Screenshot 2025 0719 062916

प्रधानाचार्य विभागीय भर्ती नियमावली : शिक्षक संघ का विरोध, शिक्षा व्यवस्था पर असर

प्रधानाचार्य विभागीय भर्ती नियमावली : शिक्षक संघ का विरोध, शिक्षा व्यवस्था पर असर

 

हाइलाइट्स

राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखंड ने प्रधानाचार्य विभागीय भर्ती नियमावली का गहरा विरोध किया
– शिक्षकों का आरोप – यह नियमावली प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है
– सरकार सीधी भर्ती और पदोन्नति के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में
– 79% तक प्रधानाचार्य पद राज्य के इंटर कॉलेजों में खाली हैं
– शिक्षक संघ ने सरकार को आंदोलन की चेतावनी दी
– विभाग ने एलटी और प्रवक्ता शिक्षकों को भी भर्ती के लिए मान्य किया
– भर्ती प्रक्रिया पर अभी असमंजस

उत्तराखंड राज्य में प्रधानाचार्य विभागीय भर्ती नियमावली पर गहरी बहस और संघर्ष देखने को मिल रहा है। राज्य के सरकारी विद्यालयों के शिक्षक संगठन ने सरकार द्वारा प्रस्तावित इस नियमावली का विरोध किया है। उनका कहना है कि बिना पदोन्नति के सीधी भर्ती की व्यवस्था शिक्षकों के मौलिक अधिकारों और शिक्षण सेवा की गरिमा को प्रभावित कर सकती है।
वर्तमान हालात में सरकारी इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य के अधिकतर पद रिक्त हैं, जिससे शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।

विभागीय भर्ती नियमावली : क्या है मामला?

सरकार ने हाल ही में एक नियमावली प्रस्तावित की है जिसके तहत उत्तराखंड के इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य के रिक्त पदों को विभागीय परीक्षा और सीधी भर्ती के माध्यम से भरा जाएगा। अब तक ये पद शत-प्रतिशत पदोन्नति से ही भरे जाते थे। मार्च 2009 के शासनादेश के प्रस्तर-चार में ऐसा स्पष्ट उल्लेख है।

लेकिन नयी पहल के तहत 50% पद विभागीय सीमित भर्ती परीक्षा के ज़रिए और शेष 50% पद पदोन्नति से भरने का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव अभी कैबिनेट में लंबित है, जिसमें वित्त विभाग की आपत्तियाँ भी हैं।
राज्य में कुल 1385 इंटर कॉलेजों में 1180 से अधिक प्रधानाचार्य पद रिक्त पड़े हैं, यानी करीब 79% पद खाली हैं। इसी तरह 910 प्रधानाध्यापक पदों में से 788 पद रिक्त हैं।

शिक्षक संघ का तर्क और विरोध

राजकीय शिक्षक संघ के अध्यक्ष राम सिंह चौहान और महामंत्री रमेश चंद्र पैन्यूली ने स्पष्ट कहा :

“प्रधानाचार्य का पद शत-प्रतिशत प्रमोशन से भरा जाने वाला पद है। ऐसे में इसमें किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ या सीधी भर्ती सही नहीं है।”

शिक्षक संगठन के तर्क:
– प्रमोशन के केवल दो ही अवसर हैं – हाईस्कूल का प्रधानाध्यापक और इंटर कॉलेज प्रधानाचार्य
– विभागीय परीक्षा या सीधी भर्ती पहली बार लागू हुई तो पदोन्नति के मौकों पर भारी असर होगा
– सरकार सेवा अवधि में तीन प्रमोशन की बात करती है, लेकिन नियमावली में मौके सीमित कर रही है
– यह बेहतर शिक्षकों की सेवा आकांक्षा व मनोबल के विरुद्ध है

शिक्षक संघ ने चेतावनी दी – अगर नियमावली में बदलाव नहीं हुआ तो राज्य-स्तरीय आंदोलन किया जाएगा, और इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।

सरकार की दलील और बदलाव का औचित्य

शिक्षा विभाग का कहना है कि वर्षों से लगभग 80% प्रधानाचार्य पद खाली पड़े हैं। पदोन्नति प्रक्रिया या कोर्ट के विवादों के कारण समय पर नियुक्ति नहीं हो पा रही है। ऐसे में गुणवत्ता और नेतृत्व क्षमता वाले योग्य वरिष्ठ शिक्षकों को विभागीय परीक्षा के ज़रिए मौका देना ज़रूरी है, जिससे विद्यालयों को बेहतर नेतृत्व मिल सके।

