राजस्थान में मिली 4500 साल पुरानी सभ्यता
प्राचीन इतिहास की परतें खोलता राजस्थान का खाराचाट गांव, वैज्ञानिकों को मिले चौंकाने वाले प्रमाण
राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले के खाराचाट गांव में हाल ही में हुए पुरातात्विक उत्खनन ने भारत के प्राचीन इतिहास को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है। इस खुदाई में लगभग 4500 साल पुरानी एक सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जिसे प्रसिद्ध सरस्वती नदी की प्राचीन धारा से जोड़कर देखा जा रहा है। इस खोज ने न केवल इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में उत्सुकता जगाई है, बल्कि आमजन में भी ऐतिहासिक जिज्ञासा को गहरा किया है।
4500 साल पुरानी सभ्यता के प्रमाण
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में चल रहे इस उत्खनन में मिट्टी के बर्तन, पत्थर की वस्तुएं, ईंटों से बनी संरचनाएं और दैनिक उपयोग की कई सामग्रियां मिली हैं। इन सभी वस्तुओं की रेडियोकार्बन डेटिंग से यह पुष्टि हुई है कि इनकी आयु लगभग 2500 ईसा पूर्व की है, जो हड़प्पा सभ्यता की प्राचीनतम परतों के समकालीन मानी जा सकती है।
सरस्वती नदी से संभावित संबंध
यह खोज और भी रोमांचक बन जाती है जब इसे वैदिक कालीन सरस्वती नदी से जोड़ा जाता है। खाराचाट गांव जहां यह खुदाई हुई है, वह क्षेत्र उसी धोरी नदी के पुराने बहाव के निकट स्थित है जिसे कई विशेषज्ञ ‘सरस्वती’ की एक शाखा मानते हैं। भू-वैज्ञानिक और पुरातत्वविद लंबे समय से यह प्रयास कर रहे हैं कि सरस्वती नदी की भूगर्भीय धारा का पता लगाया जाए, और यह खोज उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र घग्घर-हकरा नदी प्रणाली के अंतर्गत आता है, जो वैदिक काल में बहने वाली सरस्वती नदी की पहचान से जुड़ा हुआ है।
प्राप्त अवशेषों की विशेषताएं
इस उत्खनन में जो सामग्री मिली है, उनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं:
- हाथ से बनाए गए घड़े, मृदभांड, और चूल्हे
- ईंटों से बनी दीवारों के अवशेष जो योजनाबद्ध निर्माण शैली को दर्शाते हैं
- पशुपालन, कृषि और हस्तशिल्प के प्रमाण
- आभूषणों के छोटे-छोटे टुकड़े जो उस समय की सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों की झलक देते हैं
ये सभी प्रमाण बताते हैं कि यह कोई अस्थायी निवास नहीं बल्कि एक संगठित नगर व्यवस्था थी।
खाराचाट गांव के लोग अब गर्व से अपने क्षेत्र को भारत के प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक का हिस्सा मान रहे हैं। कई स्थानीय स्कूलों में इस विषय को लेकर चर्चाएं हो रही हैं और क्षेत्रीय प्रशासन ने इस स्थल को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है।
गांव की सरपंच निर्मला देवी ने बताया,
“हम अपने पूर्वजों की विरासत को अब और गहराई से समझने के लिए उत्साहित हैं। सरकार से अनुरोध किया गया है कि यहां संग्रहालय बनाया जाए।”
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शोध की अगली दिशा
पुरातत्वविद डॉ. एन.के. सिंह के अनुसार,
“इस खोज से यह संकेत मिलता है कि हड़प्पा सभ्यता केवल सिंधु और पंजाब तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि राजस्थान की रेतीली भूमि में भी उसकी गहरी पैठ थी। यह खोज सरस्वती नदी के अस्तित्व के पक्ष में वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करती है।”
इसके अतिरिक्त भूगर्भीय तकनीकों का उपयोग करके नदी की सूखी धारा को पुनः चिन्हित किया जा रहा है, जिससे और अधिक प्राचीन स्थल उजागर होने की संभावना है।
यह खोज केवल एक स्थानीय महत्व की बात नहीं है, बल्कि इससे भारत के इतिहास को लेकर वैश्विक स्तर पर भी पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता उत्पन्न होती है। यदि यह सिद्ध हो जाता है कि यह स्थल सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ था, तो यह वैदिक संस्कृति की भौगोलिक और ऐतिहासिक प्रमाणिकता को मजबूती देगा।
राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श
सरस्वती नदी को लेकर लंबे समय से राजनीतिक और सांस्कृतिक बहस चली आ रही है। कुछ विचारधाराओं ने इसे महज एक ‘मिथकीय’ नदी माना, जबकि अन्य ने इसके भौगोलिक अस्तित्व की वकालत की। अब जब वैज्ञानिक प्रमाण सामने हैं, तो यह बहस भी एक नई दिशा में जा सकती है।
इतिहास के पुनर्लेखन की ओर एक कदम
राजस्थान के खाराचाट गांव में मिले यह अवशेष एक नई संभावना की ओर इशारा करते हैं – वह संभावना जिसमें हम अपने इतिहास को और अधिक वैज्ञानिक और व्यापक दृष्टिकोण से समझ सकते हैं। यह खोज न केवल भारत के प्राचीन इतिहास को पुनः लिखने का अवसर देती है, बल्कि यह साबित करती है कि रेगिस्तान की रेत के नीचे हजारों सालों से छुपा हुआ गौरवमयी अतीत आज भी जीवित है।



