उत्तराखंड के स्कूलों में योग प्राणायाम की अनिवार्यता: स्वास्थ्य शिक्षा की दिशा में बड़ा कदम
हाइलाइट्स
– प्रदेश की कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों को पाठ्यक्रम में योग प्राणायाम सिखाने की योजना
– प्रथम चरण में 200 से अधिक छात्र-छात्राएं वाले इंटर स्कूलों में लागू होगा कार्यक्रम
– जहाँ व्यायाम शिक्षक नहीं, वहाँ संविदा पर योग प्रशिक्षक नियुक्त होंगे
– शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत की पहल, जल्द कैबिनेट में प्रस्ताव
– योग से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर जोर
उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश के शैक्षिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने की घोषणा की है। अब राज्य के इंटर स्कूलों में कक्षा छह से बारहवीं तक के छात्र-छात्राओं को नियमित रूप से योग और प्राणायाम की शिक्षा मिलेगी। यह योजना शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत की पहल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वस्थ भारत अभियान से प्रेरित है।
क्यों है यह योजना जरूरी
पहाड़ों में रहकर अध्ययन करने वाले छात्र-छात्राएं अक्सर शारीरिक गतिविधियों की कमी और मानसिक दबाव से जूझते हैं। ऐसे में योग न केवल शारीरिक लचीलापन व स्वास्थ्य बढ़ाएगा, बल्कि छात्र-छात्राओं को मानसिक और आत्मिक संतुलन भी देगा। कोविड-19 के बाद यह और भी प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ा है।
चरणबद्ध क्रियान्वयन
पहले चरण में प्रदेश के उन इंटर स्कूलों का चयन किया गया है, जहाँ कुल छात्रों की संख्या 200 से अधिक है। यहाँ कक्षा 6 से 12 तक के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत योग-प्राणायाम की शिक्षा दी जाएगी। सबसे पहले उन स्कूलों को चुना जा रहा है, जहाँ व्यायाम शिक्षक पहले से नियुक्त हैं। इन शिक्षकों को विशेष रूप से योग प्रशिक्षक के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा।
जहाँ व्यायाम शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ राज्य सरकार संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) के आधार पर योग प्रशिक्षकों की नियुक्ति करेगी, ताकि कोई भी छात्र इस पहल से वंचित न रहे।
दूसरा चरण
शिक्षामंत्री डॉ. रावत के अनुसार, अगले चरण में वे स्कूल शामिल होंगे, जहाँ छात्र संख्या 200 से कम है। इस तरह धीरे-धीरे सभी स्कूलों में योग की शिक्षा अनिवार्य की जाएगी।
प्रशासनिक तैयारियां
डॉ. धन सिंह रावत ने बताया कि इस कार्ययोजना के लिए प्रस्ताव कैबिनेट में शीघ्र ही लाया जाएगा। सरकार का लक्ष्य है कि इस व्यवस्था को जल्द-से-जल्द हर स्कूल में लागू किया जाए और उत्तराखंड योग शिक्षा का अग्रणी राज्य बने।
योग: उत्तराखंड की विरासत
शिक्षामंत्री ने यह भी माना है कि योग की शुरुआत देवभूमि उत्तराखंड से ही हुई और आज भी यहाँ के वातावरण और संस्कृति में योग का गहरा स्थान है। राज्य की जनता और विद्यार्थी इसमें पारंगत रहें, यह सरकार की प्राथमिकता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
शारीरिक लाभ: योग और प्राणायाम से बच्चों का शारीरिक विकास, लचीलापन, सहनशक्ति तथा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
मानसिक एवं भावनात्मक लाभ: अनावश्यक तनाव, डर और मानसिक थकावट में कमी आती है।
आध्यात्मिक परिपक्वता: योग से छात्रों में आत्मविश्वास, अनुशासन और सकारात्मक मानसिकता विकसित होती है।
स्थानीय प्रासंगिकता
उत्तराखंड के कई ग्रामीण व पर्वतीय क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ स्वास्थ्य सेवाओं तक बच्चों की पहुँच सीमित है। ऐसे में योग व प्राणायाम के माध्यम से बच्चों को स्वावलंबी और जागरूक बनाना एक दूरदर्शी कदम है। सामाजिक संगठनों का भी मानना है कि योग शिक्षा से नई पीढ़ी तनावमुक्त, फिट और भविष्य के लिए तैयार होगी।
योग भारत की परंपरा और संस्कृति का ऐसा हिस्सा है, जिसकी वैश्विक लोकप्रियता आज सभी जानते हैं। उत्तराखंड सरकार का यह फैसला न सिर्फ शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा, बल्कि प्रदेश को योग शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भी बनाएगा। अभिभावकों, शिक्षकों और समाज की जिम्मेदारी होगी कि इसे उत्साह से लागू करें और बच्चों को स्वस्थ भविष्य की ओर बढ़ने में सहायता करें।