उत्तराखंड में लिंगुड़ा और जंगली मशरूम: स्वाद के साथ जान का खतरा
हाइलाइट्स
– रानीखेत की महिला की लिंगुड़ा खाने के बाद एसटीएच हल्द्वानी में मौत
– बढ़ती घटनाएं: कुमाऊं-गढ़वाल के कई गाँवों में जंगली साग-सब्जी बन रही जानलेवा
– विशेषज्ञों की चेतावनी: बिना उचित पहचान और सलाह के न खाएं जंगली पौधे
– हाल के सालों में जंगली मशरूम और लिंगुड़ा से मौत के मामले बढ़े
– स्थानीय भोजन संस्कृति में जंगली खाद्य पदार्थों की खास जगह
उत्तराखंड के पहाड़ों में होने वाली जंगली सब्जियां यहां के खानपान का विशेष हिस्सा रही हैं। इनमें लिंगुड़ा (एक तरह का पहाड़ी फर्न) और जंगली मशरूम सबसे अधिक पसंद किए जाते हैं। इसका स्वाद तो हर किसी को लुभाता है, लेकिन हाल के दिनों में ये सब्जियां कई लोगों के लिए जानलेवा साबित हुई हैं।
रानीखेत: लिंगुड़ा खाने से महिला की मौत, परिवार में मातम
रानीखेत में मूलतः नेपाल के थापापुर निवासी मिलन अपनी पत्नी सपना के साथ रहते हैं। रोजी-रोटी के लिए दोनों दंपति मेहनत-मजदूरी करते हैं। आठ दिन पहले मिलन जंगल से लिंगुड़ा लाए और सपना ने उससे सब्जी बनाई। खाना खाने के कुछ देर बाद दोनों की तबीयत अचानक बिगड़ गई— उल्टियां शुरू हो गईं और कमजोरी महसूस हुई। अस्पताल में इलाज के बाद दोनों की स्थिति में सुधार हुआ, और उन्हें घर भेज दिया गया। पर दोबारा सपना को तेज बुखार, उल्टियां और कमजोरी ने घेर लिया। हालत गंभीर होने पर हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल ले जाया गया, पर बुधवार रात सपना की मौत हो गई।
पुलिस ने पोस्टमार्टम कराया और शव परिवार को सौंप दिया। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी के अनुसार,
“जंगली लिंगुड़ा खाने के बाद सपना की तबीयत बिगड़ी थी। इलाज के बावजूद उसकी मौत हो गई। विस्तार से कारण पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही पता चलेगा।”
जंगली लिंगुड़ा और मशरूम: स्वाद से स्वास्थ्य खतरे तक
उत्तराखंड में बरसात और गर्मियों के मौसम में लिंगुड़ा की बहुत मांग रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे खेतों, जंगलों से लाकर सब्जी बनाई जाती है। वैसे तो यह पौष्टिक और स्वादिष्ट है, लेकिन यदि सही से धोया, उबाला और पकाया न जाए या इसकी प्रजाति ठीक से न पहचानें, तो यह जहर की तरह असर दिखा सकता है।
विशेषज्ञों की राय
वनस्पति विशेषज्ञ प्रोफेसर एससी सती का कहना है,
“जंगली खाद्य पौधे हमारी सांस्कृतिक पहचान हैं, पर लापरवाही से यह खतरे में डाल सकते हैं। मशरूम या लिंगुड़ा की कई प्रजातियां एक जैसी दिखती हैं, जिनमें जहरीली प्रजाति की पहचान आम लोगों के लिए कठिन है।”
डॉ. अरुण जोशी (प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी) के मुताबिक, ”
कई बार लोग एमेंटिया प्रजाति के मशरूम को नहीं पहचान पाते। इलाज में देरी से कोमा और मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है।”
उत्तराखंड में मौतों के प्रमुख हालिया मामले
– बागेश्वर के कुंवारी गाँव में 13 जुलाई 2025 को जंगली मशरूम खाने से एक महिला की मौत
– पिथौरागढ़ (मुनस्यारी) में 15 जुलाई 2025 को लोकगायक गणेश मर्तोलिया की बहन और नानी की मौत जंगली मशरूम खाने से
– टिहरी गढ़वाल (सुकरी गाँव) में अगस्त 2024 में एक ही परिवार के तीन सदस्य, जंगली मशरूम से मौत
– उत्तरकाशी (जोगत मल्ला गाँव), अगस्त 2024: दो महिलाओं की जंगली मशरूम खाने से मौत
– हरिद्वार (बुग्गावाला), दिसंबर 2022: तीन बच्चों की पंवार पौधे की फली खाने से मौत
इन घटनाओं में एक समानता है— सबमें जंगली साग-सब्जी की साफ-साफ पहचान नहीं हो सकी, और सार्वजनिक जानकारी के अभाव में जहर का असर जानलेवा बना।
