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सरकारी स्कूलों में पढ़ाई से ज्यादा गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में उलझे शिक्षक

सरकारी स्कूलों में पढ़ाई से ज्यादा गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में उलझे शिक्षक

 

देहरादून, 29 जून 2025: उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या में लगातार कमी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। इसका प्रमुख कारण शिक्षकों और छात्रों का पढ़ाई के बजाय गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में उलझे रहना है। स्कूलों में पढ़ाई के समय में 56 विभिन्न प्रकार के दिवस, गतिविधियां और रैलियां आयोजित की जाती हैं, जबकि शिक्षा विभाग की 19 अन्य गतिविधियां भी शिक्षकों को पूरे साल गैर-शैक्षिक कार्यों में व्यस्त रखती हैं।

 

छात्र संख्या में गिरावट के कारणों का पता लगाने के लिए गठित उच्चस्तरीय समिति ने शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत को अपनी 24 पेज की रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति के कई कारणों को रेखांकित किया गया है। समिति ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर दाखिले और निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या को भी सरकारी स्कूलों की दुर्दशा का बड़ा कारण माना है।

 

छात्र संख्या में कमी के प्रमुख कारण

 

रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या में कमी के लिए निम्नलिखित कारक जिम्मेदार हैं:

– स्कूलों में पढ़ाई के समय में छात्रों और शिक्षकों को विभिन्न आयोजनों और गतिविधियों में शामिल करना।

– प्रधानाचार्य के पदों का रिक्त रहना।

– शिक्षकों की समय पर नियुक्ति और पदोन्नति में देरी।

– शिक्षकों का अपने स्कूल से 6-8 किलोमीटर की दूरी पर निवास ना करना।

– वर्ष 2002 में निजी स्कूलों की संख्या 3,823 थी, जो अब बढ़कर 5,438 हो गई है।

– कक्षावार शिक्षकों की कमी।

– प्री-प्राइमरी कक्षाओं का अभाव।

– आरटीई के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर दाखिला।

 

समिति के सुधारात्मक सुझाव

 

समिति ने सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:

– केवल तभी आरटीई के तहत निजी स्कूलों में दाखिला दिया जाए, जब एक किलोमीटर के दायरे में सरकारी स्कूल न हो या सरकारी स्कूल में सीटें उपलब्ध न हों।

– प्रत्येक प्राथमिक स्कूल में न्यूनतम पांच शिक्षकों की नियुक्ति।

– प्राथमिक स्कूलों के एक किलोमीटर, जूनियर स्कूलों के तीन किलोमीटर और हाईस्कूल/इंटर कॉलेजों के पांच किलोमीटर के दायरे में निजी स्कूलों को मान्यता न दी जाए।

– सरकारी स्कूलों में हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यमों में पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।

 

 

उच्चस्तरीय समिति की यह रिपोर्ट उत्तराखंड की सरकारी शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत को उजागर करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन सुझावों पर अमल किया जाए तो सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधर सकता है और छात्र संख्या में कमी की समस्या से निपटा जा सकता है। शिक्षा विभाग अब इन सुझावों पर विचार कर रहा है ताकि सरकारी स्कूलों को फिर से आकर्षक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का केंद्र बनाया जा सके।

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