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वडोदरा में करोड़ों का ‘व्हेल वोमिट’ जब्त: 1.58 करोड़ रुपये की एम्बरग्रीस के साथ 6 गिरफ्तार

 

वडोदरा में करोड़ों की एम्बरग्रीस जब्त: वन्यजीव अपराध के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क पर बड़ा प्रहार

गुजरात पुलिस ने 1.58 करोड़ रुपये मूल्य की ‘व्हेल वोमिट’ के साथ छह लोगों को दबोचा, वन्यजीव तस्करी पर कसा शिकंजा

वडोदरा (28 जून 2025): गुजरात के वडोदरा शहर में वन्यजीव अपराधों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कार्रवाई में पुलिस ने 1.58 करोड़ रुपये मूल्य की एम्बरग्रीस जब्त की है, जिसे आमतौर पर ‘व्हेल की उल्टी’ या व्हेल वोमिट कहा जाता है। इस दुर्लभ और प्रतिबंधित पदार्थ के साथ छह व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। यह कार्रवाई न केवल तस्करी के नेटवर्क पर सीधा प्रहार है, बल्कि भारत की वन्यजीव संरक्षण नीति की प्रतिबद्धता को भी उजागर करती है।


क्या है एम्बरग्रीस और क्यों है यह इतनी मूल्यवान?

एम्बरग्रीस एक मोम जैसा, गाढ़े भूरे रंग का पदार्थ होता है, जो सिर्फ शुक्राणु व्हेल (Sperm Whale) की आंतों में बनता है। जब व्हेल स्क्वीड जैसे जीवों के अपाच्य हिस्सों को नहीं पचा पाती, तो यह पदार्थ अंदर जमा होकर समय के साथ बाहर निकलता है – या तो उल्टी के रूप में या फिर स्वाभाविक रूप से उत्सर्जित होकर समुद्र में बह जाता है।

यह पदार्थ अपने खास सुगंध-स्थायीत्व (fixative) गुणों के लिए जाना जाता है, जिसकी वजह से इसका उपयोग महंगे इत्रों में किया जाता है। शुरू में इसकी गंध तीखी होती है, लेकिन समुद्री पानी और सूरज की रोशनी के प्रभाव में यह सुगंधित, कस्तूरी जैसी खुशबू में बदल जाती है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में एम्बरग्रीस की कीमत सोने से भी अधिक हो सकती है, यही कारण है कि यह वन्यजीव तस्करों के लिए एक अत्यंत आकर्षक पदार्थ है।


कैसे हुआ ऑपरेशन?

पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि वडोदरा के नवापुरा क्षेत्र में कुछ लोग एम्बरग्रीस बेचने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद वडोदरा क्राइम ब्रांच ने तत्काल कार्रवाई करते हुए छापेमारी की योजना बनाई।

पुलिस आयुक्त नरसिम्हा कोमर ने प्रेस को बताया कि विशेष दल ने जाल बिछाकर संदिग्धों को पकड़ा और उनके पास से 1.58 करोड़ रुपये मूल्य की एम्बरग्रीस जब्त की गई। यह पदार्थ उच्च गुणवत्ता का बताया जा रहा है, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत और भी अधिक हो सकती थी।


गिरफ्तार हुए आरोपी कौन हैं?

इस मामले में छह आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है:

  • भरत दवे
  • नीलेश जैन
  • जितेन परमार
  • निलेश पटेल
  • भरत वसावा
  • शैलेश परमार

ये सभी वडोदरा और आस-पास के रहने वाले हैं। सभी पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। प्रारंभिक जांच से संकेत मिले हैं कि आरोपी इस एम्बरग्रीस को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने की योजना बना रहे थे।


एम्बरग्रीस और भारतीय कानून

भारत में शुक्राणु व्हेल अनुसूची-I में सूचीबद्ध संरक्षित प्रजातियों में आती है। इस कारण, इससे जुड़े किसी भी उत्पाद – जैसे एम्बरग्रीस – का संग्रह, व्यापार या परिवहन अवैध है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत इस प्रकार की तस्करी एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए लंबी सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

इस कार्रवाई के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि सरकार वन्यजीव अपराधों पर रोक लगाने के लिए पूरी तरह से सतर्क है।

भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट moef.gov.in पर वन्यजीव संरक्षण से जुड़े विस्तृत दिशा-निर्देश उपलब्ध हैं।


तस्करी के पीछे की अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क

एम्बरग्रीस की वैश्विक मांग मुख्यतः मध्य पूर्व और यूरोपीय देशों में देखी जाती है, जहां इसका प्रयोग:

  • अत्यंत महंगे इत्र बनाने में
  • पारंपरिक चिकित्सा में
  • और कुछ स्थानों पर कामोत्तेजक दवा के रूप में भी किया जाता है।

इसकी दुर्लभता और खुशबू की विशेषता इसे अमूल्य बनाती है। यही कारण है कि एम्बरग्रीस का कारोबार एक अंतरराष्ट्रीय संगठित नेटवर्क द्वारा संचालित किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीव संरक्षण प्रयासों की जानकारी WWF इंडिया पर भी उपलब्ध है।


वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की भूमिका

इस तरह की कार्रवाई में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) की भूमिका अहम होती है। यह एजेंसी भारत सरकार के अंतर्गत काम करती है और वन्यजीव तस्करी को रोकने के लिए राज्य पुलिस और वन विभाग के साथ समन्वय करती है।


वडोदरा जैसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि कैसे स्थानीय स्तर पर अपराधी अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांग को भुनाने की कोशिश करते हैं। इससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन प्रभावित होता है, बल्कि स्थानीय युवा भी इन अवैध गतिविधियों में फंस सकते हैं।

इसलिए जागरूकता, शिक्षा और कानून का सख्ती से पालन आवश्यक है।

वडोदरा में की गई यह कार्रवाई केवल 1.58 करोड़ रुपये की एम्बरग्रीस की जब्ती नहीं है, बल्कि यह भारत की वन्यजीव संरक्षण नीति की एक सशक्त अभिव्यक्ति है। यह दर्शाता है कि हमारे सुरक्षा बल, कानून प्रवर्तन एजेंसियां और वन विभाग मिलकर इस वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं।

जैसे-जैसे वैश्विक मांग बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे अवैध गतिविधियों पर नजर रखना और उन्हें समाप्त करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यही एकमात्र रास्ता है जिससे हम प्रकृति के संतुलन को बनाए रख सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए वन्यजीवों का संरक्षण कर सकते हैं

 

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