अब जुलाई में भी मिलेगा सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में प्रवेश
उत्तराखंड में स्कूल प्रवेश नियमों में बदलाव, शैक्षिक सत्र 2025-26 से लागू होंगी नई व्यवस्था
📌 हाइलाइट्स
- अब 1 जुलाई तक छह वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले बच्चों को मिलेगा पहली कक्षा में प्रवेश
- पहले केवल 1 अप्रैल तक छह साल की उम्र जरूरी थी, जिससे कई बच्चे वंचित रह जाते थे
- शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE) की नियमावली में किया गया संशोधन
- नया नियम शैक्षणिक सत्र 2025-26 से लागू होगा
- स्थानीय विद्यालयों में आवेदन प्रक्रिया शुरू, डीईओ ने दी पुष्टि
उत्तराखंड सरकार ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पहली कक्षा में प्रवेश के नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। अब वे बच्चे भी स्कूल में दाखिला ले सकेंगे, जो 1 जुलाई तक छह वर्ष की आयु पूर्ण कर लेंगे। यह नई व्यवस्था शैक्षणिक सत्र 2025-26 से प्रभाव में आएगी। इससे पहले केवल उन्हीं बच्चों को प्रवेश मिलता था, जो 1 अप्रैल तक छह वर्ष के हो चुके होते थे। इस बदलाव से बड़ी संख्या में अभिभावकों और बच्चों को राहत मिलेगी।
📚 क्या था अब तक का नियम?
राज्य में सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में दाखिले के लिए अभी तक यह नियम था कि बच्चा 1 अप्रैल तक छह वर्ष का हो चुका हो। यह नियम राष्ट्रीय बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE) के अनुरूप था, लेकिन इससे कई बच्चे, जो अप्रैल में छह साल पूरे नहीं कर पाते थे, उन्हें अगले वर्ष तक इंतजार करना पड़ता था।
बागेश्वर के जिला शिक्षा अधिकारी (बेसिक), विनय कुमार ने बताया:
“अब ऐसे सभी बच्चों को भी प्रवेश मिलेगा जो 1 जुलाई तक छह वर्ष की आयु पूरी कर लेंगे।”
इस निर्णय से उन परिवारों को बड़ी राहत मिली है, जिनके बच्चे मई और जून में छह वर्ष के हो रहे थे।
🔄 क्या हुआ है बदलाव?
उत्तराखंड शासन ने हाल ही में RTE अधिनियम के तहत लागू राज्य नियमावली में संशोधन किया है।
- अब पहली कक्षा में दाखिले के लिए 1 अप्रैल की बजाय 1 जुलाई तक छह वर्ष की उम्र पूर्ण करना अनिवार्य होगा।
- यह नई नियमावली 2025-26 के शैक्षिक सत्र से प्रभावी होगी।
बदलाव के पीछे की वजह:
- हर वर्ष बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे सामने आते थे, जिनकी उम्र अप्रैल में 5 वर्ष 10 महीने या 5 वर्ष 11 महीने होती थी, और उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया जाता था।
- शिक्षा विभाग को लगातार शिकायतें और सुझाव मिल रहे थे कि बच्चों को एक और वर्ष इंतजार करना पड़ता है, जो उनके शैक्षणिक विकास को प्रभावित करता है।
🧒🏼 प्रवेश प्रक्रिया कैसे होगी?
नई व्यवस्था के तहत:
- ऐसे बच्चे जिनकी उम्र 1 जुलाई तक छह वर्ष पूरी हो रही है, वे अब सीधे अपने नजदीकी प्राथमिक विद्यालय में जाकर प्रवेश ले सकते हैं।
- प्रवेश प्रक्रिया जुलाई माह में भी संचालित की जाएगी, जो पहले केवल अप्रैल तक सीमित रहती थी।
- विद्यालयों को निर्देश दिए गए हैं कि वे बच्चों को लौटाएं नहीं, बल्कि उम्र का प्रमाण देखकर प्रवेश प्रदान करें।
- ग्रामीण और सीमांत क्षेत्रों में जन्म प्रमाण पत्रों में देरी और स्कूलों तक पहुंच की चुनौतियों को देखते हुए यह निर्णय समावेशी शिक्षा की ओर एक बड़ा कदम है।
- शिक्षा विभाग का मानना है कि इस बदलाव से हर बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार समान अवसर मिल सकेंगे।
- इसमें सरकार ने संशोधन करते हुए आयु सीमा को 1 जुलाई तक विस्तारित कर दिया है।
- यह बदलाव केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई सिफारिशों और राज्यों से प्राप्त सुझावों के आधार पर किया गया है।
🧑🏫 शिक्षकों और स्कूलों की तैयारी
शिक्षकों को भी इस नई व्यवस्था के अनुरूप प्रशिक्षित किया जा रहा है।
- स्कूलों को निर्देशित किया गया है कि वे प्रवेश प्रक्रिया में कठोरता से बचें और मानवता के आधार पर निर्णय लें।
- समेकित छात्र डेटा संग्रहण, बायोमेट्रिक उपस्थिति, और आधार सत्यापन जैसी व्यवस्थाओं को भी अपडेट किया जा रहा है।
📈 संभावित लाभ
लाभ | विवरण |
---|---|
🎯 अधिक बच्चों को स्कूलिंग का अवसर | जिन बच्चों की आयु अप्रैल में पूरी नहीं होती थी, उन्हें अब साल बर्बाद नहीं करना पड़ेगा |
🎯 ड्रॉपआउट दर में कमी | बच्चों को समय पर दाखिला मिलने से स्कूली शिक्षा का सिलसिला नहीं टूटेगा |
🎯 अभिभावकों में संतोष | फैसले से खासतौर पर ग्रामीण और निम्नवर्गीय परिवारों को राहत मिलेगी |
भारत के कई राज्यों में पहले से ही 1 जुलाई तक की आयु सीमा लागू है, जैसे कि:
- महाराष्ट्र
- मध्यप्रदेश
- छत्तीसगढ़
उत्तराखंड में इस दिशा में देरी हुई थी, लेकिन अब इसे राष्ट्रीय नीति के अनुरूप लाया गया है।
उत्तराखंड सरकार द्वारा प्राथमिक कक्षाओं में प्रवेश के नियमों में किया गया यह संशोधन स्वागत योग्य कदम है।
- यह न केवल शिक्षा के अधिकार को और मजबूत करता है, बल्कि सामाजिक समावेशन की दिशा में भी महत्वपूर्ण है।
- शैक्षिक सत्र 2025-26 से लागू यह नीति हजारों बच्चों के भविष्य को नई दिशा दे सकती है।
- जरूरी है कि सभी विद्यालय इस दिशा-निर्देश का ईमानदारी से पालन करें और बच्चों को बिना भेदभाव के प्रवेश दें।