कैसे बनता है जहर: लिंगुड़ा और मशरूम का खतरनाक असर
– लिंगुड़ा यदि ठीक तरह से साफ और उबाला न जाए तो इसमें मौजूद विषैले तत्व पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।*
– जंगली मशरूम अक्सर जहरीले कीड़े या फफूंद से संक्रमित रहते हैं; इनकी सतह का रंग (लाल, पीला या नारंगी), डंडी की बनावट अगर सामान्य से अलग हो तो खतरा और बढ़ जाता है।*
– एमाटॉक्सिन्स और अन्य विषैले पदार्थ लीवर, किडनी और तंत्रिका तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं; इसके असर से उल्टी, सिरदर्द, दस्त, होश खोना और मृत्यु तक हो सकती है।
स्थानीय संस्कृति और सावधानी के अभाव का असर
पहाड़ों में जंगली सब्जियां सामाजिक-सांस्कृतिक भोजन का अभिन्न हिस्सा हैं। इन सब्जियों के आसपास किस्से-कहानियां भी गढ़ी जाती हैं। पुराने लोग बताते हैं कि किस प्रजाति की सब्जी किस मौसम में, किस स्थान से लानी चाहिए। परन्तु, आधुनिक समय में गाँव-शहर के मेल-जोल, आजीविका का दबाव, और जानकारी की कमी के कारण, कई लोग जंगली खाद्य पदार्थों की पहचान में भूल कर बैठते हैं।
बरसात के मौसम में बढ़ जाता है खतरा
मानसून में नमी के कारण जंगलों में कई किस्म के मशरूम और लिंगुड़ा उगते हैं। इसी समय अकसर ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं। स्वास्थ्य विभाग ने जनता को चेतावनी दी है कि बिना विशेषज्ञ या स्थानीय जानकार व्यक्ति के सुझाव के, इन खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
मुख्य जोखिम और लक्षण
– उल्टी, पेट दर्द, दस्त, और थकान
– गंभीर विषाक्तता में तंत्रिका तंत्र और अंगों का फेल होना
– इलाज में देरी पर मृत्यु तक संभव
सेहत सुरक्षा के लिए निर्देश
– बिना पूरी पहचान के जंगली फर्न, मशरूम, या साग सब्जी न खाएं।
– लिंगुड़ा या मशरूम को बार-बार पानी से धोएं, अच्छे से उबालें और पकाएं।
– खाने के तुरंत बाद उल्टी, दस्त, चक्कर आएं तो तुरन्त नजदीकी अस्पताल जाएं।
– मशरूम के ऊपर यदि चमकीला रंग या डंडी में फूलापन हो तो उसे न खाएं।
– बच्चों और वृद्धजनों को विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
सामाजिक प्रभाव एवं प्रशासनिक पहल
इन घटनाओं के बाद स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन और सामाजिक संगठनों ने ग्रामीण इलाकों में अभियान चलाया हैं। स्थानीय स्कूलों में भी बच्चों को जानकारी दी जा रही है कि जंगल से लाई गई किसी भी सब्जी को बिना माता-पिता या जानकार की अनुमति के न खाएं।
जिम्मेदारी के साथ स्थानीय खानपान
उत्तराखंड का पारंपरिक खानपान बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक माना जाता है। लेकिन, पारंपरिक ज्ञान का अभाव और तेजी से बदलती जीवनशैली जीवन के लिए खतरा बनती जा रही है। जरूरत है कि ग्रामीण और शहरी इलाके, दोनों ही इन पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उपयोग में सावधानी बरतें, सही जानकारी लें और छोटे बच्चों को भी इसके बारे में जागरूक करें।
हर स्वाद से बढ़कर है सावधानी
लिंगुड़ा और जंगली मशरूम भोजन में आनंद और पौष्टिकता दोनों लाते हैं, लेकिन यदि इसे सावधानी और जानकारी के साथ न खाया जाए तो सेहत पर गहरी चोट हो सकती है। हाल के महीनों में उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों में घटी मौतें इसी लापरवाही का नतीजा हैं। ऐसे में जरूरी है कि सांस्कृतिक खानपान की परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान का मेल करें। अपने आस-पास के लोगों को जागरूक करें और केवल विशेषज्ञ या अनुभवी ग्रामीणों से सलाह लेकर ही ऐसी सब्जियों का सेवन करें।