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एनआईओएस से नियुक्त सात सहायक शिक्षक बर्खास्त – रुद्रप्रयाग में शिक्षा विभाग की सख्ती

एनआईओएस से नियुक्त सात सहायक शिक्षक बर्खास्त – रुद्रप्रयाग में शिक्षा विभाग की सख्ती

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में शिक्षा विभाग ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सात सहायक अध्यापकों को सेवा से हटा दिया है। यह कार्रवाई एनआईओएस (राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान) प्रशिक्षण के तहत नियुक्त शिक्षकों की जांच में अनियमितताएं सामने आने के बाद की गई है। विभागीय जांच में यह स्पष्ट हुआ कि इन शिक्षकों ने एनआईओएस प्रशिक्षण से पहले ही अन्य शिक्षण प्रशिक्षण (जैसे बीएड या टीईटी) लिया हुआ था, जिससे नियुक्ति की शर्तों का उल्लंघन हुआ।


क्या है पूरा मामला?

रुद्रप्रयाग जिले में शिक्षा विभाग ने मई 2025 में 21 शिक्षकों की नियुक्ति की थी। यह नियुक्तियां न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में की गई थीं, जिसमें कहा गया था कि एनआईओएस प्रशिक्षण प्राप्त बेरोजगारों को सहायक अध्यापक के रूप में प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त किया जाए – बशर्ते उन्होंने वर्ष 2017-2019 से पहले कोई अन्य शिक्षक प्रशिक्षण न लिया हो।

भर्ती प्रक्रिया और नियमों की अनदेखी

शिक्षा विभाग की शर्तें स्पष्ट थीं – केवल उन्हीं अभ्यर्थियों को नियुक्त किया जाएगा जिन्होंने एनआईओएस के अलावा अन्य कोई पूर्व शिक्षक प्रशिक्षण (जैसे B.Ed या D.El.Ed) नहीं लिया हो। लेकिन जांच में सामने आया कि नियुक्त सात सहायक अध्यापकों ने एनआईओएस से पूर्व ही कोई न कोई प्रशिक्षण किया हुआ था।

जिला शिक्षा अधिकारी (बेसिक), अजय चौधरी ने पुष्टि की कि विभागीय जांच पूरी हो चुकी है और पाया गया कि सात अभ्यर्थियों की नियुक्ति नियमों के विपरीत की गई थी। इसलिए सभी सातों को सेवा से तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया है।


विद्यालयों में नियुक्ति से पहले ही हुई कार्रवाई

इन शिक्षकों को मई के अंत में नियुक्ति पत्र दिए गए थे और उन्हें प्राथमिक विद्यालयों में तैनात किया गया था। चूंकि इस दौरान विद्यालयों में ग्रीष्मकालीन अवकाश था, इसलिए शिक्षकों ने अभी तक औपचारिक रूप से शिक्षण कार्य प्रारंभ नहीं किया था। लेकिन स्कूल खुलने से पहले ही जांच समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।


नियुक्त प्रक्रिया में पारदर्शिता की कोशिश

यह मामला दर्शाता है कि शिक्षा विभाग अब नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर अधिक सतर्क है और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कड़ी जांच और सत्यापन प्रक्रिया अपना रहा है।

इससे न केवल नियुक्तियों में निष्पक्षता आएगी, बल्कि योग्य उम्मीदवारों को सही अवसर भी मिलेगा।


क्या है एनआईओएस प्रशिक्षण और इसकी वैधता?

सुप्रीम कोर्ट ने NIOS (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग) से 18 महीने का D.El.Ed. (डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन) करने वाले शिक्षकों को वैध माना है, लेकिन यह मान्यता केवल उन शिक्षकों के लिए है जो 10 अगस्त 2017 को सेवा में थे और 31 मार्च 2019 तक यह कोर्स पूरा कर चुके थे. 

सुप्रीम कोर्ट ने Kousik Das और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य मामले में फैसला सुनाया कि NIOS से 18 महीने का D.El.Ed. कोर्स, ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ODL) मोड में, 10 अगस्त 2017 को सेवा में मौजूद और 31 मार्च 2019 तक इसे पूरा करने वाले शिक्षकों के लिए मान्य है. 

यह फैसला कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द करता है जिसमें NIOS के 18 महीने के D.El.Ed. डिप्लोमा धारकों को सहायक शिक्षक की भर्ती से बाहर कर दिया गया था. 

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि NCTE (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद) ने नए शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता के रूप में दो साल का D.El.Ed. निर्धारित किया है, लेकिन NIOS द्वारा प्रस्तावित 18 महीने के ODL पाठ्यक्रम के माध्यम से सेवारत शिक्षकों के लिए विशिष्ट छूट भी प्रदान की है. 

इसका मतलब है कि NIOS से 18 महीने का D.El.Ed. कोर्स करने वाले शिक्षक, जो 10 अगस्त 2017 को सेवा में थे और 31 मार्च 2019 तक इसे पूरा कर चुके थे, अब प्राथमिक शिक्षक भर्ती के लिए पात्र होंगे. 

बेरोजगार अभ्यर्थियों में चिंता

इस घटनाक्रम के बाद एनआईओएस से प्रशिक्षित बेरोजगार युवाओं में चिंता की लहर फैल गई है। कई युवाओं को डर है कि कहीं उनके दस्तावेजों या प्रशिक्षण की वैधता को लेकर कोई प्रश्न न खड़ा हो जाए।

हालांकि विभागीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि जिनकी पात्रता पूरी तरह से नियमों के अनुरूप है, उनके भविष्य पर कोई संकट नहीं है।


शिक्षा व्यवस्था में भरोसा बहाल करने की कवायद

रुद्रप्रयाग की यह कार्रवाई एक सकारात्मक संकेत है कि शिक्षा विभाग अब नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है।

इससे अन्य जिलों के विभागों को भी एक संदेश गया है कि किसी भी प्रकार की अनियमितता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे वह नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़ी हो या प्रशिक्षण पात्रता से।

 

इस निर्णय के बाद स्थानीय शिक्षक संगठनों की प्रतिक्रिया मिश्रित रही है। कुछ संगठनों ने इसे स्वागत योग्य बताया है, तो कुछ ने प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।

एक शिक्षक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा –

“अगर किसी ने जानबूझकर नियमों को तोड़ा है तो कार्रवाई जायज़ है, लेकिन अगर कहीं प्रक्रिया में ही अस्पष्टता थी तो विभाग को पहले से ही स्पष्ट दिशानिर्देश देने चाहिए थे।”


आगे की कार्रवाई – रिक्त पदों पर नई नियुक्ति की उम्मीद

इन 7 शिक्षकों के हटाए जाने से जो पद रिक्त हुए हैं, उनके लिए शिक्षा विभाग अब दोबारा नवीन प्रक्रिया के तहत योग्य अभ्यर्थियों की भर्ती करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भर्ती में दस्तावेज़ों की जांच और अधिक गहन होगी।


योग्य अभ्यर्थियों को मिलेगा लाभ

यह प्रकरण इस बात का उदाहरण है कि योग्यता और पारदर्शिता की अनदेखी अब स्वीकार नहीं की जाएगी। शिक्षा विभाग की यह कार्यवाही उन योग्य और नियमों के अनुरूप अभ्यर्थियों के लिए सकारात्मक संकेत है जो वर्षों से नौकरी की प्रतीक्षा में हैं।

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