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पंचायत चुनाव में 800 से अधिक शिक्षकों की ड्यूटी: बागेश्वर में पढ़ाई पर मंडराया संकट

पंचायत चुनाव में 800 से अधिक शिक्षकों की ड्यूटी: बागेश्वर में पढ़ाई पर मंडराया संकट 


हाइलाइट्स

  • पंचायत चुनाव के लिए पहले चरण में 800 से अधिक शिक्षक तैनात
  • कपकोट, गरुड़ और बागेश्वर ब्लॉकों से लगभग बराबर संख्या में शिक्षक शामिल
  • पढ़ाई पर प्रभाव को लेकर अभिभावकों और छात्रों में चिंता
  • प्रशासन ने कहा – पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए की गई है विशेष व्यवस्था
  • एकल शिक्षक विद्यालयों और विशेष मामलों में ड्यूटी से छूट

बागेश्वर जिले में आगामी पंचायत चुनावों की तैयारियों के तहत शिक्षकों की बड़े पैमाने पर चुनाव ड्यूटी लगाए जाने से स्कूलों की नियमित पढ़ाई पर संकट गहराने लगा है। पहली सूची के अनुसार जिले के तीनों ब्लॉकों से 800 से अधिक शिक्षकों की चुनाव में ड्यूटी तय की गई है, जबकि दूसरी सूची में भी इतने ही नाम आने की संभावना जताई जा रही है। यह स्थिति न केवल शैक्षिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है, बल्कि इससे छात्रों की पढ़ाई और परीक्षा तैयारियों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।


ब्लॉकवार आंकड़े: हर क्षेत्र से सैकड़ों शिक्षक तैनात

बागेश्वर जिले में पंचायत चुनावों के लिए तैयार की गई मतदान कर्मियों की पहली सूची के अनुसार:

  • कपकोट ब्लॉक से 260 शिक्षक
  • गरुड़ ब्लॉक से 282 शिक्षक
  • बागेश्वर ब्लॉक से 260 शिक्षक

इन शिक्षकों को मतदान की प्रक्रिया में लगाया गया है। यह संख्या कुल मिलाकर 800 से अधिक पहुंच रही है। जिला प्रशासन का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और सफलता के लिए यह आवश्यक कदम है।


प्रशिक्षण, रवानगी और मतदान के दिन की समयसारिणी

चुनाव ड्यूटी पर लगाए गए शिक्षकों को मतदान से पहले प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मतदान स्थल यदि दूरस्थ क्षेत्र में है तो उन्हें दो दिन पहले और अन्य स्थानों पर एक दिन पहले ही रवानगी स्थल पर पहुंचने के निर्देश दिए गए हैं। इसके चलते शिक्षकों को लगातार कई दिन स्कूलों से अनुपस्थित रहना पड़ेगा।


शिक्षकों की ड्यूटी, छात्रों की पढ़ाई पर प्रभाव

बागेश्वर जिले के विभिन्न स्कूलों में पहले ही शिक्षकों की संख्या सीमित है। ऐसे में सैकड़ों शिक्षकों के चुनाव ड्यूटी पर चले जाने से स्कूलों में पढ़ाई बाधित होना तय है।

कुछ विद्यालयों में तो एक ही शिक्षक के भरोसे पूरी व्यवस्था चल रही है। ऐसे में उनकी अनुपस्थिति से बच्चों की शिक्षा पर बड़ा असर पड़ सकता है। अभिभावकों की भी चिंता बढ़ गई है, खासकर उन छात्रों के लिए जो परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।


प्रशासन का दावा – शिक्षा को नहीं होने देंगे प्रभावित

जिला निर्वाचन अधिकारी और मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ) गजेंद्र सौन ने कहा –

“चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है, जिसे सभी कर्मचारियों के सहयोग से संपन्न कराया जाता है। शिक्षकों के चुनाव ड्यूटी में जाने से पढ़ाई में किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न न हो इसके लिए व्यवस्थाएं बनाई गई हैं।”

प्रशासन की ओर से यह भी कहा गया है कि:

  • एकल शिक्षक विद्यालयों को ड्यूटी से छूट दी गई है।
  • अस्वस्थ कर्मचारी या दंपती कर्मचारियों में से केवल एक को ड्यूटी दी गई है।
  • प्रयास किया गया है कि जिन स्कूलों में विकल्प उपलब्ध हैं, वहीं से शिक्षकों को तैनात किया जाए।

शिक्षकों की प्रतिक्रिया

अध्यापकों का कहना है कि चुनाव ड्यूटी में उनका समय तो लगता ही है, साथ ही मानसिक दबाव भी बढ़ता है।

एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया –

“हमें पढ़ाई के साथ-साथ चुनाव की तैयारी करनी होती है। प्रशिक्षण, रवानगी और मतदान की प्रक्रिया में कम से कम 4 से 5 दिन का समय लगता है। इसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है।”


विद्यालयों में अस्थायी उपाय और चुनौतियां

हालांकि कुछ स्कूलों में प्रबंधन ने अस्थायी व्यवस्था के तहत अतिथि शिक्षकों या गैर-शिक्षण स्टाफ से सीमित शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखने का प्रयास किया है, लेकिन यह उपाय स्थायी समाधान नहीं है।


चुनाव और शिक्षा के बीच संतुलन की जरूरत

भारत में चुनावों की आवृत्ति और संख्या बहुत अधिक है। स्थानीय निकायों से लेकर राज्य और केंद्र स्तर तक हर साल किसी न किसी स्तर का चुनाव होता रहता है। ऐसे में शिक्षकों की बार-बार चुनावों में ड्यूटी लगने से शिक्षा व्यवस्था पर लंबी अवधि में नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

विशेषज्ञों की राय है कि सरकार को चुनावी व्यवस्थाओं में सुधार कर शिक्षकों की अनिवार्य ड्यूटी की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। शिक्षा मंत्रालय और चुनाव आयोग को मिलकर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे शिक्षा और लोकतंत्र – दोनों की जरूरतें संतुलित रूप से पूरी हो सकें।


शिक्षा व्यवस्था पर नया दबाव

बागेश्वर जैसे पहाड़ी और सीमित संसाधनों वाले जिले में जब सैकड़ों शिक्षक चुनाव प्रक्रिया में लगाए जाते हैं, तो इसका सीधा असर विद्यार्थियों पर होता है। भले ही प्रशासन दावा करे कि पढ़ाई पर असर नहीं पड़ेगा, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि इतने शिक्षकों की अनुपस्थिति में विद्यालयों की शैक्षणिक गतिविधियों का सामान्य रहना कठिन है।

शिक्षा और लोकतंत्र दोनों ही आवश्यक हैं, लेकिन इनमें संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी नीति निर्माताओं और प्रशासन की है। यदि समय रहते इस दिशा में सुधार नहीं किया गया, तो इससे भविष्य की पीढ़ियों की शिक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

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