मानसून, मेले और पंचायत चुनाव: हाईकोर्ट ने चुनाव रोकने की याचिका खारिज की
🔹 राज्य के 12 जिलों में पंचायत चुनाव पर कोई रोक नहीं
🔹 मानसून, कांवड़ मेला और चारधाम यात्रा के बावजूद चुनाव कराने को बताया सुरक्षित
🔹 कोर्ट का स्पष्ट आदेश: प्रशासनिक तैयारी पूरी, कोई बाधा नहीं
🗞️ मुख्य बिंदु (Highlights)
- मानसून और धार्मिक आयोजनों के चलते चुनाव स्थगित करने की याचिका खारिज
- हाईकोर्ट ने कहा – चुनाव कराने की तैयारियां पूरी, कोई जोखिम नहीं
- 30% पुलिस बल कांवड़ यात्रा, 10% चारधाम और अतिरिक्त 10% चुनाव ड्यूटी पर
- पुलिस महानिदेशक व सचिव पंचायतीराज से कोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में ली जानकारी
- याचिकाकर्ता ने आपदा प्रबंधन व कानून-व्यवस्था का हवाला दिया था
- कोर्ट ने कहा – सरकारी मशीनरी सक्षम, चुनाव में कोई व्यवधान नहीं
उत्तराखंड हाईकोर्ट, नैनीताल ने राज्य के 12 जिलों में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है। मानसून, कांवड़ यात्रा, चारधाम यात्रा और आपदा प्रबंधन कार्यों के चलते पंचायत चुनावों को अगस्त माह के बाद कराने की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार और प्रशासनिक मशीनरी पूरी तरह तैयार है और ऐसी कोई परिस्थितियाँ नहीं हैं जो चुनाव कराने में बाधा बनें।
हाईकोर्ट के इस फैसले से पंचायत चुनावों की वैधता को मजबूती मिली है और यह संदेश गया है कि राज्य की चुनावी प्रक्रिया किसी मौसमी या सामाजिक चुनौती से रुकेगी नहीं, बशर्ते प्रशासन पूरी तरह से तैयार हो।
⚖️ याचिका क्या थी और क्या तर्क दिए गए?
देहरादून निवासी डॉ. बैजनाथ ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें आग्रह किया गया था कि राज्य में जारी कांवड़ यात्रा, चारधाम यात्रा तथा तेज़ वर्षा और संभावित आपदाओं के कारण पुलिस, प्रशासन और एसडीआरएफ की टीमें पहले से ही भारी दबाव में हैं। ऐसे में चुनाव कराना न तो सुरक्षित है और न ही व्यावहारिक।
याचिका में कहा गया कि मानसून सीजन के दौरान कई दुर्गम इलाकों में बाढ़, भूस्खलन और सड़क बंद होने की घटनाएं आम बात हैं। साथ ही, यात्राओं के दौरान राज्यभर में सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी प्रशासन के ऊपर होती है।
👨⚖️ कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश श्री जी. नरेंदर एवं न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) और सचिव पंचायतीराज विभाग से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए जवाब मांगा।
दोनों अधिकारियों ने अदालत को बताया कि राज्य प्रशासन ने पंचायत चुनावों के आयोजन हेतु पूर्ण तैयारी कर रखी है, और सभी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से संचालित हो रही हैं।
📊 बल की तैनाती: किसे कहां लगाया गया है?
ड्यूटी | तैनात फोर्स (%) |
---|---|
कांवड़ मेला | 30% |
चारधाम यात्रा | 10% |
पंचायत चुनाव सुरक्षा | 10% (अतिरिक्त रिजर्व) |
🛡️ आपदा प्रबंधन भी तैयार – कोर्ट को दिया आश्वासन
राज्य सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया कि किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पुलिस बल का पर्याप्त हिस्सा रिजर्व में रखा गया है, जो आवश्यकता पड़ने पर तत्काल कार्रवाई करने में सक्षम होगा।
एसडीआरएफ, पुलिस और अन्य आपदा प्रबंधन एजेंसियाँ 24×7 अलर्ट मोड में हैं और जिन इलाकों में अधिक बारिश या भू-स्खलन की संभावना है, वहां अतिरिक्त चौकसी बरती जा रही है।
इस फैसले से यह साफ हुआ कि उत्तराखंड में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बिना रुकावट आगे बढ़ेगी। पंचायत चुनाव राज्य की लोकतांत्रिक संरचना का सबसे अहम हिस्सा हैं और इन्हें रुकवाने का कोई आधार फिलहाल कोर्ट को नहीं मिला।
यह भी स्पष्ट हो गया कि युवाओं, ग्रामीण विकास योजनाओं, और स्थानीय नेतृत्व को आगे लाने वाली यह प्रक्रिया शासन की प्राथमिकता में है।
याचिका खारिज होने के बाद चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवारों और पंचायत क्षेत्र के निवासियों में उत्साह देखने को मिला है। कई लोगों का कहना है कि मानसून और यात्रा सीजन हर साल आता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि लोकतंत्र की प्रक्रिया ठहर जाए।
ग्राम प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य पदों के लिए चुनावी प्रचार में तेजी आ गई है, और उम्मीदवार अब अपने-अपने क्षेत्रों में विकास के वादों के साथ जनसंपर्क अभियान में जुट गए हैं।
उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह फैसला केवल कानूनी ही नहीं बल्कि प्रशासनिक स्थिरता का भी प्रतीक है। चुनावों को समय पर और सुरक्षित ढंग से कराने के लिए यदि मशीनरी तैयार है, तो उन्हें टालना न केवल लोकतंत्र की देरी होगी, बल्कि ग्रामीण विकास को भी प्रभावित करेगा।
राज्य सरकार ने सावधानीपूर्वक कार्ययोजना तैयार की है और यह संदेश स्पष्ट है कि आपदा और लोकतंत्र – दोनों को एक साथ संतुलित किया जा सकता है।