बुधलाकोट पंचायत में बाहरी वोटरों के नाम, हाईकोर्ट सख्त – निर्वाचन आयोग से मांगा वेरिफिकेशन रिकॉर्ड
🟩 हाइलाइट्स- नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से मांगा जवाब
- बुधलाकोट पंचायत में ओडिशा के लोगों के नाम शामिल होने का मामला
- याचिका में 82 बाहरी मतदाताओं के नामों पर सवाल
- कोर्ट ने वेरिफिकेशन की प्रक्रिया का रिकॉर्ड मांगा
- सीता देवी का नामांकन रद्द करने पर कोर्ट ने लगाई रोक
क्या वाकई पंचायत की मतदाता सूची में बाहरी लोग हैं?
नैनीताल ज़िले की एक पंचायत – बुधलाकोट – इन दिनों न्यायिक विवादों में घिरी हुई है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बुधलाकोट ग्राम सभा की पंचायत चुनावी मतदाता सूची में बाहरी राज्यों, खासकर ओडिशा के लोगों के नाम शामिल किए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर गंभीर रुख अपनाया है।
🏛️ हाईकोर्ट का सख्त रुख: निर्वाचन आयोग से मांगा प्रमाण
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग से स्पष्ट रूप से यह पूछा है कि बाहरी क्षेत्र के लोगों को सूची में कैसे और क्यों शामिल किया गया।
📃 याचिकाकर्ता का पक्ष: “स्थानीय नहीं, फिर भी मतदाता”
बुधलाकोट के निवासी आकाश बोरा द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि ग्राम सभा की सूची में
82 ऐसे नाम हैं जिनका कोई स्थानीय रजिस्टर में उल्लेख नहीं है। जांच कमेटी ने
18 लोगों को
बाहरी माना लेकिन उन्हें सूची से हटाया नहीं गया।
📂 आयोग का पक्ष: “नियमों के तहत काम किया गया”
निर्वाचन आयोग का कहना है कि सभी प्रक्रियाएं नियमों के अनुसार हुईं। आपत्तियों पर जांच हुई और समिति ने सभी पक्षों को देखा।
🧾 नामांकन रद्द पर राहत: सीता देवी को चुनाव लड़ने की अनुमति
टिहरी जिले की लामकाण्डे ग्राम पंचायत से जिला पंचायत सदस्य पद के लिए चुनाव लड़ रहीं सीता देवी का नामांकन रद्द कर दिया गया था, जिसे हाईकोर्ट ने गलत बताया और नाम बहाल करने का निर्देश दिया।
🧩 सवालों के घेरे में प्रशासन: क्या ग्राम सभाओं में बाहरियों की घुसपैठ हो रही है?
यदि बाहरी लोगों को वोटिंग अधिकार मिलते हैं, तो यह स्थानीय शासन प्रणाली को कमजोर करता है। विशेषज्ञ इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मानते हैं। स्थानीय स्वशासन को सशक्त करने के लिए पारदर्शी मतदाता सूची आवश्यक है। ऐसे मामलों से न केवल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े होते हैं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की अवमानना भी होती है। हाईकोर्ट की सख्ती से यह स्पष्ट हो गया है कि
पंचायत चुनाव में लापरवाही नहीं चलेगी। आयोग को यह साबित करना होगा कि सभी नाम नियमानुसार जोड़े गए हैं।
Related