माचिस की तीलियों से उत्तराखंड के इस शिक्षक ने रचा इतिहास, कलाकारी देख आप भी कहेंगे “वाह”
*पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड | 8 जुलाई 2025*
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के एक साधारण शिक्षक पंकज सुंदरियाल ने अपनी अद्भुत कला और समर्पण से न केवल प्रदेश, बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है। माचिस की तीलियों से अयोध्या के श्रीराम मंदिर की जीवंत प्रतिकृति बनाकर उन्होंने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपनी जगह बनाई है। उनकी यह कृति इतनी बारीक और प्रभावशाली है कि इसे देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है।
गांव से शुरू हुआ सफर, कला में मिली मंजिल
पंकज सुंदरियाल का जन्म 6 जुलाई 1981 को पौड़ी गढ़वाल के मजगांव, किमगड़ीगाड़ पट्टी-चौंदकोट में हुआ। उनके पिता स्व. पुरुषोत्तम सुंदरियाल एक सम्मानित प्रधानाचार्य थे, जबकि मां श्रीमती कान्ती देवी ने उन्हें संस्कारों से जोड़ा। पंकज ने चौबट्टाखाल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और पौड़ी कैंपस से एमएससी के साथ-साथ बीएड, बीटीएस और पर्यटन-योग में पीजी डिप्लोमा हासिल किया।
एक विचार ने बदली जिंदगी
वर्ष 2009 में शिक्षक बनने से पहले पंकज दुकानदारी करते थे। एक दिन मंदिर से लौटते समय उनके मन में माचिस की तीलियों से श्री केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति बनाने का विचार आया। यही वह पल था, जब उनकी कलात्मक यात्रा की शुरुआत हुई। इसके बाद उन्होंने माचिस की तीलियों से कई विश्व धरोहरों की प्रतिकृतियां बनाईं, जिनमें ताजमहल, नॉर्वे का बोरगंड चर्च, कार्नर टॉवर ऑफ चाइना और अब अयोध्या का श्रीराम मंदिर शामिल हैं।
श्रीराम मंदिर की प्रतिकृति: तीन साल की मेहनत का नतीजा
पंकज ने तीन वर्षों की कड़ी मेहनत और लगन से श्रीराम मंदिर की एक ऐसी प्रतिकृति तैयार की है, जो अपनी बारीकी और सौंदर्य के लिए चर्चा का विषय बनी हुई है। उनका सपना है कि यह कृति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट की जाए और इसे अयोध्या के राम मंदिर संग्रहालय में स्थान मिले।
इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ नाम
पंकज सुंदरियाल उत्तराखंड के पहले व्यक्ति हैं, जिनका नाम वर्ष 2021 और 2022 में लगातार इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ। यह उपलब्धि उनके लिए गर्व का विषय है और उत्तराखंड को भी इस पर नाज है।
शिक्षा और कला का अनूठा संगम
वर्तमान में पंकज राजकीय प्राथमिक विद्यालय अंसारी थापला कोटा संकुल, एकेश्वर ब्लॉक, पौड़ी गढ़वाल में सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। वह बच्चों को न केवल किताबी ज्ञान दे रहे हैं, बल्कि हस्तशिल्प और प्रतिकृति निर्माण की कला भी सिखा रहे हैं।
पंकज सुंदरियाल की यह उपलब्धि न केवल उनकी कला और समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि छोटे से गांव से निकलकर भी बड़े सपने साकार किए जा सकते हैं। उनकी यह कृति देश के सांस्कृतिक गौरव को और भी बढ़ावा दे रही है।