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शिक्षकों की पदोन्नति पर संकट, वरिष्ठता निर्धारण विवाद का बना कारण

शिक्षकों की पदोन्नति पर संकट, वरिष्ठता निर्धारण विवाद का बना कारण

देहरादून। उत्तराखंड में राजकीय विद्यालयों में शिक्षकों की पदोन्नति का रास्ता वर्षों से अवरुद्ध है। इसका प्रमुख कारण है वरिष्ठता निर्धारण नीति में बदलाव, जिसे लेकर शिक्षा विभाग में ही गहरी असहमति है। जहां शिक्षकों पर नियमों के पालन का दबाव है, वहीं अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बचते नजर आ रहे हैं।

सात साल से रुकी हुई है पदोन्नति प्रक्रिया

प्रदेश में सहायक अध्यापक, प्रवक्ता, प्रधानाध्यापक और प्रधानाचार्य जैसे पदों पर लगभग सात वर्षों से पदोन्नति नहीं हो पाई है। यही कारण है कि शिक्षा व्यवस्था नेतृत्वविहीन होती जा रही है।

राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में 910 प्रधानाध्यापक पदों में से केवल 80 पद ही भरे हुए हैं। इसी प्रकार, 1,385 इंटर कॉलेजों में से 1,208 में प्रधानाचार्य नहीं हैं। प्रवक्ताओं के भी लगभग 48 प्रतिशत पद रिक्त हैं।

सीमित विभागीय परीक्षा भी बनी विवाद का विषय

शिक्षा विभाग ने 50 प्रतिशत रिक्त पदों पर सीमित विभागीय भर्ती परीक्षा के ज़रिए पद भरने की कोशिश की थी। लेकिन एलटी कैडर के शिक्षकों को शामिल किए जाने पर वित्त विभाग की आपत्ति और शिक्षक संघ के विरोध के कारण यह प्रक्रिया भी ठप हो गई।

वरिष्ठता निर्धारण पर विवाद, अधिकारी मौन

शिक्षकों का कहना है कि यदि पहले से चली आ रही वरिष्ठता पद्धति में बदलाव किया गया है तो नए नियमों को स्पष्ट करने की जिम्मेदारी अधिकारियों की है। लेकिन अफसरों की निष्क्रियता ने शिक्षकों को न्यायालय का रुख करने को मजबूर किया। फिलहाल 264 शिक्षक और 200 तदर्थ शिक्षक न्यायालय में वाद लंबित किए हुए हैं।

माध्यमिक शिक्षा निदेशालय द्वारा एक नया पदोन्नति मसौदा शासन को भेजा गया है। शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि पदोन्नति और तबादले के रास्ते शीघ्र तय किए जाएं। निदेशक डा. मुकुल सती ने कहा कि शासन स्तर पर समाधान की प्रक्रिया जारी है।

राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय महामंत्री रमेश चंद्र पैन्यूली का कहना है कि न्यायालय में जाना किसी भी व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन इससे सभी पदोन्नतियों को रोक देना न्यायसंगत नहीं है। शासन को जल्द स्पष्ट निर्णय लेकर शिक्षा व्यवस्था को सामान्य बनाना चाहिए।

वर्तमान स्थिति में शिक्षकों की पदोन्नति की राह सिर्फ वरिष्ठता निर्धारण विवाद के समाधान से ही खुल सकती है। यदि सरकार और शासन स्तर पर निर्णय लेने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई गई, तो राज्य के शासकीय विद्यालय लंबे समय तक नेतृत्व विहीन बने रहेंगे, जिसका सीधा प्रभाव छात्रों की पढ़ाई और परीक्षाफल पर पड़ेगा।

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