सरकार ने प्रस्ताव में बदलाव करते हुए:
– प्रवक्ताओं के साथ-साथ सहायक अध्यापक (एलटी) को भी भर्ती के लिए मान्य किया है, लेकिन इसके लिए उन्हें 10 से 15 वर्षों की सेवाएँ पूरी करनी होंगी
– शिक्षकों की आयु सीमा अधिकतम 50 वर्ष रखी गई है
– नियमावली को अंतिम रूप कैबिनेट की मंजूरी के बाद मिलेगा।

विवाद के मूल कारण

1. वरिष्ठता बनाम योग्यता: शिक्षकों की माँग है कि केवल अनुभव (वरिष्ठता) के आधार पर पद-पदोन्नति हो, जबकि सरकार दक्षता की परीक्षा को ज़रूरी मान रही है।
2. पदोन्नति के अवसर सीमित होना: विभागीय परीक्षा/सीधी भर्ती लागू होने से पदोन्नति के अवसर कम होंगे, जिससे शिक्षकों का मनोबल प्रभावित हो सकता है।
3. व्यापक रिक्तियाँ और शिक्षा-गुणवत्ता पर असर: इतने बड़े स्तर पर प्रधानाचार्य पद रिक्त होना सीधे-सीधे विद्यालय संचालन व बच्चों की शिक्षा पर असर डाल रहा है।

आंदोलन की रूपरेखा

पिछले एक वर्ष में पूरे राज्य के विभिन्न जिलों में विभिन्न शिक्षकों ने काली पट्टियाँ बाँधकर विरोध दर्ज कराया। कई शिक्षकों ने सचिवालय में जाकर ज्ञापन सौंपे और जिला स्तर पर धरने प्रदर्शन हुए। ऐसे आंदोलनों के चलते लोक सेवा आयोग द्वारा सितंबर 2024 में प्रस्तावित चयन परीक्षा स्थगित करनी पड़ी थी।

सामाजिक पक्ष देखें तो जब शिक्षक आंदोलन या हड़ताल पर जाते हैं, तो उसका सीधा असर लाखों  स्कूली बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है – खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। वंचित या निर्धन बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए यह स्थिति और कठिन हो जाती है।

नियमावली की प्रक्रिया और कोर्ट में विवाद

नए संशोधित नियमावली के मसौदे में व्यापक विचार विमर्श के बाद सहमति बनी कि प्रधानाचार्य पदों के लिए विभागीय सीधी भर्ती, पदोन्नति व कोर्ट के विवादों के मद्देनज़र सहायक अध्यापक (एलटी) और प्रवक्ता दोनों को सेवा अवधि के आधार पर पात्रता दी जायेगी।
लेकिन इस विषय में अभी कैबिनेट स्तर पर निर्णय लंबित है, साथ ही कई शिक्षक कोर्ट में भी गए हैं। कई जिलों में भर्ती समर्थक और विरोधी दोनों गुट शिक्षकों के बीच उग्र बहस हो रही है।

शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव

इतने व्यापक स्तर पर प्रधानाचार्य नहीं होने से स्कूलों में नेतृत्व की कमी स्पष्ट दिख रही है। स्कूलों में नीति, अनुशासन और शैक्षिक माहौल प्रभावित हो रहा है, जिससे हजारों बच्चों पर दूरगामी असर संभव है।

चुनौतियां

प्रधानाचार्य विभागीय भर्ती नियमावली पर उत्तराखंड में मची गहमागहमी शिक्षा व्यवस्था की चुनौतियों को उजागर करती है। शिक्षक संघ का विरोध केवल खुद के हितों तक सीमित नहीं, बल्कि सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र से जुड़ा है। सरकार और शिक्षकों के बीच सामंजस्य, न्यायसंगत नियमावली और पारदर्शिता के साथ पदों की भर्ती ही इस समस्या का वास्तविक निदान है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

 

प्रश्न: प्रधानाचार्य पद के लिए सबसे ज्यादा रिक्तियाँ किस वजह से हैं?
उत्तर: वर्षों से पदोन्नति व सीधी भर्ती प्रक्रिया या कोर्ट विवाद के कारण लगभग 79% प्रधानाचार्य पद खाली हैं।

प्रश्न: क्या भर्ती में एलटी कैडर शिक्षकों के लिए कोई विशेष शर्त है?
उत्तर: जी हाँ, एलटी कैडर के शिक्षकों के लिए कम-से-कम 10 से 15 साल की नियमित सेवा अनिवार्य की गई है।

प्रश्न: क्या सभी शिक्षकों को प्रधानाचार्य बनने का समान अवसर मिलेगा?
उत्तर: नियमावली के अनुसार, अब प्रवक्ता के साथ-साथ एलटी शिक्षकों को भी मौका मिलेगा, मगर वह सेवा अवधि व अन्य योग्यताओं के अधीन होगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *