में लोगों से मिलेंगे।”

चमोली की ग्राम पंचायत डांडा की बात करें तो यहां के ग्रामीणों को सड़क न होने से चार किलोमीटर तक पहाड़ी खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है। बीमारों या बुजुर्गों को डंडी के सहारे लाना पड़ता है—फिर भी चुनावी माहौल में गांव की हर चौपाल पर बहस और चर्चा जोरों पर है।

प्रशासन की विशेष तैयारियां

प्रशासन ने नुकसान की आशंका को देखते हुए हर स्तर पर अत्यधिक सतर्कता बरती है। जिलाधिकारी और निर्वाचन अधिकारियों ने ये सुनिश्चित किया कि मतदान टीमों व पोलिंग पार्टी को समय से मतदेय स्थलों तक पहुंचाने में किसी प्रकार की बाधा न आए। इसके लिए:

  • जिन क्षेत्रों में बारिश व आपदा का खतरा ज्यादा है, उन्हें पहले फेज में लिया गया

  • आवश्यकता पड़ने पर हेलिकॉप्टर से पोलिंग पार्टी भेजने का निर्णय

  • सभी जिलाधिकारियों को आपदा प्रबंधन और वैकल्पिक मार्ग की सूचना तैयार रखने का निर्देश

  • सम्बंधित विभागों (पीडब्ल्यूडी, पीएमजीएसवाई, आपदा प्रबंधन) से मार्गों की सफाई व मरम्मत, सुबह शाम निरीक्षण की व्यवस्था

  • आपात स्थिति में जेसीबी और आवश्यक मशीनरी को तैनात रखने का आदेश

  • बीमार, बुजुर्ग, अपंग मतदाताओं के लिए विशेष प्रबंध

बारिश में चुनावी ड्यूटी: पुलिस बल और आपदा टीम का संतुलन

उत्तराखंड पुलिस बल का बड़ा हिस्सा सावन की कांवड़ यात्रा, चारधाम यात्रा और आपदा प्रबंधन में भी लगाया गया है। शेष बल की तैनाती पंचायत चुनाव की व्यवस्था के लिए की गई है। डीजीपी के अनुसार, “कांवड़ यात्रा समाप्त होते ही बाकी बल चुनाव ड्यूटी के लिए मुस्तैद कर दिया जाएगा”। इससे स्पष्ट है कि प्रशासन को अपने सीमित संसाधनों और मानवबल का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करना पड़ रहा है।

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव: बारिश बनी लोकतंत्र का इम्तिहान

जुलाई 2025 में उत्तराखंड के 12 पर्वतीय जिलों में दो चरणों में पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं। जहां चुनाव आयोग ने संवेदनशील क्षेत्रों को पहले चरण में रखा है ताकि मानसून का असर कम पड़े, वहीं बहुत सारे ऐसे विकासखंड और गांव भी हैं जहाँ मौसम विभाग के अनुमान से ज्यादा बारिश हुई और स्थानीय समस्याएं ज्यादा उभरकर आईं।

चुनावी प्रक्रिया को सुचारु बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग ने आपदा प्रबंधन से लेकर मौसम विभाग तक से तालमेल बिठाया है, ताकि आने वाली किसी भी बाधा से निपटा जा सके। बेसुध बारिश और लगातार बदलती परिस्थितियों में प्रशासन के लिए चुनाव को समय पर और शांति से कराना बड़ा अभियान बन गया है।

संकट के बीच लोकतांत्रिक भागीदारी

इन कठिन परिस्थितियों में भी ग्रामीण अंचलों में लोकतंत्र का उत्सव दिख रहा है। प्रत्याशी ही नहीं, स्थानीय लोग भी भारी संख्या में जनसभाओं, नुक्कड़ सभा, चौपाल, और सामाजिक चर्चाओं में भाग ले रहे हैं। भले ही आकाश में बादल हों और रास्ते बद्तर हालत में हों, लोगों को उम्मीद है कि उनका चुना गया प्रतिनिधि उनकी समस्याओं को प्राथमिकता देगा। इसी जमीनी भरोसे के कारण, चुनौतियों के बावजूद लोकतंत्र की यह यात्रा लगातार आगे बढ़ रही है।

प्रशासन, ग्रामीण और प्रत्याशी: तीनों की परीक्षा

ग्रामीण उत्तराखंड में ऐसे अवसर विरले ही आते हैं जब प्रशासन, ग्रामीण जनता और राजनीतिक प्रत्याशी, तीनों के सामने एक साथ कठिन स्थिति हो। सड़कों की जर्जर स्थिति, मौसम की अनिश्चितता और सीमित संसाधनों के बावजूद चुनावी व्यवस्थाओं को सफल बनाना राज्य प्रशासन, चुनाव आयोग और स्थानीय सरकारों के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी है।

हाईकोर्ट के निर्देश और प्रशासनिक जद्दोजहद

बारिश, कांवड़ यात्रा, आपदा प्रबंधन और चुनाव—सभी एक साथ होने से प्रशासनिक तैयारियों पर लगातार सवाल उठते रहे। राज्य निर्वाचन आयुक्त, पंचायतीराज सचिव और पुलिस अधिकारी—सभी ने कोर्ट के सामने चुनाव संचालन के लिए पूरी तैयारी और सुरक्षित प्रक्रिया का भरोसा दिलाया।

उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 लोकतंत्र, निडर हौसले और प्रशासनिक जिम्मेदारी के अनूठे संगम बनकर सामने आए हैं। अपने संघर्ष और समस्याओं के बावजूद, ग्रामीण जनभागीदारी, प्रत्याशियों की मेहनत और शासन-प्रशासन की सतर्कता ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को जीवंत बनाए रखा है। बारिश और प्राकृतिक आपदा के आगे भी इन पहाड़ों में लोकतंत्र का उत्सव यूं ही जारी रहेगा—आशा की डोर पकड़े, रास्ते बनाने का हौंसला लिए।

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